Ranchi-वर्ष 2019 में बाबूलाल जैसे कद्दावर सियासी चेहरे को करीबन चार लाख मतों से पराजित कर इतिहास लिखने वाली अन्नपूर्णा देवी के लिए इस बार राह उतनी आसान नहीं दिख रही, एक तरफ एंटी इनकंबेंसी को पार पानी की चुनौती है, वहीं दूसरी ओर जयप्रकाश वर्मा की इंट्री से करीबन चाढ़े लाख कुर्मी- कुशवाहा मतदाताओं की गोलबंदी का खतरा भी मंडराने लगा है. साथ ही अपर कास्ट मतदाताओं को भी साधने की भी चुनौती है. दरअसल राजपूत जाति के मतदाताओं के बीच से यह नाराजगी कुछ ज्यादा ही प्रखर है, जिस तरीके से भाजपा ने इस बार टिकट वितरण में राजपूत चेहरों को किनारा किया, उसका असर सिर्फ राजपूत मतदाता ही नहीं दूसरी अगड़ी जातियों में भी देखने को मिल रहा है. विनोद सिंह के चेहरे के रुप में अगड़ी जातियों को अपनी सामाजिक भागीदारी दिख रही है. अगड़ी जातियों के बीच इस बात की चर्चा तेज है कि भले ही विनोद सिंह के हाथ में लाल झंडा है, लेकिन चेहरा बेदाग है. भ्रष्टाचार को कोई आरोप नहीं है. पिता महेन्द्र सिंह की विचारधारा भले ही अगड़ी जातियों नागवार गुजरता रहा हो, लेकिन जब बात भ्रष्टाचार के साथ संघर्ष की आती है, तो पिता महेन्द्र सिंह की तरह ही विनोद सिंह का कोई सानी नजर नहीं आता.
त्रिकोणीय मुकाबले के आसार
स्थानीय पत्रकारों का दावा है कि इस बार का मुकाबला आमने सामने का नहीं होकर त्रिकोणीय शक्ल अख्तियार लेते दिख रहा है. एक तरफ अन्नपूर्णा देवी के साथ यादव जाति के मतदाताओं की गोलबंदी होती दिख रही है, जयप्रकाश वर्मा कुर्मी-कुशवाहा मतदाताओं को अपने पाले में खींचते दिखलायी पड़ रहे हैं, तो दूसरी ओर विनोद सिंह माले का आधार वोट बैंक के साथ ही तमाम जातीय समीकरणों को तोड़ते हुए एक बड़े वर्ग की पसंद बन कर सामने आते दिख रहे हैं. जिस लाल झंडे को कभी अगड़ी जातियों के बीच नापसंद किया जाता था, अब उसी लाल झंडे में अगड़ी जातियों को अपना प्रतिनिधित्व दिख रहा है.
जयप्रकाश वर्मा की इंट्री से कुशवाहा कुर्मी में सेंधमारी का खतरा
इस हालत में चुनावी परिणाम क्या होगा, फिलहाल इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है, लेकिन इतना तय है कि जयप्रकाश वर्मा की इंट्री से जहां भाजपा के हाथ से कुर्मी कुशवाहा वोट निकलता दिख रहा है, वहीं विनोद सिंह के चेहरे के साथ अगड़ी जातियों में सेंधमारी का खतरा मंडरा रहा है, दूसरी तरफ पांच वर्षों की एंटी इनकंबेंसी में यादव जाति के मतदाताओं के बीच से ही अन्नपूर्णा देवी की भूमिका पर सवाल खडे किये जा रहे हैं, इस हालत में यदि अंतिम समय में इंडिया गठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव की रैली होती है, राजद की सक्रियता बढ़ती है, तो यादव जाति के बीच भी सेंधमारी का खतरा खड़ा हो सकता है. कुल मिलाकर इस बार कोडरमा का मुकाबला बेहद रोचक मोड़ हैं, जहां राष्ट्रीय मुद्दों के बजाय स्थानीय मुद्दे और सामाजिक समीकरण का जोर दिख रहा है.
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