टीएनपी डेस्क:- सियासत के रंग भी अजीब होते हैं, जिसका चाल, चेहरा और चरित्र वक्त के साथ बदलते रहता है . इसकी तासीर कभी ठंडी , तो कभी गर्म नजर आती है. झारखंड की राजनीति में अभी उथल-पुथल और बैचेनी पसरी हुई है. खासकर , पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का जमीन घोटाले के आरोप में जेल जाने के बाद तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए मुश्किल घड़ी आन पड़ी है. शिबू सोरेन परिवार के लिए भी वक्त सही नहीं चल रहा है. हवाओं का रुख भी उनके खिलाफ बह रही है. इधर, लोकसभा चुनाव भी सर पर है . ऐसे में झारखंड के सबसे कद्दावर परिवार परेशानियों से घिरें हुए हैं. इन तमाम अड़चनों और इम्ताहन के बीच हेमंत सोरेन की वाइफ कल्पना सोरेन ने सियासत में सक्रीय एंट्री ले ली है. कभी पर्दे में रहने वाली और घर की चार दिवारी तक में सिमटी रहने वाली कल्पना ने पॉलिटिक्स में आने के संकेत तो बहुत पहले ही दे दिया था . लेकिन, अब इसका एलान भी हो गया .
राजनीति में कल्पना सोरेन
गिरिडीह के मुधबन के मांझीथान में पहुंचकर कल्पना ने वहां की मिट्टी को सर पर लगाकर नमन किया. दरअसल, पीरटाड़ के इसी कुड़को से महाजनी प्रथा के खिलाफ शिबू सोरेन ने आंदोलन का बिगुल फूंका था. . इस ऐतिहासिक जगह से कल्पना का राजनीति में आगाज करना यह संकेत देता है कि अब उनकी पति की गैरमोजूदगी में उनकी कमी खलने नहीं देगी, बल्कि बढ़ चढ़कर हिस्सा लेकर विरोधियों को करारा जवाब देगी, जो उनके बेकसूर पति को जेल में कैद करके रखें हैं.
गिरिडीह में ही झामुमो के स्थापना दिवस कार्यक्रम में कल्पना अपने पति हेमंत सोरेन को याद कर फूट-फूंट कर रोने भी लगी थी. और कार्यकर्ताओं में जोश भी भरा था . अपने भीगे आंखों से कल्पना ने कहा कि '' आज के दिन भारी मन से आपके के साथ खड़ी हूं , मैने सोचा की आंसूओं को रोक लूंगी , लेकिन आपलोगों के प्यार को देखकर मुझे वह ताकत मिल रही है, जो मैने कभी सपने में नहीं सोचा था '' कल्पना की बयानों में तेवर और जोश दोनों था, जो ये बतला रहा था कि हर चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं. काफी दिनों से जो अंदाजा लगाया जा रहा था कि कल्पना सोरेन राजनीति में आयेगी, वैसा तो हो गया . लेकिन, यहां सवाल उठ रहा है कि क्या लोकसभा चुनाव में भी लड़ेंगी ,
क्या गिरिडीह से चुनाव लड़ेंगी कल्पना सोरेन ?
प्रश्न ये भी है कि आखिर क्यों गिरिडीह से अपनी सियासी पारी का आगाज किया, क्या यही से लोकसभा के दंगल में दम दिखायेगी . अगर देखे तो गिरिडीह लोकसभा जेएमएम के लिए एक मुफीद सीट रही है. यहीं से बिनोद बिहारी महतो और टेकलाल महतो चुनाव लड़कर जीत चुके हैं. इसके साथ ही यहां की छह में से तीन विधानसभा सीट गिरिडीह, टुंडी और डुमरी से जेएमएम के विधायक है. जबकि, बेरमो, बाघमारा, गोमिया से कांग्रेस, बीजेपी और आजसू जीती है.
ऐसी हालत में गिरिडीह में झारखंड मुक्ति मोर्चा की पैठ और गढ़ भी रहा है, साथ ही पूर्व शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो यहां जेएमएम के उम्मीदवार के तौर पर उतरते थे. लेकिन, उनके निधन के बाद खाली हुई सीट से अभी कौन झामुमो का उम्मीदवार होगा. ये अभी साफ नहीं हुआ है. ऐसी स्थिति में शायद कल्पना यहां से चुनाव रण में उतर सकती है. अभी जो परिस्थिति है और जो समीकरण बैठ रहें है. इस स्थिति मे अगर कल्पना गिरिडीह लोकसभा से चुनाव लड़ती है. तो मुकाबला दिलचस्प होगा. यहां से आजसू के चन्द्रप्रकाश चौधरी सांसद है. उनके खिलाफ एंटी एनकंबेसी फैक्टर के साथ ही हेमंत के जेल जाने से उमड़ी सहानुभूति का भी फायदा कल्पना को मिल सकता है.
क्या दुमका से जेएमएम की उम्मीदवार होंगी कल्पना ?
गिरिडीह में समीकरण और साजगार माहौल तो दिख ही रहा है.साथ ही चर्चा ये भी तेज चल रही है कि कल्पना सोरेन दुमका से भी हाथ अजमा सकती है. सियासी गलियारों के साथ-साथ राजनीति के जानकार तो यहां सबसे अधिक दांव खेल रहें हैं. इसके पीछे की वजहों को टटोले, तो संथाल परगना की ये सीट झामुमो की परंपरागत सीट रही है. यहां से जेएमएम के संस्थपकों में से एक दिशोम गुरु शिबू सोरेन लगातार चुनाव लड़ते रहें हैं. यह उनकी खानदानी सीट भी मानी जाती है, बेशक पिछली बार शिबू सोरेन भाजपा के सुनील सोरेन से पराजित हो गये. लेकिन, यहां झारखंड मुक्ति मोर्चा का वर्चस्व कभी कम नहीं हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दुमका और बरहेट से विधानसभा चुनाव लड़ा था. दोनो जगह से उन्होंने जीत दर्ज की थी. बाद में उन्होंने दुमका सीट छोड़ दिया था. जहां उनके छोटे भाई बसंत सोरेन ने उपचुनाव में जीत दर्ज की थी.
दूसरी तरफ दुमका लोकसभा की छह में से चार विधानसभा सीट शिकारीपाड़ा, नाला, दुमका और जामा में झामुमो के विधायक है. जबकि, जामताड़ा और सारठ से कांग्रेस और बीजेपी ने जीत दर्ज की है. ऐसी हालत में दुमका सीट कल्पना के लिए आसान साबित होगी. यहां कल्पना के लिए एक सबसे मुफिद बात ये है कि उनके पति हेमंत सोरेन के जेल में जाने के बाद एक सहानुभूति की लहर भी उनके तरफ बहेगी.गिरिडीह की तुलना में दुमका का माहौल उनके पक्ष में ज्यादा नजर आता है. क्योंकि दुमका से उनके ही परिवार के हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत भी विधायक है. शिबू सोरेन का भी यहां लंबे समय से प्रभाव रहा है. ऐसी सूरत में उनके लिए यह सीट सुरक्षित हो सकती है. अगर दुमका से कल्पना लड़ती है, तो भाजपा के लिए भी परेशानियां खड़ी होंगी . इससे इंकार नहीं किया जा सकता.
खैर , सबसे पहला सवाल तो यही है कि कल्पना सोरेन लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी या नहीं . अगर लड़ती है, तो फिर किस सीट से लड़ेंगी. फिलहाल, अभी कुछ भी साफ नहीं है, लेकिन, जल्द ही इस पर से पर्दा उठा जाएगा. लेकिन, जैसी धमाकेदार एंट्री राजनीति में कल्पना सोरेन ने मारी है. इससे तो जेएमएम को फायदा ही होगा.