रांची(RANCHI): झारखंड की वर्तमान राजनीतिक हालात काफी निराशाजनक है. राज्य की सत्ता पर काबिज लोग ही सड़क पर हैं और सरकार के लोग ही संवैधानिक पद पर बैठे लोगों पर लगातार आपत्तिजनक टिप्पणियां और सवाल खड़े कर रहे हैं. वहीं, विपक्ष भी इस मामले में पीछे है. विपक्ष सरकार पर भी हमला बोल रहा है. विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी सरकार को उखाड़ फेंकने से लेकर, मैदान पर आने तक की बात कर रही है. बात अब सिर्फ टिप्पणी तक ही सीमित नहीं रही अब नेता लोगों को मारने पीटने तक के लिए बहकाने लगे हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या राजनीतिक फायदे के लिए नेता आम जनता को मोहरा बना रहे हैं? ऐसे में हम आपको वर्तमान परिस्तिथि को समझाने से पहले झारखंड राज्य के अलग होने के दौरान की कुछ कहानियां बताने जा रहे हैं, उसके बाद वर्तमान परिस्तिथि की बात करेंगे.
झारखंड राज्य के मांग की शुरूआत की कहानी
दरअसल, झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने में जेएमएम पार्टी और उनके नेता का अहम योगदान था. इस बात से परहेज नहीं किया जा सकता है. बताते चलें कि झारखंड आंदोलन की शुरूआत भारत के छोटा नागपुर पठार और इसके आसपास के क्षेत्र से हुआ था. जिसे फिलहाल झारखंड के नाम से जाना जाता है. झारखंड को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग के साथ शुरू होने वाला यह एक सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन था. इसकी शुरुआत 20वीं सदी के शुरुआत में हुई और अंततः 2000 में बिहार पुनर्गठन बिल के पास होने के बाद इसे अलग राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ.
अलग राज्य की मांग के दौरान भी हुई थी प्रर्दशन
झारखंड राज्य के स्थापना की कहानी जितनी आसान और सहज सुनने में लगी दरअसल, में इतनी थी नहीं. बिहार से झारखंड राज्य को अलग करने की मांग जब शुरू हुई तब भी आज की राजनीतिक हालत जैसे ही माहौल थें. सड़के जाम थी, नेता रोड़ पर थे, ट्रेनों के आवागमन पर रोक थी, राज्य में आगजनी जैसे माहौल थे. कई नेता झारखंड राज्य के गठन पर सहमत थे तो कई इसे संयुक्त बिहार का ही हिस्सा रहने देना चाहते थे. और यहीं से शुरू होती है झारखंड के गठन से पहले की अराजकता की कहानी और उदय होता है दिशोम गूरु और जेएमएम की. राज्य के अलग होने की मांग के साथ ही कई प्रदर्शन हुए. सड़के जाम हुई, आगजनी से लेकर तरह-तरह के बयानबाजी हुए. लेकिन अंतत: साल 2000 में झारखंड को अलग राज्य का दर्जा मिल गया.
बाबूलाल सरकार के दौरान Domicile को लेकर हुआ था प्रर्दशन
साल 2000 में झारखंड राज्य का दर्जा मिलने के बाद बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी. इसी के साथ बाबूलाल झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने. इस दौरान भी Domicile(स्थानीय) के मुद्दे को लेकर कई प्रर्दशन हुए और सड़के जाम हुई. इस दौरान कई अधिकारियों को भी चोटों आई थी. कई लोगों को जान गंवानी पड़ी थी.
वर्तमान में सत्ता और विपक्ष के नेताओं का बयान पढ़िए
अब झारखंड राज्य के वर्तमान परिस्थिति को समझने की कोशिश करते हैं. मामला है सरकार पर काबिज लोगों के खिलाफ कार्रवाई की. सरकार चला रहे कई विधायकों और खुद मुख्यमंत्री के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियां लगातार छापेमारी और जांच कर रही है. इस जांच को सरकार राजनीति से प्रेरित और सरकार गिराने की साजिश बता रही है. राज्य की यूपीए सरकार भाजपा, केंद्र सरकार, राज्यपाल और केंद्रीय जांच एजेंसियों के खिलाफ लगातार बयानबाजी कर रही है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बंधु तिर्की भाजपा के कार्यकर्ताओं को पटक-पटक कर मारने की चेतावनी देते हैं तो वहीं, सरकार में पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर पैर तोड़ने की बात कह रहे हैं. वहीं, इसमें विपक्षी पार्टी भाजपा भी पीछे नहीं है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा भी विपक्ष को मैदान में आने की बात कहते हैं. ऐसे में झारखंड की सत्ताधारी पार्टी से लेकर विपक्ष भी बयानबाजी में पीछे नहीं हट रही है.
कार्यकर्ता आ सकते हैं आमने-सामने
झारखंड में जिस तरह से राजनीतिक बयानबाजी तेज हो रही है. ऐसे में किसी झड़प से भी परहेज नहीं किया जा सकता है. दोनों पार्टियों की ओर से सड़क पर प्रर्दशन किया जा रहा है. ऐसे में अगर कार्यकर्ता आमने-सामने आते हैं तो किसी तरह की झड़प से इनकार नहीं किया जा सकता है.