धनबाद(DHANBAD): धनबाद के टुंडी और तोपचांची के पहाड़ और जंगली पगडंडी आज भी दिशोम गुरु शिबू सोरेन के संघर्ष की गवाही देते है. आंदोलन के दौरान धनबाद उनका मुख्य कार्य क्षेत्र रहा था. आंदोलन की एक नहीं, सैकड़ों सबूत धनबाद ज़िले में भरे पड़े है. रामगढ़ जिले के नेमरा में 11 जनवरी 1944 को जन्मे शिबू सोरेन का नाम बचपन में शिवलाल था. जो आगे चलकर शिबू सोरेन हो गया. शिबू सोरेन के संघर्ष की कहानी बहुत लंबी है. आंदोलन के कई मोड़ आए, कई साथी जुटे, बिछड़े लेकिन शिबू सोरेन का आंदोलन आगे बढ़ता रहा. धनबाद में ही आज सत्तासीन झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन हुआ था. यह बात अलग है कि उस समय ए के राय, बिनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन सभी साथ थे. धनबाद के गोल्फ मैदान में इसका गठन हुआ था. धनबाद से ही आंदोलन की शुरुआत हुई. ए के राय, शिबू सोरेन और विनोद बाबू साथ मिलकर झारखंड अलग राज्य की परिकल्पना की और उसे पर आगे बढ़ गए. लेकिन कालांतर में एके राय की राह अलग हो गई और वह मासस नामक पार्टी बनाकर अलग हो गए और वह मजदूरों की राजनीति करने लगे. शिबू सोरेन और विनोद बाबू साथ-साथ रहे. आंदोलन को धार दिया.
साथी जुड़ते रहे ,बिछुड़ते रहे लेकिन आंदोलन चलता रहा
लोगों को आंदोलन से जोड़ा. बाद में लोग बताते हैं कि विनोद बाबू भी अलग हो गए लेकिन शिबू सोरेन का आंदोलन चलता रहा. स्वर्गीय एके राय ने दशकों पहले इस संवाददाता को बताया था कि महाजनी आंदोलन के खिलाफ शिबू सोरेन यानी गुरु जी टुंडी, तोपचांची इलाके में विगुल फूंक चुके थे. उस समय देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थी. धनबाद के उपायुक्त लक्ष्मण शुक्ला हुआ करते थे. पीएमओ से धनबाद के उपायुक्त को शिबू सोरेन से संपर्क करने को कहा गया. शिबू सोरेन से उपायुक्त ने संपर्क किया. उनसे मिले भी लेकिन मिलने के कुछ शर्त थे. उसे शर्त के अनुसार तबके डीसी लक्ष्मण शुक्ला शिबू सोरेन से मुलाकात की. शिबू सोरेन को आंदोलन छोड़कर कृषि क्षेत्र से जुड़ने का आग्रह किया गया. उन्हें रास्ता बदलने को कहा गया लेकिन शिबू सोरेन अड़े रहे. महाजनी के खिलाफ उनका आंदोलन चलता रहा. फिर तो अलग राज्य का आंदोलन शुरू हुआ और झारखंड अलग राज्य बन गया. 1977 में शिबू सोरेन ने टुंडी से विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन चुनाव हार गए. टुंडी से चुनाव हारने के बाद संथाल को अपना ठिकाना बनाया.
1980 में दुमका से सांसद बने थे शिबू सोरेन
1980 में शिबू सोरेन ने दुमका संसदीय सीट से चुनाव लड़ा और पहली बार सांसद बने. उसके बाद कई बार दुमका से सांसद रहे. राज्यसभा के सांसद भी रहे. जानकार बताते हैं कि विनोद बाबू के अलग होने के बाद शिबू सोरेन ने निर्मल महतो को झारखंड मुक्ति मोर्चा का अध्यक्ष बनाया. 1987 में निर्मल महतो की हत्या के बाद शिबू सोरेन खुद अध्यक्ष बने और शैलेंद्र महतो महासचिव बनाये गए. 1993 में नरसिंह राव सरकार को बचाने के लिए शिबू सोरेन और उनके सहयोगी सांसदों पर गंभीर आरोप लगे और उन्हें जेल तक जाना पड़ा. झारखंड राज्य बनने के पहले झारखंड स्वायत्त परिषद बना था. 1995 में शिबू सोरेन जैक के अध्यक्ष बनाए गए थे. 15 नवंबर 2000 को जब झारखंड का गठन हुआ तो शिबू सोरेन का सपना साकार हुआ. पर संख्या बल की कमी के कारण वह झारखंड के पहले मुख्यमंत्री नहीं बन सके. बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो