टीएनपी डेस्क(TNP DESK): बैलों की फाइट यानि जिसे जल्लीकट्टू कहते हैं .इस पर रोक लगाने से देश की सर्वोच्च अदालत ने रोक लगाने से इंकार कर दिया.शीर्ष अदालत की संवैधानिक बैंच ने साफ कहा कि यह तमिलनाडु की संस्कृति, परंपरा औऱ विरासत का हिस्सा है. इसमें किसी तरह की गलत चिजे नहीं दिखाई पड़ती है. इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार से , इसे देने वाले कानून की मंजूरी देने से इंकार कर दिया. जल्लीकट्टू के खेल में बेलों की लड़ाई करायी जाती है, इसकी तमिलनाडु में काफी पॉपुलरिटी है .
अदालत ने तमिलनाडु की तरह कर्नाटक और महाराष्ट्र में होने वाले बेलों को इस खेल को रोकने से भी इंकार कर दिया . सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय पशु क्रूरता अधिनियम में तमिलनाडु सरकार की ओर से किए गए संशोधन की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है. जस्टिस केएम जोसेफ अध्यक्षता वाली संवैधानिक बेंच ने महाराष्ट्र और कर्नाटक में बैल या फिर भैंसों की रेस कराने को भी अनुमति दी. इन दोनों पर ही सुप्रीम कोर्ट के ही 2014 के एक फैसले के चलते रोक लगी हुई थी. अदालत ने तब कहा था कि ये खेल पशुओं के क्रूरता वाले हैं. जस्टिस अनिरूद्ध बोस ने कहा कि तमिलनाडु में जल्लीकट्टू को मान्यता देना सिर्फ विधानसभा से बनाए एक कानून की बात नहीं है. यह किसी भी तरह से संविधान का उल्लंघन नहीं करता है. फैसला पढ़ते हुए उन्होंने कहा कि यह तो संस्कृति का मसला है और यह खेल तमिलनाडु की संस्कृति का हिस्सा रहें है. इस सिद्धांत के आधार पर महाराष्ट्र और कर्नाटक की परंपराओं को भी मंजूरी देते हैं.
रिपोर्ट: शिवपूजन सिंह