रांची(RANCHI): पूर्व राज्यपाल रमैश वैस के द्वारा 1932 का खतियान को वापस लौटाये जाने पर छात्र नेता जयराम महतो ने निशाना साधा है, जयराम महतो ने कहा है कि जिस प्रकार महाराष्ट्र महाराष्ट्रियों का है, बिहार बिहारियों का है उसी प्रकार झारखंडी भी झारखंडियों का का है, और झारखंडी कौन है, इसकी पहचान करता है 1932 का खतियान, लेकिन रमेश बैस को इसमें आपत्ति थी, उनके द्वारा इसमें आपत्ति प्रकट कर इसे वापस कर दिया गया, लेकिन क्या रमेश बैस महाराष्ट्र में झारखंडियों को नागरिकता दिलवा सकते हैं, क्या हम झारखंडियों को महाराष्ट्र में नौकरी मिल सकती है.
गैर झारखंडी भाषाओं को झारखंड में स्थापित की साजिश
जयराम महतो ने कहा कि महाराष्ट्र के कई जिलों में झारखंडियों और बिहारियों की बड़ी आबादी है, क्या रमेश बैस इन सभी को महाराष्ट्र की नागरिकता दिलवायेंगे, हर राज्य की अपनी भाषा और संस्कृति है, जिस प्रकार महाराष्ट्र में हिन्दी बोलने वालों को संदेह की नजर से देखा जाता है, मराठियों की मांग सिर्फ मराठी भाषा में बात करने की होती है, ठीक उसी प्रकार हमारी मांग भी झारखंडी भाषाओं की है, यही कारण है कि हम भाषा की लड़ाई लड़ते हैं, लेकिन एक साजिश के तहत गैर झारखंडी भाषाओं को झारखंड में स्थापित किया जा रहा है. बार-बार सरकार को भाषा के सवाल पर स्टैंट बदलना पड़ रहा है.
झारखंडियों को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी
लेकिन हम झारखंडियों को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी, हम इसके लिए लम्बा संघर्ष करना होगा. दूसरी राज्यों की तरह हमें भी अपनी भाषा, संस्कति और जमीन की लड़ाई लड़नी होगी, हम किसी भी हालत में 1932 से पीछे नहीं हटेंगे, खतियान आधारित स्थानीयता की इस लड़ाई से हम पीछे नहीं हटेंगे.