टीएनपी डेस्क (TNP DESK):-क्या विपक्ष का कुनबा सिर्फ और सिर्फ दिखावे भर के लिए हाथ से हाथ मिला के चल रहा हैं ? क्या इस गठबंधन में अभी से ही दरार उभर आई है ? क्या इसकी उम्र कुछ दिन की ही है ? इस तरह के तमाम सवाल उलझे हुए धागे के मानिंद दिखाई प़ड़ रहें हैं. लोकसभा चुनाव में भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए बना महागठबंधन चुनाव में लड़ने से ज्यादा एकजुट बनें रहना ही सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. दरअसल, इसके अंदर झांके तो पहली नजर में जिस तरह एकता का प्रदर्शन पटना में किया गया. कश्मीर से कन्याकुमारी तक के नेता जुटे औऱ साथ-साथ चलने की हामी भरी. इससे बीजेपी का खेमा भी थोड़ा सहम गया, क्योंकि भाजपा जानती है कि अगर यह गठजोड़ बन गया तो चुनाव में चुनौती मिलनी तय है. उनके लिए आसान भरी डगर नहीं रहने वाली. हालांकि अभी तक के घटनाक्रम को बारिकी से गौर फरमाएं, तो विपक्ष की पार्टियों में सबकी अपनी डफली और अपनी राग है. वही, जितनी मुंह औऱ उतनी बात भी सुनाई पड़ रही है. यानि सबकी अपनी-अपनी ख्वाहिश और मतलब है. जो वक्त की करवटों के साथ और मालूम पड़ेगी.
केजरीवाल की कांग्रेस को दो टूक
आप के मुखिया केजीवाल की दिल्ली की सत्ता के खातिर उकताहट, हड़बड़ाहट औऱ मौकपरस्ती किसे नहीं समझ आ गई. मानों विपक्ष का कुनबा एक होने से पहले ही बिखर गया. केजरीवाल शुरु से ही एक ही राग अलाप रहें है कि, केन्द्र की दिल्ली पर लाए अध्यादेश पर कांग्रेस समर्थन को लेकर अपना रुख साफ करें.
आप के इस फरमान से कांग्रेस भी तिलमिला गई. खुद अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खड़गें ने इसे भड़काव करार दिया. केजीरवाल के इस दबाव से नेशनल कांफ्रेंस औऱ दीदी भी बिफर गई. उनके रवैये को सही नहीं ठहराया.
ममता दीदी की कांग्रेस को खरी-खरी
विपक्षी एकता में ममता बनर्जी एक अहम कड़ी है. उनकी बातें और नसीहतें हर कोई सुनता है.नीतीश कुमार को पटना में महाजुटान की नसीहत भी दीदी की ही देन थी. लेकिन,पश्चिम बिहार के कूच विहार रैली में ममता का रंग-ढंग कुछ अलग दिखा. वह भाजपा पर तो बरसी ही. इसके साथ ही कांग्रेस और सीपीआई को भी नहीं बख्शा. दीदी ने जनसभा में कहा कि उनकी कोशिशों से भाजपा के खिलाफ एक बड़ा विपक्षी गठबंधन बनाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन, कांग्रेस और सीपीआई बंगाल में बीजेपी के साथ मिली हुई है. वो बंगाल में अपवित्र गठबंधन को तोड़ देंगी. पिछले दस दिनों में ममता ने कांग्रेस और सीपीआई का बीजेपी के साथ मौन सहमती की तोहमत लगायी. दीदी के इस रुख से तो साफ है कि, वो अपने गढ़ में किसी भी हाल में खुद को कमजोर होने देना नहीं चाहती. विपक्ष की एकता उनकी नजर में तो यही है कि खुद के वोट बैंक किसी दूसरे जगह नहीं खिसकने दी जाए.
लाजमी है कि अगर इस तरह नेताओं के बागी बोल, आते रहेंगे, तो अभी जो बनता हुआ विपक्ष दिख रहा है. उसमें खरोंच लगते-लगते, कहीं दरक न जाए. ये तो साफ है कि जितना बड़ा घर होगा, उसे संभालने में मुश्किलें भी उतनी ही आएगी. विपक्ष की एकता पर चाहे कितना भी शोर मचाया जाए, लेकिन,इन्हें खतरा गैरों से कम, अपनों से ज्यादा है.
रिपोर्ट-शिवपूजन सिंह