टीएनपी डेस्क(TNP DESK): हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद पूरा अडाणी समूह आज गोते लगा रहा है, अब तक उसका लाखों करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है, कभी दुनिया का तीसरे सबसे अमीर आदमी में गिनती होने वाले अडाणी आज ट़ॉप 20 से भी बाहर हो चुके हैं. गौतम अडाणी पर प्रधानमंत्री का बेहद करीबी होने का आरोप लगता रहा है, दावा किया जाता है कि दोनों के बीच इस प्रगाढ़ रिश्ते की शुरुआत गुजरात से हुई थी, तब आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गौतम अडाणी के जहाज में घूमा करते थें, लेकिन आज वह प्रधानमंत्री के साथ विदेश दौरों में उनके जहाज में बैठते हैं.
मोदी सरकार आते ही एक-एक कर देश के सारे प्रोजेक्ट अडाणी समूह के हाथ में गया
मोदी सरकार आने के बाद एक-एक कर देश के सारे प्रोजेक्ट अडाणी समूह के हाथ में गया, दावा यह भी किया गया कि 2014 के बाद प्रधानमंत्री की रैलियों में जिस तरह भव्य तरीके से पंडाल सजाये गये, उसकी साज सज्जा की गयी, उसका पूरा खर्च अडाणी समूह की ओर से उठाया गया, लेकिन आज जब अडाणी समूह गर्त में जा रहा है, सीटी बैंक सहित कई दूसरे संस्थाओं के द्वारा उनके प्रोजेक्ट से हाथ खिंच लिया गया, भाजपा की ओर से कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं है, साथ ही उस राष्ट्रीय मीडिया जो दिन रात मोदी के एक एक काम को गिनाता फिरता था, अडाणी प्रकरण पर चुप है, कोई इसे प्राईम टाईम में बहस का मुद्दा नहीं बना रहा है, क्या यह कोई विशेष रणनीति का हिस्सा है? बड़ा सवाल यह है कि भाजपा की ओर से कोई साफ संकेत नहीं दिया जा रहा है कि वह इस बुरे दौर में अडाणी के साथ है.
क्या प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा के विपरित कोई अडाणी समूह के खिलाफ अपनी गतिविधियां तेज कर सकता है?
कुछ जानकारों का मानना है कि अडाणी समूह के खिलाफ यह पूरी कार्रवाई व्यवसायिक प्रतिद्वंद्विता का हिस्सा है. कुछ भारतीय कंपनियों के द्वारा ही इसकी जमीन तैयार की गयी, कंपनी के सारे राज को एक-एक कर हिंडनबर्ग तक पहुंचाया गया, और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के सहारे अडाणी के इस विशाल साम्राज को धवस्त करने की रणनीति बनाई गयी.
लेकिन उससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि क्या देश में अभी किसी की यह हैसियत बची है कि वह प्रधानमंत्री की इच्छा के विपरित इस तरह की कार्रवाई करें, इसका आसान सा जवाब है नहीं, अभी देश में कोई भी व्यवसायिक घराना यह जोखिम लेने को तैयार नहीं होगा? नहीं तो उसकी बची खुची जमीन भी चली जायेगी, आज दूसरे व्यवासायिक घरानों की कोशिश किसी तरह अपना अस्तिव बचाये रखने की है, ताकि वह ईडी और दूसरी एजेंसियों के प्रकोप से दूर रह सके, इस परिस्थिति में यह सवाल उठता है कि तो क्या गौतम अडाणी के खिलाफ इस पूरी कार्रवाई के पीछे प्रधानमंत्री मोदी की सहमति थी, क्या गौतम अडाणी ने जाने अनजाने कोई भूल कर दी थी? क्या गौतम अडाणी भविष्य की योजना और चुनौतियों को देखते हुए विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने की कोशिश कर रहे थें? क्या वह यह मान कर चल रहे थें कि किसी एक राजनीतिक घराने और कुछ चुनिंदा लोगों के सहारे लम्बे समय तक अपना इस बिजनेस मॉडल को बनाये नहीं रख सकते? क्या उनके अन्दर यह आशंका बलवती हो रही थी कि यदि आने वाले दिन में देश का राजनीतिक हालात बदला तो उनके लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है?
आखिर राहुल गांधी को युवा और सम्मानित नेता बताने के बाद ही क्यों हुई यह कार्रवाई
उपरोक्त सारे सवालों का जवाब हां हो सकता है, हालिया दिनों में राहुल गांधी की भारत जोड़े यात्रा और उसमें उमड़ती भीड़ के साथ ही गौतम अडाणी मन से उपरोक्त सभी सवाल खड़े हो रहे थें, उनकी ओर से राहुल गांधी को युवा और सम्मानित नेता बताकर यह संदेश देने की कोशिश की जा रही थी कि उनके मन में राहुल गांधी के प्रति कोई नभरत की भावना नहीं है, आने वाले दिनों में वह राहुल गांधी के साथ भी कदमताल मिलाकर चलने को तैयार हैं?
कुछ जानकारों का दावा है कि उसके बाद ही पीएम मोदी के द्वारा अडाणी समूह के खिलाफ कार्रवाई का संकेत दिया गया, इस संकेत को मिलते ही दूसरे व्यवसायिक घरानों के द्वारा रणनीति बनाई गयी, और उसकी परिणिति हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट में आयी और दशकों का अडाणी का साम्राज एकबारगी बिखरने के कगार पर पहुंच गया.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार