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25 साल के राज्य में हर गोली ने कर दी एक मां की गोद सुनी, नक्सल-पुलिस मुठभेड़ में गई पांच हजार लोगों की जान

25 साल के राज्य में हर गोली ने कर दी एक मां की गोद सुनी, नक्सल-पुलिस मुठभेड़ में गई पांच हजार लोगों की जान

टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : छत्तीसगढ़ अब 25 वर्ष का हो गया है. इन वर्षों बड़ी बड़ी विकास की उपलब्धि राज्य के नाम दर्ज हुई. शहर का तेजी से विकास हुआ तो गांव में बदल गए. गांव में बिजली-सड़क पहुंची. लेकिन इसी विकास की दौड़ में सबसे बड़े बाधा बनने वाले नक्सलियों के खिलाफ भी बड़ा अभियान चला. जिसमें बड़ी कामयाबी भी दर्ज हुई. लेकिन इस नक्सल और पुलिस मुठभेड़ में निर्दोष लोगों की जान नक्सलियों से ज्यादा गई. इस खबर में नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे अभियान पर बात करेंगे.

साल 2000 में जनता की अदालत में होता था फैसला

सबसे पहले 25 साल के छत्तीसगढ़ की बात करें तो साल 2000 में अतिनक्सल प्रभवित राज्य में यह शामिल हुआ करता था. कई इलाकों में नक्सलियों की सरकार चल रही थी. गांव का कोई भी मुद्दा थाना ना पहुंच कर माओवादियों की जनतानाअदालत में फैसला होता. यहां समस्या का यह के साथ साथ फैसला भी सुनाया जाता था. मानों छतीसगढ़ आजादी के बाद भी गुलाम हो, जहां लोकतंत्र नाम का कोई चीज नहीं है. लोकतंत्र से हट कर बंदूक तंत्र काम कर रहा था.

बस्तर रेंज माना जाता था सेंटर

खासकर बस्तर रेंज माओवादियों का हेडकॉर्टर माना जाता था. यहां बड़े माओवादियों का सेंटर हुआ करता था. यहां जनता की चुनी सरकार नहीं नक्सलियों की सरकार पूरी तरह से हावी रहती थी. हर कोने में गोलियों की गूंज सुनाई देती थी. लेकिन समय बदला और धीरे धीरे नक्सलियों के खिलाफ बड़ा अभियान सुरक्षा बल के जवानों ने शुरू कर दिया. जिसमें हद तक कामयाबी मिली. कई मुठभेड़ हुई जिसमें बड़े नक्सलियों को ढ़ेर कर दिया.

25 साल में 3500 मुठभेड़ हुई

मीडिया रिपोर्टस के मुताबीत छत्तीसगढ़ में 3500 से अधिक मुठभेड़ हुई. जिसमें 1541नक्सली मारे गए. मुठभेड़ और पुलिस की कार्रवाई से डर कर 7826 से अधिक माओवादियों ने हथियार डाल दिया और मुख्यधारा में लौट गए. लेकिन जब शहीद जवान के आंकड़ें को देखें तो यह भी चौंकाने वाले है 1315 जवानों ने बलिदान दिया है. जिसमें CRPF,COBRA,छत्तीसगढ़ पुलिस के साथ DRG और अन्य राज्य पुलिस के जबाज शामिल है. यह सभी मुठभेड़ जंगल में हुई. जंगल में नक्सलियों के साथ-साथ आदिवासी जनजाति भी निवास करती है.

पुलिस नक्सली मुठभेड़ में 1841 निर्दोष की गई जान

इस मुठभेड़ की सबसे डरावनी तस्वीर निर्दोष लोगों की मौत के आंड़के देख कर सामने आते है. इसमें कभी पुलिस की गोली के निशाने पर जंगल में रहने वाले आदिवासी आ गए तो तभी नक्सलियों के टार्गेट पर दिखे जिसमें 1841लोगों की जान गई. ऐसे में यह कहे तो गलत नहीं होगा की हर गोली पर एक निर्दोष की जान चली गई. जिसका दर्द आज तक गांव के लोगों होता है.

हर गोली पर गई एक जान

लोग कहते है कि हर गोली पर किसी ना किसी माँ की गोद सुनी हुई है. चाहे नक्सली की जान गई या जवान की शहादत हो या फिर निर्दोष. हर किसी की मौत ने एक माँ की गोद को सुना कर दिया तो किसी के सर से बाप-माँ का साया उठा दिया.

अब 31 मार्च को हो जाएगा हमेशा के लिए लाल आतंक का खात्मा

शायद अब दिन बदले और इस खूनी संघर्ष पर पूरी तरह से विराम लग जाए. क्योंकि हाल के दिनों में बस्तर और आस पास के  बड़े माओवादियों ने हथियार डाल कर मुख्यधारा में लौट गए है. खुद गृह मंत्री ने ऐलान कर दिया है कि 31 मार्च 2026 के बाद नक्सलवाद का नाम नहीं बचेगा. और छत्तीसगढ़ में नया सवेरा सामने आएगा.

Published at:10 Nov 2025 10:08 AM (IST)
Tags:In the 25 years of the state every bullet left a mother's lap empty; five thousand people lost their lives in Naxal-police encounters.Dark side of naxal storyDark side of naxalPolice naxal encounterjhakhrandsarandamaowadi naxal operationchhatiishgarhChattisgarh newssaranda ka newstop naxalnaxal inside storyJhakrhand naxalhidma
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