टीएनपी डेस्क: कोयलांचल को "मिनी बिहार" भी कहा जाता है. बिहार की राजनीति से यहां के भी लोग प्रभावित होते है. महाराष्ट्र में भाजपा के मुख्यमंत्री के बाद चर्चा तेज है कि अगर नीतीश कुमार के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ ,तो वह क्या करेंगे? क्या भाजपा पर नीतीश कुमार के 12 सांसदों का दबाव रहेगा? क्या अगर भाजपा उनका नेतृत्व नहीं स्वीकारेगी , तो वह महा गठबंधन में लौट जाएंगे? यह सब ऐसे सवाल हैं, जिसका गुणा -गणित अभी से ही निकाला जाने लगा है. वैसे, चुनाव तो 2025 में होने है. लेकिन अब ज्यादा वक्त भी नहीं है. बिहार चुनाव को लेकर पार्टियां अब तैयारी भी शुरू कर दी है. प्रशांत किशोर की भी नई पार्टी बिहार में सक्रिय है. बिहार में 2025 में चुनाव है.
महाराष्ट्र में चुनाव के बाद भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बन गए
महाराष्ट्र में चुनाव के बाद भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बन गए है. पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार में भाजपा इस फार्मूले को लागू नहीं किया था. कम सीट मिलने के बावजूद जदयू नेता नीतीश कुमार को कुर्सी दे दी. लेकिन अब बिहार में यह चर्चा जोरों पर हो रही है कि क्या बिहार में नीतीश कुमार के साथ भाजपा पहले की तरह ही रहेगी या फिर बदलाव करेगी. यह बात तो तय है कि उपचुनाव के परिणाम से भी भाजपा का मनोबल बढ़ा है. अगर भाजपा 2025 में बिहार में नीतीश कुमार के साथ कुछ भी 19-20 की ,तो नीतीश कुमार की कुर्सी खतरे में पड़ सकती है. यह बात भी सच है कि 2025 के चुनाव में नीतीश कुमार भाजपा को चुनाव लड़ने के लिए अपने से अधिक सीट नहीं देंगे. अब तक का रिकॉर्ड यही है कि बराबरी पर चुनाव लड़ते रहे है. यह भी हुआ है कि भाजपा, जदयू की तुलना में कम सीटों पर चुनाव लड़ी है. यह भी कहा जाता है कि पिछले चुनाव में अगर चिराग पासवान की पार्टी ने नीतीश कुमार का खेल नहीं बिगाड़ा होता तो जदयू की सीट अधिक आ सकती थी.
नीतीश कुमार की पार्टी को केवल 43 सीटों से संतोष करना पड़ा था
नीतीश कुमार की पार्टी को केवल 43 सीटों से संतोष करना पड़ा था. जिसका दंश नीतीश कुमार आज भी झेल रहे होंगे. भाजपा विधानसभा में बड़ी पार्टी तो बनी, लेकिन नीतीश कुमार के सहयोग के बिना वह सरकार नहीं बना सकती थी. भाजपा ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा था. भाजपा की स्थिति भी इस बार पहले की तरह नहीं है. जदयू के 12 सांसदों के भरोसे केंद्र में भाजपा की सरकार है. और ऐसा नहीं लगता कि 202 9 तक यह स्थिति बदल जाएगी. यानी 202 9 तक भाजपा से नीतीश कुमार को कोई खतरा नहीं भी हो सकता है. महाराष्ट्र की तरह अगर बिहार में कुछ भी हुआ तो एक तो केंद्र की सरकार में नीतीश कुमार का दबाव है, दूसरी ओर महा गठबंधन हमेशा नीतीश को लौटने का न्योता देता रहता है. इससे इतना तो स्पष्ट है कि नीतीश कुमार के पास विकल्प खुले है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो