टीएनपीडेस्क(TNP DESK): नक्सलवाद देश के लिए एक बड़ी समस्या है.जैसे आतंकवाद से देश के जाबाज़ बॉर्डर पर लड़ रहे हैं ठीक वैसे ही देश के अंदर उग्रवादी से सुरक्षा बल सामना कर रहे हैं. लेकिन आज हम आपको इसके शुरुआत में लेकर चलते हैं.आखिर नक्सलवाद देश में कैसे फैला,जो आज एक बड़ी समस्या बन गया है. इसके जनक कौन थे और कैसे इस संगठन की नींव रखी गयी.
नक्सलवाद के जनक के चारु मज़मुदार को बताया जाता है. चारु मज़मुदार बड़े जमींदार परिवार से थे. लेकिन मज़दूर और किसानों पर जमींदारो का जुल्म देख जमींदारों के खिलाफ एक आंदोलन की शुरुआत मज़मुदार ने किया था. इस आंदोलन की शुरुआत किसानों के हित को लेकर मज़मुदार ने किया था. नक्सलवाद कॉमनिस्ट के आंदोलन का नाम था जो आज कई राज्यों के लिए नासूर बन गया है.
सन 1937-38 में मज़मुदार अपनी पढ़ाई छोड़ कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे.संगठन में शामिल होने के बाद वह मज़दूरों को संगठित करने में लग गए. इसके बाद मज़मुदार CPI पार्टी के किसान मोर्चे में चले गए,सीपीआई में जाने के बाद कई किसानों के मुद्दे को लेकर वह आवाज़ बुलंद कर रहे थे. उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत देश में थी अंग्रेजों ने मज़मुदार के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया. जिसके बाद वह कुछ महीनों तक भूमिगत हो गए. लेकिन अपने काम को नहीं छोड़ा अपने अन्य साथियों के द्वारा जमींदारों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करते रहे हैं.
देश आज़ाद हो गया लेकिन मज़मुदार ने अब भी अपने आंदोलन को रोका नहीं. जहां भी किसानों की समस्याओं के बारे में इन्हें जानकारी मिलती थी. वह वहां पहुंच कर आंदोलन को धार देते थे. इस बीच 1954 में जलपाईगुड़ी के एक साथी सदस्य लीला से वह विवाह बंधन में बंध गए. इस दौरान शादी के बंधन में बंधने के बाद दोनों ने जलपाईगुड़ी में कई आंदोलन का शंखनाद किया.
इसके बाद किसानों की मुद्दे को लेकर 25 मई1967 में बंगाल के नक्सलबाड़ी में जमींदारों के खिलाफ किसानों का आंदोलन चल रहा था. इस आंदोलन की जानकारी मिलने के बाद चारु मज़मुदार भी वहां पहुंच गए. लेकिन यहां जमींदार अपने रसूख का इस्तेमाल कर पुलिसिया कार्रवाई से किसानों को दबाने की कोशिश कर रहे थे. पुलिस का दबाव बढ़ता देख चारु मज़मुदार ने यहां एक इंस्पेक्टर को मौत के घाट उतार दिया था. बताया जाता है कि देश में यहीं से विद्रोह की शुरूआत हुई. इसे यह भी कह सकते है कि नक्सलियों के द्वारा पहला मर्डर देश में यहीं किया गया था. इस घटना के बाद ठीक दूसरे दिन 26 मई को भारी संख्या में पुलिस पहुंच कर 11 किसानों को गोलियों से भून दिया था. इसके बाद से नक्सलवाद आंदोलन जोर पकड़ने लगा.
इस दौरान चारु मज़मुदार की मुलाकात कानू सान्याल और जंगल संथाल से हुई. तीनों की विचारधारा मिलती जुलती थी.तीनों का मानना था कि सत्ता बिना हथियार के दम पर नहीं हाशिल की जा सकती है.
नक्सलवाद आंदोलन का नेतृत्व तीनों ने मिल कर किया.किसानों पर पुलिस के द्वारा चलाई गई गोली के बाद इनके साथ बड़ी संख्या में लोग जुटते गए.इस बीच 1972 में पुलिस ने मज़मुदार को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार करने के बाद कोलकाता के लाल बाज़ार थाना में रखा था. इस दौरान मज़मुदार को पुलिस ने इतना टॉर्चर किया था कि उसकी चीख सड़को पर सुनाई देती थी. आखिर कार उसने 28 जुलाई 1972 को लॉकप में ही अंतिम सांस लिया था. इस मामले में यह भी बताया जाता है कि पुलिस ने कोई केस दर्ज नहीं किया था.बिना केस दर्ज किए ही मज़मुदार को थाना में रख कर टॉर्चर कर रहे थे.
मज़मुदार की मौत के बाद संगठन को आगे इनके साथी और पत्नी लेकर गयी. मज़मुदार की मौत के बाद लोगों की भावना इसके साथ जुड़ी और नक्सलवाद आंदोलन पूरे देश में फैल गया. लेकिन अब नक्सलवाद अपने सिद्धांतों से भटक कर दूसरे राह पर चल दिया है. संगठन में ही असमानता और लूट खसोट शुरू है.जो संगठन किसानों की बात करता था वह अब लेवी वसूलने में लग गया है.