टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : देश में ऐसे कई रहस्यमय मंदिर है, जिनके सवालों का जवाब आज तक नहीं मिला. कई मंदिरों में ऐसी अनोखी बातें हैं जिसे जानकर आप भी चौंक जाएंगे. विज्ञान के पास भी इन बातों का कोई सटीक जवाब नहीं है. ऐसी ही रहस्यमई मंदिरों में से एक उड़ीसा का जगन्नाथ पुरी मंदिर भी है. जिसमें कई ऐसे राज छुपे हैं, इसके बारे में आज तक पता नहीं लगाया जा सका है.
भगवान विष्णु का कृष्ण अवतार
उड़ीसा की पूरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर अपने आप में एक चमत्कार है. इस मंदिर की काफी मान्यता है. यहां भक्तों की भीड़ भी काफी देखने को मिलती है. यह भव्य मंदिर भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार को समर्पित है. जो अपने बड़े भाई बलभद्र और अपनी बहन सुभद्रा की प्रतिमा के साथ यहां पर विराजमान है. जिनकी जगन्नाथ के रूप में पूजा की जाती है.
हवा के विपरीत दिशा में लहराता है ध्वज
इस मंदिर के बारे में कई ऐसे तथ्य है, जो काफी आश्चर्यजनक है. सबसे पहले आपको बता दे कि यहां इस मंदिर में जो ध्वज लगा है .वह हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है. यह मंदिर 45 मंजिला इमारत के बराबर ऊंचा है. यह ध्वज प्रतिदिन बदल जाता है यहां के पुजारी मंदिर के शिखर पर चढ़ के इस ध्वज को हर दिन बदलते हैं.
मंदिर की नहीं बनती कोई भी छाया
यहां दूसरी सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इस मंदिर में कोई भी छाया नहीं है. यानी दिन का समय हो या शाम का समय हो मंदिर की कोई भी छाया आपको नहीं दिखेगी. तेज प्रकाश होने के बावजूद इसकी छाया नहीं बनती. वैज्ञानिकों के पास भी इस बात का कोई भी स्पष्ट रूप से जवाब नहीं है. यह अपने आप में एक चमत्कार है. अब भी इसे लेकर कोई शोध नहीं किया गया.
चार धाम में एक है ये मंदिर
यह मंदिर 800 साल से भी अधिक पुराना है. इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि आप पूर्वी गंग वंश के राजा अनंत वर्मन देव द्वारा बनाया गया है. इस मंदिर को चार धाम के नाम से भी जाना जाता है. देश में कुल चार धाम है पहले बद्रीनाथ दूसरा द्वारका और तीसरा रामेश्वरम वही चौथा जगन्नाथ धाम. इस मंदिर को बनाने में कई दशक लगे थे. मंदिर 400000 वर्ग फुट से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है और तकरीबन 214 फीट ऊंचाई तक यह मंदिर बना है.
यहाँ रथ यात्रा काफी प्रसिद्ध
इस मंदिर की रथ यात्रा काफी प्रसिद्ध है. जगन्नाथ पुरी मंदिर में हर साल जून और जुलाई के महीने में यह यात्रा निकाली जाती है. इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की देवताओं को मंदिर से बाहर निकाला जाता है और रथ में विराजमान किया जाता है. इसके बाद यह रथ पूरे शहर में घूमती है. हजारों भक्त मिलकर इस रथ को ले जाते हैं.