रांची(RANCHI)-जैसे-जैसे लोकसभा 2024 का महासमर नजदीक आता दिख रहा है, गली नुक्कड़ से लेकर चाय की दुकानों तक में यह चर्चा तेज होती जा रही है कि अखाड़े में कौन उतरने जा रहा है. मुकाबला किसके किसके बीच होने जा रहा है. बात यदि एनडीए खेमा की करें तो वहां भी तस्वीर कुछ साफ नहीं है, संजय सेठ की पुनर्वापसी पर संशय बरकरार है. प्रदीप वर्मा से लेकर नगर विधायक सीपी सिंह अपना अपना दावा ठोक रहे हैं, दावा किया जा रहा है कि सीपी सिंह अपनी लम्बी राजनीतिक पारी का सम्मानपूर्ण विदाई चाहते हैं. जबकि प्रदीप वर्मा संठगन की पसंद हैं.
लेकिन यदि बात हम इंडिया गठबंधन की करें तो इतना तो साफ है कि यह सीट कांग्रेस के खाते में जाने वाली है, लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस एक बार फिर से सुबोधकांत सहाय के चेहरे पर दांव लगायेगी, या बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में किसी और चेहरे को सामने लायेगी.
यहां याद रहे कि जिस रामटहल चौधरी के खिलाफ सुबोधकांत अखाड़े में उतरा करते थें, भाजपा से उनकी विदाई हो चुकी है. हालांकि रामटहल चौधरी का अगला कदम क्या होगा, अभी उसकी तस्वीर साफ नहीं है, लेकिन 2019 में भाजपा छोड़ने के बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था, हालांकि वह कुछ खास नहीं कर पायें, लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वह मोदी की आंधी का दौर था, अब जबकि उस आंधी की गति खत्म होती दिख रही है, थमती दिखने लगी है, क्या रामटहल चौधरी एक बार फिर से अखाड़े में उतरेंगे यह सवाल अभी अनुत्तरित है.
जनता और जनमुद्दों से दूर खड़े नजर आते हैं सुबोधकांत सहाय
लेकिन मूल सवाल सुबोधकांत सहाय का है, चाय की दुकानों में यह चर्चा अक्सर होती है कि सुबोधकांत सहाय सिर्फ चुनाव के समय सक्रिय होते हैं, दिल्ली से टिकट लेते हैं और सीधे रांची उतर जाते हैं, और हार के बाद एक बार फिर से दिल्ली का फ्लाईट पकड़ वापस हो जाते हैं, उनका अधिकांश समय दिल्ली में गुजरता है, जमीन से कभी जुड़ाव नहीं रहता. सड़कों पर वह दिखलाई नहीं पड़तें, सत्ता विरोधी संघर्ष में उनकी हिस्सेदारी नहीं होती. कभी किसी ने उन्हे केन्द्र सरकार की नीतियों का विरोध करते नहीं देखा, वह कभी सड़क पर उतर लोगों के सुख दुख का हिस्सा नहीं बने. महंगाई, बेरोजगारी के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला.
रामटहल चौधरी पर दांव लगा इंडिया गठबंधन बिगाड़ सकता है भाजपा का खेल
इस हालत में सवाल यह भी है कि इंडिया गठबंधन किस चेहरे पर अपना दांव लगा सकती है, उसके पास सुबोधकांत सहाय के सिवा और कौन सा चेहरा है, यहां यह भी याद रखा जाना चाहिए कि कभी बंधू तिर्की ने भी तृणमूल कांग्रेस की टिकट पर रांची लोकसभा से चुनाव लड़ा था, और उनका परफोर्मेंस बुरा भी नहीं था, लेकिन अब उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लग चुकी है. एक और चेहरा जो इंडिया गठबंधन के पास था, वह था महुआ माजी का, और वह सुबोधकांत सहाय की तुलना में निश्चित रुप से बेहतर उम्मीदवार होती, लेकिन वह अब राज्यसभा सांसद बन चुकी है. तब क्या यह माना जाय कि रामटहल चौधरी के लिए इंडिया गठबंधन अपने दरवाजे खोल सकती है. यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि रांची लोकसभा के छहों विधान सभा रांची सदर, कांके, हटिया, खिजरी, सिल्ली से लेकर इच्छागढ़ में महतो मतदाताओं की एक बड़ी आबादी है, जिस सिल्ली को सुदेश महतो का गढ़ माना जाता है, वहां भी रामटहल चौधरी भारी उलटपलट की क्षमता रखते हैं.