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भक्तिकाल के महान कवि सुरदासजी की जयंती, जन्म से अंधा होने के बावजूद लिखे कई ग्रंथ, जानिए महान कवि के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य

भक्तिकाल के महान कवि सुरदासजी की जयंती, जन्म से अंधा होने के बावजूद लिखे कई ग्रंथ, जानिए महान कवि के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य

टीएनपी डेस्क(TNP DESK):आज 25 अप्रैल मंगलवार को हिन्दी भक्तिकाल के महान कवि और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि सूरदासजी की जयंती है.  हिन्दु धर्म के लोग हर बर्ष वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन कवि सूरदासजी की जयंती मनाते हैं. सूरदासजी को ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवियों में सुर्य के सामान माना जाता है. सूरदासजी भगवान कृष्ण के सबसे बड़े भक्त थे. उनका मन कृष्ण की भक्ति के आलावा कही भी नहीं लगता था. एक महान कवि और संगीतकार के साथ कृष्ण भगवान के बड़े उपासक थे.

जन्म से अंधा होने की वजह से घरवालों ने त्यागा

सूरदासजी का पूरा नाम मदनमोहन  था. लेकिन उनका वास्तविक नाम सूरध्वज था. इनका जन्म 1478 ई में मथुरा के रुनकता गांव में एक ब्राहम्ण परिवार में हुआ था. तो वहीं कुछ लोग 1483 में इनका जन्म का साल बताते हैं. इनके पिता का नाम रामदास गायक था. तो वहीं श्री वल्लभाचार्य उनके गुरु थे. जो सुरदासजी से महज दस दिन उम्र में बड़े थे. पुराणों की माने तो सुरदासजी जन्म से ही अंधे थे. इनके अंधे होने पर लोगों के विभिन्न राय है. कुछ लोगों के अनुसार सुरदासजी जन्म के कुछ समय बाद अंधे हुए थे. तो वहीं कुछ लोगों का मानना है कि से ही अंधे थे. अंधे होने की वजह से उनके परिवार ने छह साल की उम्र में ही उनका उनका त्याग कर दिया था. जिसके बाद उनका मन वैराग्य हो गया था.

सुरदासजी कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे

परिवार के लोगों के त्यागने की वजह से बचपन से ही सुरदासजी का मन संसारिक चीजों में नहीं लगता था. ये बहुत बड़े कृष्ण के भक्त थे. सुरदास जी ने कृष्ण भगवान की बाल लीलाओं पर कई कविता लिखी. आगे जाकर ये कृष्ण भक्ति काव्य धारा के बड़े कवि बन गये. ये 15वीं सदी के अंधे कवि और संगीतकार थे. जिन्होने कृष्ण की भक्ति को सारा गीत समर्पित किया. सुरदास ने कई ग्रंथ लिखे. लेकिन सूरसागर को ही प्रामाणिक माना जाता है. इसमे करीब सवा लाख पद है. जिसम से केवल 8 से 10 हजार पद ही अब तक उपलब्ध है.

सूरदासजी ने कई ग्रन्थ की रचनाएं की

सूरदासजी ने कई ग्रन्थ की रचनाएं की हैं. जिसमे मुख्य पांच ग्रन्थ है. सूर सागर, साहित्य लहरी, ब्याहलो सूर सारावली और  नल दमयन्ती सुरदासजी की लिखित ग्रंथ है. हालांकि इन ग्रंथों पर कुछ लोग संदेह व्यक्त करते हुए इनके अस्तित्व पर सवाल खड़े करते हैं. सुरदास को 15वीं और 16वीं शताब्दी का महान सुर कवि माना जाता है. जो कवि के साथ महान गायक थे. ये अपनी सारी रचनाओं गीतों, संगीतों और कविताओं में कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और प्यार को दर्शाते थे.

कविता में कृष्ण की बाल- लीलाओं का मनमोहक चित्रण किया है

घर से त्यागे जाने के बाद 6 साल की छोटी उम्र में यमुना नदी के किनारे रहने लगे थे. जिसकी वजह से कम उम्र में ही कृष्ण भगवान भक्ति शुरू कर दी. सुरदासजी कहते थे कि उनका मन कृष्ण भक्ति के आलावा किसी भी स्थान और काम में नहीं लगता है. कवि सूरदासजी ने भगवान श्रीकृष्ण की बाल- लीलाओं का मनमोहक और सुंदर चित्रण किया है.

कलयुग में होनेवाले विनाश पर की थी भविष्यवाणी

सूरदासजी जी ने बहुत पहले ही कलयुग में होनेवाले विनाश के बारे में भविष्यवाणी कर दी थी. उन्होने कहा था कि मन तू धैर्य क्यों नहीं रखता है. साल 2000 में ऐसा विकट काल आयेगा कि चारों दिशाओं में मौत का तांडव होगा. लोग अकाल मृत्यु से बेमौत मरेगें. पृथ्वी पर विनाश होगा.

गुरु श्री वल्लभाचार्य से महज दस दिन छोटे थे

लोगों का कहना है कि सूरदास के गुरु श्री वल्लभाचार्य इनसे उम्र में महज दस दिन बड़े थे. श्री वल्लभाचार्य  ने सूरदास को पुष्टिमार्ग में दीक्षित किया और भगवान कृष्ण के बचपन ती  लीला के पद गाने का दिया था. गुरु का आदेश मिलने के बाद उन्होने कई रचनाओं और कृष्ण भक्ति में डूबे गीत गाया. सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के पास के पारसौली गांव में 1583 ईं में हुई थी. सुरदास जी का जीवनकाल काफी संदेहों से घिरा हुआ है. इनके जीवन से जुड़ी हर तथ्यों पर लोगों की अलग-अलग राय है.

रिपोर्ट-प्रियंका कुमारी

 

Published at:25 Apr 2023 04:12 PM (IST)
Tags:Birth anniversary of Surdasji the great poet of Bhakti period despite being blind from birth wrote many books know interesting facts related to the life of the great poet
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