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Bihar Politics: नीतीश कुमार के इस संकल्प कि अब कहीं नहीं जाएंगे के लगातार दुहराने के  क्या-क्या हो सकते हैं मतलब, पढ़िए

Bihar Politics: नीतीश कुमार के इस संकल्प कि अब कहीं नहीं जाएंगे के लगातार दुहराने के  क्या-क्या हो सकते हैं मतलब, पढ़िए

Bihar Politics: बिहार की राजनीति 2025 के चुनाव में किस करवट बैठेगी, क्या-क्या नए  समीकरण बनेंगे, कौन क्या बोलेगा और करेगा, इन सब की चर्चा बिहार के कोने-कोने में शुरू है.  महागठबंधन में सीएम  फेस को लेकर किच -किच  जारी है,तो एनडीए में भी नीतीश कुमार को परेशनी है.  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बार-बार कह रहे हैं कि वह अब इधर-उधर कहीं नहीं जाएंगे, जहां है वहीं रहेंगे. इसके कई मतलब निकाले  जा रहे है.  मधुबनी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भी नीतीश कुमार ने संकल्प दोहराया था कि वह कहीं नहीं जाएंगे.  मतलब बीजेपी के साथ रहेंगे. 

48 घंटे के बाद संकल्प को दुहराने की क्यों जरुरत पड़ी 
 
उसके 48 घंटे के बाद नीतीश कुमार पटना में जदयू के एक कार्यक्रम में भी यही बात दोहराई कि  कुछ लोगों ने गड़बड़ी कर दी थी.  उधर चले गए थे, अब कहीं नहीं जाएंगे.  जिन लोगों के साथ हैं, उन्हीं के साथ रहेंगे.  बात इतनी ही नहीं थी, उन्होंने राजद के साथ जाने का ठीकरा जदयू नेता ललन सिंह पर फोड़  दिया था और वही बात उन्होंने कार्यक्रम में भी कही.  ललन सिंह उस समय जदयू के अध्यक्ष हुआ करते थे, फिलहाल वह केंद्रीय मंत्री है.  अब नीतीश कुमार के बार-बार इस बात के दोहराने से सवाल उठ रहे हैं कि आखिरकार नीतीश कुमार यह संदेश किसे  दे रहे हैं? क्या उन्हें भाजपा पर भरोसा नहीं है? क्या वह सोच रहे हैं कि अगर चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के लिए उनका नाम आगे नहीं किया गया, तब क्या होगा? 

यह संदेश लालू प्रसाद यादव को तो नहीं है 

क्या यह संदेश वह लालू प्रसाद यादव को दे रहे हैं कि  अब वह कहीं नहीं हिलेंगे.  या फिर हो सकता है कि जदयू के नेताओं को एकजुट रखने के लिए यह  संदेश दे रहे हो? राजनीतिक पंडित बताते हैं कि बिहार में एनडीए और महागठबंधन में एक जैसा पेंच  फंसा हुआ है.  भाजपा के नेता तो दावे के साथ कह रहे हैं कि नीतीश कुमार के चेहरे पर ही एनडीए बिहार में चुनाव लड़ेगा .  लेकिन इस पर शायद नीतीश कुमार भरोसा नहीं कर रहे है.  इधर, महागठबंधन में भी तेजस्वी यादव के नाम पर कांग्रेस ने पेंच  फंसा रखा है.  माले  ने भी मंगलवार को साफ कर दिया कि चुनाव के बाद जिस पार्टी को अधिक सीट मिलेगी, उसका मुख्यमंत्री होगा.  हम लोग  बात नीतीश कुमार की कर रहे थे.  तो जब भी कोई भाजपा का छोटा ,बड़ा नेता नीतीश कुमार के बारे में कुछ कह देता है , तो वह चुप हो जाते हैं, लेकिन प्रवक्ता बोलने लगते है.  क्या नीतीश कुमार को यह खतरा है कि चुनाव के पहले जदयू के कुछ लोग इधर-उधर जा सकते है.  

क्या जदयू को एकजुट रखने की कोशिश कर रहे नीतीश कुमार 

इसलिए वह ऐसा कर  पार्टी को एकजुट रखने की कोशिश कर रहे है.  यह बात भी 16 आने सच है कि बार-बार इधर-उधर जाने से नीतीश कुमार की छवि पर बुरा असर पड़ा है.  वैसे चाहे बीजेपी के नेता हो  या महागठबंधन के अथवा जदयू के ही क्यों ना हो? सबके मन में कोई ना कोई शंका पैदा होती ही होगी.  इधर चर्चा तो यह है कि जदयू टूट सकता है.  जदयू के नेता भी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार को अगर पार्टी में नहीं लाया गया तो जदयू नहीं बचेगा.  ऐसे में नीतीश कुमार के पास भरोसा देने के सिवा कोई विकल्प बचता ही नहीं है.  उन्हें एनडीए को भी भरोसा देना है और जदयू को भी भरोसा देना है.  साथ ही साथ क्या लालू प्रसाद यादव को भी संदेश देना है.  जो भी हो लेकिन बिहार का चुनाव इस बार कई रंगों से रंगा  दिखेगा.  इसमें कोई संदेह नहीं है सीटों के बंटवारों को लेकर एनडीए में भी माथापच्ची  होगी तो महागठबंधन को भी सीटों का बंटवारा करना बहुत आसान नहीं होगा. 

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो 

Published at:30 Apr 2025 09:20 AM (IST)
Tags:DhanbadBiharPoliticsNitish KumarSafai
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