टीएनपी डेस्क (Tnp desk):-सियासत सत्ता के लिए होती है और स्वार्थ इसकी तासीर है. जो वक्त का इंतजार करती है औऱ मौके पर ही अपना असर दिखा जाती है. इस सियासी करतब और कसरत से किसी को फायदा, तो किसी को नुकसान होता ही है. लाजमी है, इसी को तो राजनीति बोला जाता है. जहां की सीधी,सपाट और समतल राहें नहीं होती. हमेशा चुनौतियों की अगर-मगर वाली डगर रहती है. अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही देख लीजिए. जिसने एक तीर से दो निशाने साध गये .
तेजस्वी को लगा जोर का झटका
राजद से अलग होकर एनडीए में फिर शामिल हुए नीतीश ने मौजूदा वक्त की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा फ्लोर टेस्ट पास कर ली. विश्वास मत तो सियासत के धुरंधर नीतीश ने हासिल किया ही. इसके साथ ही अपने विरोधियों को झटका भी जबरदस्त दिया.
कयास तो फ्लोर टेस्ट के पहले कई लगाए जा रहे थे, जेडीयू,कांग्रेस के विधायक के टूटना का भी खतरा मंडरा रहा था. आखिरकार हुआ वही, जो होना था. राजद के तीन विधायक विश्वास मत के दौरान पलट गये और नीतीश के पक्ष में मत दिया. तेजस्वी यादव ने अपने सभी विधायकों को निगरानी रखते हुए नजरबंद कर दिया था. लेकिन, न तो उनकी सख्ती और न ही उनकी तरकीब काम आयी. उनके तीन विधायक नीतीश बाबू के साथ हो गये.
नीतीश का निशाने पर लगा तीर
स्पीकर अवध बिहारी चौधरी के खिलाफ आए आविश्वास प्रस्ताव के पहले ही आरजेडी के नीलम देवी, चेतन आनंद और प्रहलाद यादव सत्ता पक्ष की तरफ बैठे नजर आए. तीनों ने नीतीश के पक्ष में मतदान करके अपने इरादे जाहिर कर दिए.
इनका टूटना राजद के लिए बड़ा नुकसान भी है और एक गहरा संदेश भी छोड़ गया, क्योंकि ये तीनों विधायक अपनी जातियों के साथ ही जमीन पर भी अच्छी पकड़ रखते हैं. मोकामा सीट से विधायक नीलम देवी भूमिहार जाति से आती है और बाहुबली विधायक अनंत सिंह की पत्नी है. उनके टूटने से बिहार में भूमिहार वोटर्स के बीच एक संदेश जाएगा . इधर, चेतन आनंद जो की आनंद मोहन के बेटे हैं. उन्होंने भी राजद से छिटक गये या कहे कन्नी काट गये. राजपूत बिरादरी से आने वाले चेतन आनद का जेडीयू की की तरफ मुड़ने से राजपूत मतदाताओं के बीच संदेश जाएगा , क्योंकि आनंद मोहन का अच्छा-खासा पकड़ राजपूत लॉबी के बीच है. ठाकुरों के वोट बैंक टूटने से राजद पर असर पड़ेगा. चेतन आनंद ने तो इस पर फेसबुक पोस्ट भी कर डाला और लिखा कि ''ठाकुर के कुआं में पानी बहुत है, सबको पिलाना है'' चेतन के इस इरादे से तो यही झलकता है कि किस हद तक वो जाना चाहते हैं. बिहार में राजपूत लंबे समय से राजद के पक्ष में वोट करते रहैं है, जबकि एक बड़ा हिस्सा बीजेपी को वोट करता आया है. लाजमी है कि चेतन के राजद छोड़ने पर इसका असर दिखाई पड़ेगा.
क्या राजद का यादव वोट खिसकेगा ?
राजद से पाला बदलने वाले तीसरे विधायक प्रह्ललाद यादव थे. उनके हटने से एक बड़ा संदेश यादव वोटर्स के पास जाएगा. आरजेडी के संस्थापक सदस्यों में से एक प्रह्ललाद यादव रहे हैं औऱ तीन बार के विधायक बनें हैं. लालू यादव की पार्टी राजद का वोट बैंक यादव रहा है. लेकिन, प्रह्ललाद यादव के किनारा करने से एक संदेश तो जाएगा ही. इसके साथ ही कई सवाल भी हवा में घूमेंगे कि आखिर इतना पुराने लीडर ने पार्टी से क्यों दूरी बना ली.
बिहार की सियासत की पलटी का एक चेप्टर तो खत्म हो गया . राज्य के आवाम ने भी सबकुछ देख लिया है. अब लोकसभा चुनाव के लिए कुछ महीने का ही वक्त बच गया है. असल परीक्षा बीजेपी, जेडीयू की अब होगी. यहां चुनौती एनडीए और इंडिया की है. बिहार की सत्ता पर तो नीतीश कुमार ही आसीन हुए. लेकिन, इस बार पाल बदलकर फिर वहीं आ गये, जहां लंबे समय तक रहें यानि बीजेपी के साथ . अब सवाल ये है कि भाजपा-जेडीयू मिलकर लोकसभा चुनाव का बेड़ा कैसे पार करती है. क्योंकि पिछले चुनाव में बिहार की 40 लोकसभा सीट में एनडीए को 39 में जीत मिली थी. सिर्फ 1 सीट ही विरोधियों के पास गयी थी. यहां असली इम्तहान तो इस कामयाबी को बरकरार रखने की है, क्योंकि, एक कहावट है कि कभी भी अपने प्रतिदंद्वी को कमजोर न समझना और न ही आंकना चाहिए. खैर इसका सार यही है कि बिहार की जनता जनार्दन ही मालिक है. जो बड़ी समझदारी से फैसला लेगी . तब तक हमे कुछ दिनों का इंतजार ही करना चाहिए. आखिर जनता इस सियासी करवट को कैसे देखती है.
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह