रांची(RANCHI) : झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल में बदलती डेमोग्राफी के दावे के बीच अब कई खुलासे सामने आए हैं. जिस दस्तावेज के जरिए घुसपैठियों को बसाने का दावा किया जा रहा था. अब उस संस्था ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं. झारखंड हाई कोर्ट में दाखिल शपथ पत्र में UIDAI यानी आधार कार्ड की ओर से बताया गया कि हम नागरिकता नहीं देते हैं. आधार का इस्तेमाल सिर्फ पहचान के लिए है. कहीं भी जिक्र नहीं है कि सिर्फ आधार कार्ड होने से ही भारत की नागरिकता का पत्र किसी व्यक्ति को मिल जाता है.
आधार कार्ड सिर्फ नागरिक की एक पहचान
झारखंड हाई कोर्ट में बांग्लादेशी घुसपैठ और डेमोग्राफी पर चल रही सुनवाई के बीच कोर्ट में कई शपथ पत्र अलग अलग दाखिल किए गए. जिसमें आधार कार्ड की ओर से कोर्ट को बताया गया है कि आधार कार्ड सिर्फ नागरिक की एक पहचान है. किसी भी सरकारी काम में अपनी पहचान के लिए एक व्यक्ति द्वारा आधार कार्ड का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही आधार कार्ड से सरकार की योजनाओं का लाभ भी मिलता है, कई सुविधा दी जाती है. लेकिन कभी भी आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं हो सकता है. आधार कार्ड बनाने में भी है.स्थानीय मुखिया से लेकर अन्य की दस्तावेजों को वेरीफाई कराया जाता
आखिर कैसे बना फर्जी आधार कार्ड
ऐसे में आधार कार्ड के हाथ खड़ा कर देने के बाद अब सवाल ये है कि, आखिर फर्जी आधर कार्ड कैसे बन गया. आबादी बढ़ी तो दस्तावेज बने फिर उन दसतेवज के जरिए आधार कार्ड बना दिया गया. अब इस मामले की भी जांच होगी की अगर किसी स्थानीय अधिकारी या मुखिया द्वारा पहचान किया गया है तो फिर उनसे भी सवाल हो सकते हैं कि आखिर संबंधित व्यक्ति की पहचान किस आधार पर की गई. अगर उसके बाद किसी योजना का लाभ भी लिया गया तो वह कैसे और क्यों दिया गया. क्या सच में घुसपैठ को एक पहचान देने का खेल चल रहा है. आखिर फर्जी आधार कार्ड कैसे बनाया जा रहा है.
अगली सुनवाई 17 सितंबर को
बता दें कि, संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ के मामले में झारखंड हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है. सैयद डैनिश डैनियल नाम के व्यक्ति ने संथाल परगना को लेकर झारखंड हाई कोर्ट का रुख किया है. जिसमें अब सुनवाई अहम कड़ी तक पहुंच चुकी है. कोर्ट में राज्य और केंद्र सरकार के साथ साथ आधार कार्ड ने भी शपथ पत्र दाखिल किया है. कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई 17 सितंबर को करने वाली है. जिसमें कई चीजें निकल कर सामने आएंगी. लेकिन अब दस्तावेज से लेकर आकड़ों के आधार पर कोर्ट कमिटी बनाने का आदेश दे सकता है. फिलहाल इसे लेकर राजनीतिक पारा भी गर्म है.
NRC को किया जा सकता है लागू
वहीं, अगर कमिटी बनती है तो फिर बांग्लादेशियों की शिनाख्त करने के लिए NRC को लागू किया जा सकता है. अगर ऐसा होता है तो झारखंड सरकार के उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई हो सकती है. जिन्होंने शपथ पत्र के जरिए घुसपैठ का एक भी मामला नहीं होने का दावा किया था. बांग्लादेशी घुसपैठ के जरिए तमाम दावों की सच्चाई NRC से ही खुलेगी. अब जब 17 सितंबर को इस मामले में सुनवाई होगी और जिसके बाद कोर्ट निर्णय लेगी की आखिर इस पूरे मामले को लेकर क्या हो सकता है. देखा जाए तो बांग्लादेशी घुसपैठ का मामला कोई राजनीतिक या कोई मुद्दा नहीं है, बल्कि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है. किसी भी देश या राज्य में फर्जी तरीके से घुसपैठ होती है और इसपर रोक थाम नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में भयावह रूप ले सकता है. स्थानीय संस्कृति और भौगोलिक हालत के लिए खतरा बन जाता है.
रिपोर्ट: समीर हुसैन