टीएनपी डेस्क (TNP DESK)- संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पर बहसों का दौर जारी है, हालांकि लोकसभा से 454 मतों के साथ यह बिल पारित हो चुका है, लेकिन राज्यसभा में अभी भी इसकी किस्मत का फैसला होना बाकी है, लेकिन दूसरी सच्चाई यह भी है कि आज देश में महिला आरक्षण से ज्यादा चर्चा इस बात पर हो रही है कि मोदी सरकार ने बिल पारित करने की जल्दबाजी में पिछड़ा और अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं को दरकिनार कर दिया और कोई ताज्जुब नहीं होगा यदि 2024 के महासंग्राम में महिला आरक्षण बिल में कोटा के अन्दर कोटा का सवाल एक अहम मुद्दा सामने आये. जहां भाजपा की कोशिश यह साबित करने की होगी कि महिला आरक्षण बिल को पारित कर उसने मास्टर स्ट्रोक खेल दिया, वहीं विपक्ष दलों की रणनीति पिछड़ी और अल्पसंख्यक महिलाओं के कोटे की हकमारी को उछाल कर भाजपा के इस कथित जीत के जश्न पर पानी फेरने की होगी.
लेकिन यहां सवाल गोड्डा लोकसभा क्षेत्र का है, जहां से लगातार तीन बार विजय पताका फहरा कर निशिकांत दुबे अपनी जमीनी ताकत का प्रर्दशन कर दिया है. और माना जा रहा है कि इस बार भी भाजपा निशिकांत को ही अपना उम्मीदवार बनायेगी, लेकिन यहां मुख्य सवाल विपक्ष यानि इंडिया गठबंधन का होगा, निशिकांत के मुकाबले कौन! आज यह सवाल गोड्डा के हर चाय की दुकान पर उछाला जा रहा है.
प्रदीप यादव के साथ जीत हार के तर्क
और इसके जवाब में जो नाम सामने आ रहे हैं, उसमें एकरुपता नहीं है, सबके अपने अपने दावे और जीत हार के तर्क हैं. जहां प्रदीप यादव के समर्थकों का दावा है कि दो लाख यादव मतदाता और करीबन तीन लाख अल्पसंख्यक मतदातों के साथ कोयरी कुर्मी महतो मतदाताओं के साथ प्रदीप यादव का दावा मजबूत हैं, वहीं उनके विरोधी खेमे का दावा ठीक इसके उलट हैं, इस खेमे का कहना है कि जब तक निशिकांत के सामने फुरकान अंसारी मैदान में रहें, जीत हार यह अंतर एक बार महज 10 हजार तो दूसरी बार 60 हजार की रही, लेकिन जैसे ही प्रदीप यादव ने मोर्चा संभाला, निशिंकात दुबे ने करीबन दो लाख मतों के अंतर से अपनी विजय पताका फहरा कर यह साफ कर दिया कि निशिकांत के मुकाबले प्रदीप यादव कहीं नहीं टिकते. हालांकि इस मामले में पहले पक्ष का कहना है कि यह अंतर इसलिए बढ़ा क्योंकि वह मोदी के उफान का दौर था, और वह आंधी अब गुजर चुकी है, और विपक्ष भी अब पहले वाला नहीं रहा, अब उसकी संयुक्त कमान होगी और संयुक्त उम्मीदवार होगा.
कोउ नृप होई हमै का हानि
लेकिन जमीनी जानकारों का दावा है कि फुरकान अंसारी के मैदान में रहने से अल्पसंख्यक मतदाताओं में एक प्रकार की आक्रमता रहती है, वह जी जान से मतदान की कतार में उतरते हैं, लेकिन जैसे ही उनके सामने कोई दूसरा चेहरा होता, उनमें यह भाव भर जाता है कि कोउ नृप होई हमै का हानि और यहीं से निशिकांत जीत की ओर अग्रसर होते नजर आने लगते हैं. इस प्रकार फुरकान के चाहने वाले का दावा है कि आज भी फुरकान सबसे मजबूत उम्मीदवार है, जिनके अन्दर निशिकांत को पटकनी देने की ताकत है, हालांकि जब उनके सामने 2014 के उस मुकाबले के आंकडे को सामने रखा जाता हैं, जब निशिकांत ने उन्हे 60 हजार से अधिक मतों से पटकनी दी थी तो उसका जवाब भी फिर से वही आता है कि वह मोदी की आंधी का दौर था, और उस दौर में भी वह पहली बार 10 हजार तो दूसरी बार महज 60 हजार मतों से पराजित हुए थें, लेकिन इस बार फिजा में बदलाव है, हवा बदल चुकी है, और खुद निशिकांत के खिलाफ काफी असंतोष है, हालांकि यह असंतोष खुले रुप से दिखलायी नहीं देता, लेकिन जैसे ही अवसर सामने आयेगा यह गुस्सा बाहर निकलेगा.
निशिकांत समर्थकों का दावा
लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि निशिकांत के समर्थक पिछले 10 सालों में उनके द्वारा किये गये कामों की लिस्ट को गिनाते हैं, वह देवघर एम्स का मामला हो या एयरपोर्ट का, आईआईटी पॉलिटेनिक का मामला हो या आजादी के 75 वर्षों के बाद गोड्डा को रेलवे से जोड़े जाने का. निशिकांत की एक एक उपब्धियां गिनाई जाती है.
महागामा विधायक दीपिका पांडेय का जलबा
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती, गोड्डा के चुनावी अखाड़े के अभी और कई किरदार हैं, इसमें से एक नाम महागामा विधायक दीपिका पांड्ये का भी आता है, यह वही दीपिका पांडेय है, जिन्हे निशिकांत ने सार्वजनिक रुप से नगर वधू कहा था, काफी हंगामें के बाद भी निशिकांत ने इस अभद्रता के लिए माफी नहीं मांगी और राजनीति की विद्रूपता देखिये, भाजपा ने इसी निशिकांत को महिला आरक्षण के सवाल संसद में प्रथम वक्ता बनाया. निशिकांत की एक और कमजोर नस उनकी कथित फेक डिग्री है, जिसको लेकर बंगाल की लोकसभा सदस्य महुआ मोइत्रा सवाल दर सवाल खड़ी करती रहती है, कभी उनकी स्नातक की डिग्री सवालों के घेरे में होती है, तो कभी उनकी दसवीं के प्रमाण पत्र पर ही सवाल खड़ा किया जाता है.
ब्राह्मण कुर्मी समीकरण को साध सकती है दीपिका
लेकिन यहां सवाल दीपिका का गोड्डा के चुनावी अखाड़े में उतरने का है, दावा किया जा रहा है कि इंडिया गठबंधन के अन्दर उनके नाम पर भी गंभीरता से विचार हो रहा है. दीपिका के पक्ष में सबसे बड़ी बात यह है कि वह खुद तो ब्राह्मण जाति से आती है, जिसकी संख्या गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में करीबन 2.65 लाख है, और जबकि ससुराल पक्ष की ओर से वह कुर्मी जाति से आती है, जिसकी आबादी वहां करीबन 2 लाख से उपर हैं, इस प्रकार एक अच्छा खासा सामाजिक समीकरण उनके पक्ष में खड़ा होता है. निशिकांत के विपरीत दीपिका को काफी सौम्य और मृदूभाषी माना जाता है, जमीन पर भी उनकी गतिविधियां बनी रहती है. और सबसे बड़ी बात दीपिका गोड्डा की मूलवासी है, जबकि निशिकांत एक बाहरी चेहरा, हालांकि इंडिया गठबंधन अंतिम समय में किस चेहरे को चुनावी अखाड़े में उतारता है, यह देखना की बात होगी. लेकिन इतना साफ है कि दीपिका एक सशक्त उम्मीदवार हो सकती है.
छुपा रुस्तम साबित हो सकते हैं कीर्ति झा आजाद
लेकिन इन सभी नामों से अलग बीच बीच एक नाम कीर्ति झा आजाद का उछलता रहता है, कीर्ति झा खुद भाजपा के साथ रहे हैं. और दरभंगा लोकसभा से संसद पहुंचे थें, लेकिन बाद में इनका भाजपा से मोहभंग हो गया. और यह प्रखर रुप से मोदी सरकार की नीतियों के आलोचक हो गयें, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के बेटे और भारतीय क्रिकेट टीम के हरफनमौला खिलाड़ी कीर्ति झा आजाद इसी गोड्डा की भूमि से हैं. इस प्रकार उन पर बाहरी होने का ठप्पा भी नहीं है, इनके समर्थकों और स्थानीय चुनावी रणनीतिकारों की नजर में कीर्ति झा को यदि टिकट दिया जाता है तो सभी चुनावी समीकरण उलट पलट सकते हैं, क्योंकि कीर्ति झा के मैदान में आने के बाद इंडिया गठबंधन के अन्दर का सारा विवाद थम सकता है, दीपिका पाडेंय सिंह, प्रदीप यादव के साथ ही खुद फुरकान अंसारी भी पूरे दम के साथ इनकी जीत में अपना खून पसीना बहा सकते हैं. तब क्या माना जाय कि कीर्ति झा आजाद गोड्डा संसदीय सीट से इंडिया गठबंधन का छुपा रुस्तम खिलाड़ी है, और क्रिकेट की पीच की तरह वह गोड्डा के सियासी अखाड़े में अपने चौंकों छक्कों से निशिकांत की बोलती बंद कर सकते हैं, इसका जवाब तो आने वाले दिनों में मिलेगा, फिलहाल हम गोड्डा की इस कथा को इस टिप्पणी के साथ विराम देना चाहेंगे कि यदि गोड्डा में पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक समीकरण को इंडिया गठबंधन ठीक से फिट कर पाता है और कुर्मी मतदाताओं की गोलबंदी के लिए गोड्डा के अखाडे में इंडिया गठबंधन के सूत्रधार नीतीश कुमार की बैटिंग करवाता है तो इंडिया गठबंधन की जीत पर कोई सशंय नहीं होगा. क्योंकि उसी गोड्डा के सियासी मैदान में जयराम महतो की बैटिंग होने वाली है, बाहरी भीतरी का सवाल तब अपने उफान पर होगा और इसका सीधा नुकसान निशिकांत को होना तय है.