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राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता और न कोई दुश्मन, पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई इसका सबसे सटीक उदाहरण, देखिए ये रिपोर्ट 

राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता और न कोई दुश्मन, पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई इसका सबसे सटीक उदाहरण, देखिए ये रिपोर्ट 

पटना(PATNA): बिहार में राजपूतों पर मजबूत पकड़ के अलावा सवर्ण जातियों में भी पैठ होने की वजह से ही कल तक पूर्व सांसद आनंद मोहन की खिलाफत करने वाली राजनीतिक पार्टियां, आज उनके पक्ष में खड़ी दिख रही है. आनंद मोहन तो जेल से रिहा हो गए लेकिन चर्चाएं उनके पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई है. चर्चा के मुताबिक नीतीश सरकार फांसी की सजा बरकरार रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गई थी. इतना ही नहीं 2012 में  जेल मैनुअल में जिस शब्द को जोड़कर रिहाई के दरवाजे को बंद किया गया था, 2023 में उसे हटा दिया गया. 

लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि डीएम की नहीं, सरकार की हत्या है

1994 में हत्या पर लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि डीएम की नहीं, सरकार की हत्या है लेकिन इन बातों को भुला दिया गया है. राजनीति में न कोई दोस्त होता है और न कोई दुश्मन. इसका सर्वाधिक उपयुक्त उदाहरण आनंद मोहन प्रकरण को कहा जा सकता है. 1990 का दशक था, जाति की रंग में सराबोर बिहार की राजनीति देश दुनिया में चर्चित हो रही थी. कई इलाकों में बहुबलियों का  समानांतर दबदबा था. इन्हीं में से एक आनंद मोहन भी थे. उस समय उनकी तूती कोसी से लेकर मिथिलांचल के इलाके तक बोलती थी. बिहार में जातिवाद इतना अधिक हावी था कि हर कोई किसी न किसी गुट में रहने को विवश था.

आनंद मोहन का राजनीतिक सफर 

वैसे तो आनंद मोहन 17 साल की उम्र में ही जेल जा चुके थे. पर उनकी राजनीतिक यात्रा 1990 से शुरू हुई. सहरसा जिले के महिषी विधानसभा सीट से पहली बार विधायक चुने गए थे. उस समय प्रदेश में लालू प्रसाद की सरकार थी .1996 में आनंद मोहन पहली बार शिवहर लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए. 1996 में गठित लोकसभा का कार्यकाल 13 महीने का ही रहा. देश में मध्यावधि चुनाव हुए .1998 में आनंद मोहन ने फिर शिवहर सीट जीत ली थी .1999 में एक बार फिर लोकसभा का चुनाव हुआ, इस चुनाव में आनंद मोहन बिहार पीपुल्स पार्टी के टिकट पर उम्मीदवार थे और वह चुनाव हार गए. 2004 में उन्होंने एक बार फिर कोशिश की मगर  उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा.  1994 में गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जब हाजीपुर होकर गुजर रहे थे तो भीड़ ने पीट-पीटकर उनकी हत्या कर दी. दरअसल आनंद मोहन के समर्थक बाहुबली छोटन शुक्ला की हत्या हो गई थी. उस हत्या के खिलाफ भीड़ आक्रोशित थी और यह घटना घट गई. हत्याकांड में आनंद मोहन को सजा हुई. 26 अप्रैल 2023 को वह जेल से रिहा हुए हैं, इसके साथ ही बिहार की राजनीति गर्म हो गई है.और रिहाई के राजनीतिक माने मतलब निकाले जाने लगे है.

रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो 

Published at:28 Apr 2023 11:34 AM (IST)
Tags:बिहार patna aanand mohan former MP Anand Mohan initish kumar
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