रांची(RANCHI): झारखंड के विधानसभा चुनाव मे क्या इंडी गठबंधन का खेल बिगड़ने वाले है. पूर्व मुख्यमंत्री मधुकोड़ा की जिस तरह से भाजपा में इंट्री हुई है. वो पश्चिमी सिंहभूम में पड़ने वाले तमाम विधानसभा सीटों का समीकरण ही बदल सकता है. वजह साफ है इन इलाकों मे 54 प्रतिशत आबादी वाले “हो” जनजाति में मधु कोड़ा सबसे बड़े नेता माने जाते है और इस जनजाति के बूते पर ही वो या उनकी पत्नी राजनीति मे बड़ा रसूख रखते है. मधु कोडा के भाजपा में शामिल होने से पाँच विधानसभा सीट पर खेल बिगड़ सकता है. जिस सिंहभूम में भाजपा का खाता नहीं खुला था. अब वहां कमल खिलाने की जिम्मेवारी एक रणनीति के तहत मधु कोड़ा के कंधे पर है. जाहिर है भाजपा का ये गेम प्लान झामुमो का टेंशन बढ़ा सकता है. मधु कोड़ा को चुनौती देने वाला नेता की खोजना अब झामुमो के लिए बड़ा सरदर्द होगा इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. कोल्हान के इस इलाके में जातिगत समीकरण एक बड़ा फैक्टर है या यू कहे “हो” भाषा बोलने वालों के बीच मधु कोड़ा बड़ा गुल खिला सकते है .
कोड़ा का रसूख कम नहीं हुआ
मधु कोड़ा देश के इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री रहे जो निर्दलीय चुनाव लड़ कर सीएम की कुर्सी तक पहुँच गए. इतना ही नहीं बल्कि सभी को एक साथ लेकर 28 महीने तक राज्य के मुख्यमंत्री बने रहे. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मधू के पास नेतृत्व क्षमता कैसी है. आखिर 28 महीने तक 41 विधायकों को साथ बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं था लेकिन मधू कोड़ा ने एक इतिहास बना लिया. हालांकि मधू कोड़ा सरकार के कार्यकाल में कई घोटालों के भी आरोप लगे. बावजूद इन सब के मधू कोड़ा के रसूख कम नहीं हुए. सीएम पद से हटने के बाद निर्दलीय लोकसभा का चुनाव जीत गए. बाद हालात और कई चुनौतियों के वजह से कोड़ा ने अपनी पत्नी को चुनावी दंगल में उतार दिया. 2014 के लोकसभा चुनाव में गीता को जीता कर सदन भेजने का काम किया. इससे साफ है कि हालात कुछ भी हो कोल्हान में मधू कोड़ा का अपना जनाधार है. जिसके दम पर अपनी राजनीतिक पारी को आगे बढ़ा रहे है.
2019 में कोड़ा कांग्रेस के साथ थे
मधू कोड़ा हो जाती से आते है और हो जाती में इनके बराबर कर कोई नेता सिंहभूम में नहीं है. यही वजह है कि मधू कोड़ा का एक इशारा ही पूरे वोट का समीकरण बदल देता है.पाँच विधानसभा सीट पर 2019 के विधानसभा चुनाव में चार झामुमो और एक कांग्रेस ने जीत हाशिल किया था. 2019 में मधू कोड़ा कांग्रेस में ही थे पत्नी कांग्रेस के टिकट पर सांसद बन कर दिल्ली पहुंची थी. कोड़ा पूरी ताकत इस चुनाव में इंडी गठबंधन के लिए लगाया था. जिसका परिणाम भी देखने को मिला.
54.37 प्रतिशत “हो” समाज तय करता है जीत और हार
लेकिन ठीक लोकसभा चुनाव से पहले गीता कोड़ा ने भाजपा का दामन थामा और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मधू कोड़ा भी चुपके से भाजपा में शामिल हो गए. अब देखे तो पहले से भी कई सीट पर भाजपा के प्रत्याशी विधानसभा चुनाव में कम मार्जिन से हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन अब 2024 के विधानसभा चुनाव में कोड़ा का इफेक्ट देखने को मिल सकता है. पांचों विधानसभा क्षेत्र में परिणाम पिछले बार के मुकाबले अलग दिख सकते है. इन पाँच विधानसभा क्षेत्र में हो समाज के लोगों की आबादी 54.37 प्रतिशत है.
कई सीट पर कम अंतर से हार जीत
अगर पिछले बार के मुकाबले को देखे तो चाईबासा विधानसभा सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के दीपक बिरवा को 69750 वोट मिले थे जबकि भाजपा के उम्मीदवार 43326 पर ही संतुष्ट होना पड़ा था. मझीगाँव विधानसभा में अंतर थोड़ा ज्यादा है. झामुमो ने 67750 वोट प्राप्त किए तो भाजपा 20558 वोट तक ही पहुँच सकी थी. इसके अलावा जगरनाथपुर में कांग्रेस के उम्मीदवार 32449 वोट लाकर जीत का माला पहना था तो यहाँ भाजपा 16000 और JVM 20893 वोट पर सिमट गई थी. वहीं मनोहरपुर में झामुमो 50945 तो भाजपा 32926 तक पहुँच पाई. वहीं चक्रधर पुर में झामुमो 43832 वोट ला कर जीत दर्ज किया लेकिन यहाँ भी पीछे भाजपा रही 31598 वही तीसरे नंबर पर JVM 17487 और चौथे में AJSU 17232 वोट मिले थे.
किस सीट पर कितना मार्जिन से पीछे रह गई भाजपा
अब हार और जीत के अंतर को देखे तो चाइबासा में भाजपा 26159 वोट से पीछे रही थी. वहीं मझीगांव में अंतर काफी ज्यादा रहा भाजपा 47192 वोट से हार गई. लेकिन अब जगरनाथ पुर में देखे तो कांग्रेस 12000 से जीत दर्ज की थी लेकिन पीछे JVM और भाजपा दोनो रही 2019 के चुनाव में बाबूलाल की पार्टी भी अलग चुनावी मैदान में थी JVM20893 और भाजपा 16000 वोट लेकर आई थी अब अगर सिर्फ JVM और भाजपा के आकड़ों को देखा जाए तो तत्कालीन भाजपा की जीत निश्चित थी. वहीं मनोहरपुर में झामुमो 16019 वोट से जीत दर्ज कर पाई थी. यह आकडा भी काफी नजदीक का है. इसके अलावा चक्रधरपुर में भी ज्यादा मार्जिन नहीं है.JMM महज 12 हजार वोट से जीत दर्ज कर सकी थी. यहाँ भी भजप 31598 JVM 17487 और आजसू 17232 वोट लेकर आई थी अब इन तीनों पार्टी के वोट को मिला दे तो जीत के काफी आगे भाजपा निकल सकती थी.
अब मधू के साथ आजसू और JVM भी भाजपा के साथ
अब भाजपा के पास कोई एक मजबूती नहीं है. मधू कोड़ा के साथ इस बार JVM और AJSU का भी कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं रहेगा. JVM का विलय भाजपा में हो चुका है तो आजसू एनडीए गठबंधन का हिस्सा है. ऐसे में समीकरण बदला हुआ दिख सकता है. अब भाजपा भी इसी तरह से एक जुटता के साथ चुनावी मैदान में कूद पड़ी है. बस इंतजार चुनाव के घोषणा का किया जा रहा है कि कब घोषणा हो और वोट पड़े तो परिणाम सब के सामने आजाएगा.