रांची(RANCHI): भागदौड़ की जिंदगी और बंद फ्लैट में सिमटता जीवन अधिकतर रूप से व्यक्ति के जीवन को रोबोट की तरह बनाता जा रहा. सुबह से देर रात तक की नौकरी और जीवन में अस्त व्यस्त होता समय प्रबंधन आपके अपने रिश्तों को कहीं ना कहीं खोखला करता जा रहा. आज हम बात करेंगे महानगरीय जीवन शैली में छोटे बच्चों में बढ़ते मेंटल स्ट्रेस और इससे होने वाले खतरे के बारे में. किस प्रकार छोटे छोटे टिप्स को अपना कर आप अपने व्यस्त जीवन शैली में भी बच्चों का उचित ध्यान व पालन कर सकेंगे.
जानिए बच्चों की मनोस्थिति
बच्चों का मन बेहद कोमल होने के साथ साथ अति संवेदनशील होता है । बच्चे अपने माता पिता के अनुसार ही बिहेव करते है. बच्चों के व्यवहार के लिए बहुत अधिक रूप से घर का वातावरण और माता और पिता का आपस का व्यवहार उत्तरदायी होता है. आजकल पेरेंट्स वर्किंग होते है ऐसे में स्कूल के बाद काफी समय तक बच्चे को घर पर अकेले या किसी आया के साथ रहना पड़ता है. बढ़ती महंगाई और बदलते परिवेश मे जॉब छोड़ कर बच्चे संभालना मुमकिन नहीं है और ऑफिस वर्क के कारण बच्चे को समय नहीं दे पाते है जिसके कारण बच्चा धीरे धीरे मेंटल स्ट्रेस का शिकार होता जाता है. जिसकी वजह से बच्चे को पेरेंट्स का जो समय मिलना चाहिए, वो नहीं मिल पाता है. कई बार बच्चे अपनी परेशानी किसी को बता नहीं पाते हैं और धीरे-धीरे वो मानसिक तनाव का शिकार होने लगते हैं. इतना ही नहीं कई बार भावनात्मक और मानसिक रुप से भी कुछ कारण बच्चे के तनाव का कारण बन सकते हैं जैसे चिड़चिड़ापन, क्रोध के कारण गुस्सा, दोस्तों से दूर हो जाना, जिम्मेदारियों की उपेक्षा करना, किसी काम में ध्यान न लग पाना. लगातार उदास रहना. इन सब कारणों से भी बच्चे में तनाव हो सकता है. ऐसे में पैरेंट्स का बच्चों की मानसिक स्थिति को समझना बहुत जरूरी हो जाता है.
वजह तलाशें कि क्यों तनाव में है आपका बच्चा
सबसे पहले आपका बच्चा किस वजह से तनाव महसूस कर रहा है, इसका पता लगाएं. कारण पता चलते ही आप अपने बच्चे का स्ट्रैस दूर करने में उसकी मदद कर पाएंगे.
दोस्ती का बढ़ाएं हाथ
कम समय मे बच्चा झट से अपनी परेशानी या अपने दिल की बात बता दे इसके लिए जरूरी है की आपका और उनका रिश्ता एक दोस्त का हो. जब बच्चे आपसे खुलकर बातचीत करेंगे तब आप उसके विश्वसनीय की श्रेणी में या जाएंगे. इस तरह बच्चा आपसे अपने सभी परेशानियों को स्वयं ही साझा करेगा. बच्चों से दोस्ती करने के लिए बातचीत में गंभीरता न रखें यदि कोई गंभीर बात भी हो तो उसे ऐसे लहजे से कहें जिससे बच्चा आपसे फ्रैंक रहे. दोस्तों वाली गपशप दिनभर का हाल और समय समय पर जानने की कोशिश करें की उसकी पसंद किस प्रकार की है और यदि पसंद बदल रही है तो क्या चाहता है वो. साथ में बैठ कर हल्के फुल्के गेम खेलें उसके पसंद की चीजों को खाएं. बच्चों में जब मानसिक तनाव बढ़ जाता है, तो वह रोने-चीखने लगते हैं. जमीन पर लेट-लेट कर जोर-जोर से पैर मारने लगते हैं. कई बार बच्चों में मानसिक तनाव इतना बढ़ जाता है कि वे खुद को चोट पहुंचाने से भी नहीं डरते हैं. ऐसे में आप बच्चे से कुछ भी जानने से पहले उसके साथ दोस्त जैसा व्यवहार करने की आदत डालें. ताकि बच्चों में आपका भय नहीं, बल्कि आपके प्रति झुकाव हो. बच्चों को खुले मन से अपने विचार और भावों को व्यक्त करने दें.
खान पान का रखें ख्याल और बनाएं परफेक्ट डाइट चार्ट
कई बार जंक फूड और अधिक तेल मसालों वाला भोजन से पेट तो भर जाता है परंतु शरीर के जरूरी तत्वों की कमी हो जाती है. इसके लिए जरूरी है की बच्चों को संतुलित आहार दिया जाए. कोशिश करें कि बच्चे की प्लेट में सभी तरह का भोजन शामिल हो. जिससे उसे जरूरी विटामिन, मिनरल्स और माइक्रो और मैक्रो न्यूट्रीशन मिल सकें. अगर बच्चे के आहार में किसी भी तरह के पोषक तत्वों की कमी हो जाती है तो इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. बच्चों के विकास के लिए प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फैट, विटामिन और मिनरल बहुत ज़रूरी हैं जिससे उनका मानसिक और शारीरिक विकास सही ढंग से हो सके. हालांकि आपको इस बात का भी ख्याल रखने की जरूरत है कि उम्र के साथ-साथ बच्चों में पोषक तत्वों की मात्रा भी बदलते रहनी चाहिए. अक्सर बच्चों मे चिड़चिड़े पन का कारण असंतुलित आहार होता है. इससे बच्चों की नींद की रूटीन भी बिगड़ जाती है जिससे स्वभाविक रूप से बच्चा स्ट्रेस का शिकार होने लगता है। अतः बच्चों में मानसिक तनाव को कम करने के लिए उसे पौष्टिक आहार खिलाएं. बच्चों की डाइट में ताज़ा और मौसमी फल जरूर शामिल करें बच्चों को खाने में पनीर और दूध- दही जरूर दें. लो फैट डेयरी प्रोडक्ट्स कैल्शियम, मिनरल और विटामिन का अच्छा सोर्स है. अगर आपका बच्चा लैक्टोज-इन्टॉलरेंट है और डेयरी उत्पाद पचाने में परेशानी होती है तो उसे सोया प्रोडक्ट खिला सकते हैं. बच्चों की खाने की थाली में सब्जियां जरूर शामिल करें. आपको सीजन के हिसाब से बच्चों को सभी सब्जियां खिलानी चाहिए. बच्चों को बदल-बदल कर सब्जियां खिलाएं. कोशिश करें कि बच्चों को गहरे हरे रंग की सब्जी, लाल और नारंगी सब्जियां, स्टार्च युक्त सब्जियां, फलियां और मटर खिलाएं. मार्केट की पैक्ड सब्जियों से परहेज करें. कोशिश करें बच्चे को रिफाइंड अनाज के बजाय साबुत अनाज खिलाएं. आप ओट्स, किनोआ और चावल खिला सकते हैं. बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए प्रोटीन बहुत जरूरी है. आपको खाने में प्रोटीन ज़रूरी शामिल करना चाहिए. इसके लिए बच्चों को रोज दाल खिलाएं. आप काबुली चने, मटर, सोयाबीन, अंडे, मीट भी शामिल कर सकते हैं.
मोबाइल और इंटरनेट पर भी रखें नजर
सोशल मीडिया पर डाली गई कई चीजें आपके बच्चे के मन में तनाव पैदा कर सकती हैं. जिसकी वजह से कई बार कुछ बच्चे हिंसक हो जाते हैं तो कुछ कठोर भाषा का इस्तेमाल करने लगते हैं. ऐसे में टीवी और मोबाइल के साइड इफेक्ट्स से बचाने के लिए बच्चों को इनकी लत न लगने दें.
चिकित्सक की लें सलाह
यदि बच्चा अधिक गुमसुम या चिड़चिड़ा हो रहा है तो चिकित्सीय सलाह भी ले सकते है इससे परिणाम बेहतर मिलेंगे.