टीएनपी डेस्क(TNP DESK): आज तक हम महिला दिवस की धूम और सेलिब्रेशन्स दखते आए हैं . पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पुरुषों के सम्मान में भी साल का एक दिन निर्धारित किया गया है जब हम उन सभी पुरुषों का आभार व्यक्त कर सकें जो हमारे जीवन हमारे समाज और हमारे आसपास रहकर हमारे जीवन को सुलभ और सुरक्षित बनाते है. जी हां आज 19 नवंबर इंटरनेशल मेंस डे है आज दुनिया भर में पुरुष दिवस का आयोजन हो रहा ऐसे मौके पर आज हम अपको बताएंगे की किस प्रकार समाज में पुरुष दिवस की शुरुआत हुई.
आज तक समाज में महिला और पुरुषों की समानता की कई बाते हुई और कई बार महिला को अधिक तवज्जो देकर समाज मे उनका एक विशिष्ट स्थान दिया गया परंतु जितनी धूम महिला दिवस के लिए होती है उतनी पुरुषों के लिए नहीं दिखती. लेकिन अब समय बदल रहा है धीरे धीरे भारत मे पुरुष दिवस मनाने का चलन बढ़ रहा है. यह दिन हर पुरुष के लिए खास होता है, इस दिन हर पुरुष को उसके काम और योगदान के लिए शुक्रिया कहा जाता है. समाज में पुरुष का भी उतना ही महत्व है जितना महिला का है. दोनों ही एक दूसरे के पूरक है. ऐसे में मर्दों को भी उनकी अनमोल उपस्थिति के लिए धन्यवाद कहना तो लाजिमी है.
पुरुष दिवस का इतिहास
पहली बार अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस का प्रस्ताव 1993 को प्रस्तुत किया गया था. पर बहुत ही कम संगठनों ने इसमे दिलचस्पी दिखाई परिणामस्वरूप इसे बंद कर दिया गया था. हालांकि अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाने की मांग पहली बार साल 1923 में हुई थी. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की तर्ज पर 23 फरवरी को पुरुष दिवस मनाने की मांग उठाई गई. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और माल्टा के संगठनों को पुरुष दिवस मनाने के लिए आमंत्रित किया गया. परंतु किसी भी संगठन की इसमें कम रुचि होने के कारण इसे बंद कर दिया गया. ओस्टर ने दो साल तक इन कार्यक्रमों की मेजबानी की.
इसके बाद वर्ष 1999 में त्रिनिदाद और टोबैगो में वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर डॉ. जेरोम तिलक सिंह ने अपने पिता के जन्मदिन को 19 नवंबर के दिन मनाया. उन्होंने पुरुषों के मुद्दों को उठाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया. इसके बाद से 19 नवंबर 2007 में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया गया.
इस थीम पर किया जा रहा सेलिब्रेट
हर साल 19 नवम्बर का दिन अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस के रुप में मनाया जाता है. पहली बार अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस 1999 में मनाया गया. भारत सहित 60 देश मिलकर इस दिन को सेलिब्रेट करते हैं. साथ ही एक थीम के तहत इस दिन को मनाया जाता है. इस बार अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस 2022 की थीम “Helping Men and Boys” है.
भारत में पुरुष दिवस
भारत में पुरुष दिवस पर सक्रिय होते होते काफी वक्त लग गया एक ओर जहां दुनिया भर में पुरुष दिवस का आयोजन होने लगा था वहीं भारत में इसकी शुरुआत एक महिला ने की थी. साल 2007 में हैदराबाद की लेखिका उमा चल्ला ने इसको शुरू किया. सुनने में आश्चर्य लगे पर इंटरनेशनल मेन्स डे की शुरुआत ही महिलाओं ने की थी. उमा के मुताबिक जब हमारी संस्कृति में शिव और शक्ति दोनों बराबर हैं तो पुरुषों के लिए भी सेलिब्रेशन का दिन क्यों नहीं होना चाहिए. महिला दिवस की तरह इस दिन का भी एक खास महत्व होता है. यह दिन मुख्य रूप से पुरुषों को भेदभाव, शोषण, उत्पीड़न, हिंसा और असमानता से बचाने और उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिए मनाया जाता है.
मर्द को भी दर्द होता है
भारत में 'मर्द' को लेकर एक अलग ही परिभाषा गढ़ी गई है, जो असलियत में धरातल से विपरीत है ये परिभाषा कहीं मैच नहीं करती है. भारतीय किताबें, फिल्मों किवंदतियों सभी में बताया गया है कि 'मर्द को दर्द नहीं होता', उसे रोने का अधिकार नही वो भावुक नहीं हो सकता. यदि कोई भावुक है तो समाज उसका मजाक उड़ाता है. मर्द को माचो मैन बनकर जीना होता है. लेकिन हम शायद यह भूल जाते हैं कि मर्द के पास भी हृदय होता है, उसे भी दर्द होता है उसके पास मन में भी भावनाएं होती है जिसके ठेस लगने पर वो ना सिर्फ रोता है बल्कि दिल ही दिल में चीखता है चिल्लाता है . लेकिन उसके इस क्रंदन रुदन को सुननेवाला शायद कोई बिरला ही मिलता है. अधिकतर मामलों मे लोग उसे लड़की है क्या कहकर चिढ़ाने लगते है. पुरुषों के लिए जो मानसिकता भारतीय समाज में व्याप्त है, उसे बदलना बहुत जरुरी है. क्योंकि डर उसको लगता है, भावुक वो भी होता है प्रेम वात्सल्य उसके अंदर भी होता है . दिल उसका भी 300 ग्राम का ही होता है. पर समाज ने पुरुष की गलत परिभाषा गढ़ कर उसे इन सभी अधिकारों से वंचित कर दिया . बता दें रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में सुसाइड की प्रवृत्ति तीन गुना ज्यादा है. महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की मौत 4-5 साल पहले हो जाती है. हर तीन में से एक मर्द घरेलू हिंसा का शिकार होता है. हार्ट डिसीज के मामले भी महिलाओं से ज्यादा पुरुषों में सामने आते हैं. दुनिया भर में यदि स्वास्थ्य आंकड़ों की बात करें तो हार्ट अटैक, डिमनीशिया हाइपर टेंशन, ब्रेन हैमरेज, जैसी तनाव जनित बीमारियां अधिकतर रूप से पुरुषों मे पाई जाती है. क्योंकि पुरुष स्वभावतः अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं करते. भावनात्मक रूप से अंतर मुखी पुरुष खुलकर रो भी नहीं पाते क्योंकि सवाल जो मर्दानगी का है. इसके साथ ही समाज समाज भी इनके लिए संवेदन हींन बना रहता है. पुरुषों में यह समस्याएं कम हो, हम समाज मे उनका आभार व्यक्त कर सकें. समाज मे जो पुरुषों की क्रूर छवि व्याप्त है उससे लोगों की मानसिकता को बदलने के लिए भारत मे अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाने की शुरुआत की गई.
मेन्स डे का उद्देश्य
• पुरुष रोल मॉडल को बढ़ावा देना.
• समाज, समुदाय, परिवार, विवाह, बच्चों की देखभाल और पर्यावरण के लिए पुरुषों के सकारात्मक योगदान का जश्न मनाना.
• पुरुषों के स्वास्थ्य और भलाई पर ध्यान केंद्रित करना; सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक और आध्यात्मिक तौर पर.
• पुरुषों के खिलाफ भेदभाव को उजागर करना.
• लिंग संबंधों में सुधार और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना.
• एक सुरक्षित, बेहतर दुनिया बनाना.
विदेशो में तो अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. पुरुषों के लिए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. उन्हें पार्टी दी जाती है, घूमने के लिए भेजा जाता है. अब भारत में भी इसे लेकर जागरुकता बढ़ रही है. भारत में अब धीरे-धीरे इस दिवस को मनाने का क्रेज बढ़ता जा रहा है. साथ ही सोशल मीडिया पर भी अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस की धूम दिखती नजर आ रही है. ट्वीटर पर #InternationalMensDay ट्रेडिंग में बना हुआ है.
रांची में भी पुरुष दिवस को लेकर उत्साह
रांची में भी पुरुष दिवस पर लोगों में उत्साह भरपूर है. सड़कों से लेकर रेटयूरेन्टस सभी जगह छोटे बड़े सेलिब्रेशन देखा जा रहा. बदलते परिवेश में बदल रहा है समाज का आईना और इस बदलते समाज के आईने मे बदल रही है पुरुष की छवि .
इस विषय पर पत्रकार समीर हुसैन का कहना है की कार्य क्षेत्र मे महिला और पुरुष दोनों ही समान है. दोनों ही सहकर्मियों के साथ काम करना गौरवान्वित करता है. बतौर एक पत्रकार समाज में महिलाओ को कभी कभी सहानुभूति अधिक मिल जाती है जिनकी वो हकदार होती है. परंतु हमें स्वयं को स्थापित करने के लिए अधिक संघर्ष करना होता है. झूठे मुकदमे दहेज प्रताड़ना और बहुत बेवजह के कानूनी परेशानी पुरुषों के हिस्से ही आई है जबकि महिलाये इससे वंचित है.
वहीं विशाल कुमार का कहना है की पुरुषों के साथ समाज भेदभाव करता है. हमें बचपन से सिखाया जाता है की मर्द को दर्द नही होता परंतु ये अधिक रूप से सत्य नहीं है. पुरुष भी उतने ही संवेदन शील होते है जितनी महिला, हां पुरुष कभी अपनी भावना व्यक्त नही करते जिस कारण उनको असंवेदनशील समझ जाता है. पुरुष भी भावुक होते है इसी लिए उन्हे कई तनाव जनित बीमारिया हो जाती है और औसत आयु पुरुष की कम हो जाती है.
इस बारे मे संध्या कुमारी का कहना है की समाज में महिला और पुरुष दोनों ही बराबर है . किसी एक के बिना परिवार या समाज अधूरा है. जिस प्रकार माँ बच्चे को जन्म देती है पालन करती है उसी प्रकार पिता उनको पोषण करता है संरक्षण प्रदान करता है. वहीं परिवार सम्पूर्ण होता है जहां माता पिता दोनों की उपस्थिति हो. ये बात सच है और चिंता जनक भी है कि समाज में महिलाओ के लिए बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया जाता है , महिला दिवस पर अनेक कार्यक्रम होते है उनको सम्मान दिया जाता है पर पुरुष दिवस के दिन कहीं कोई हलचल नहीं दिखती ये भारतीय पुरुषों के साथ भेदभाव है. समाज में पुरुष की उपस्थिति अत्यंत आवश्यक है .
वहीं समीक्षा सिंह का कहना है कि महिला दिवस इसलिए सफल है क्योंकि इसे पुरुष सेलिब्रेट करते हैं. हम महिलाओं को भी पुरुष दिवस सेलिब्रेट करना चाहिए. चाहे वो पिता हो या भाई या पति हो या बेटा या फिर कोई मित्र हम महिलाओं को भी पुरुषों को यह बताना चाहिए कि आप कितने जरूरी हो हमारे लिए. हमें भी पुरुषों की तरह ही बढ़ चढ़ कर पुरुष दिवस मनाना चाहिए तब होगी बराबरी की बात .