रांची(RANCHI)- बजट सत्र से पहले ही जब इस बात की खबर फैली की हेमंत सरकार अपनी नियोजन नीति को हाईकोर्ट के द्वारा रद्द किये जाने के बाद 60:40 के फार्मूले पर विचार कर रही है, लोबिन हेम्ब्रम बेहद आक्रामक तरीके सरकार पर हमला कर रहे थें, उनके द्वारा हर दिन सरकार से एक पर एक सवाल दागा जा रहा था, इस बीच विपक्ष के हंगामें के बीच सत्ता पक्ष के द्वारा यह घोषणा की गयी कि चालू बजट सत्र में हेमंत सोरेन खुद ही राज्य की नई नियोजन नीति अपना पक्ष रखेंगे.
हेमंत ने बेहद ही राजनीतिक चतुराई से सत्र का अंतिम दिन की अंतिम वेला को अपने संबोधन के लिए चुना
सत्ता पक्ष के इस बयान के बाद लोबिन हेम्ब्रम के अन्दर यह आशा बंधी की अब उन्हे भी अपनी बात रखने का मौका मिलेगा. लेकिन विपक्ष और लोबिन के सारे सपनों पर हेमंत ने पानी फेर दिया, उनके द्वारा बेहद ही राजनीतिक चतुराई से सत्र का अंतिम दिन की अंतिम बेला को अपने संबोधन के लिए चुना गया, इस प्रकार लोबिन के लिए विधान सभा के अन्दर अपने दिल की गुब्बार निकालने के सारे रास्ते बंद हो गयें.
लोबिन के बयानों में देखी जा रही है यह पीड़ा
इसकी पीड़ा लोबिन के बयानों में देखी जा सकती है, अब वह मीडिया में बयानबाजी कर सरकार पर निशाना साध रहे हैं. सत्र के पहले ही दिन से नियोजन नीति और दूसरे मुद्दों पर लोबिन हेम्ब्रम बेहद आक्रमक थें. उनकी आक्रमता को उनकी कांवर यात्रा से भी समझा जा सकता है.
लोबिन कांवर की कांवर यात्रा, क्या लोबिन के सवालों से भाग गयी सरकार
यहां बता दें कि सत्र का पहला दिन लोबिन कांवर लेकर विधान सभा की दहलीज पर आये थें, उस कांवर पर आदिवासी-मूलवासियों के हक-हकूक और उनसे जुड़ी समस्याओं का जिक्र था, पेसा कानून, नियोजन नीति, खनन की लूट, 1932 का खतियान के नारे उनके कांवर पर दर्ज थें. वह सरकार से लगातार इन मुद्दों पर सवाल दाग रहे थें. जिस 60:40 के फार्मूलों को लेकर हेमंत सरकार आयी थी, उसे वह झारखंडी युवाओं की हकमारी बता रहे हैं.
लोबिन हेम्ब्रम हेमंत सरकार का स्थायी विपक्ष
ध्यान रहे कि यह कोई पहला अवसर नहीं है जब झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम हेमंत सोरेन पर निशाना साध रहे हैं, इसके पहले ही वह मारंग बुरु, नियोजन नीति और 1932 के सवाल पर सरकार को कोसते रहे हैं. जानकारों का तो यह मानना है कि लोबिन हेम्ब्रम हेमंत सरकार का स्थायी विपक्ष हैं, जिस प्रकार लोबिन सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं, कटघरें में खड़ा कर असहज करते हैं, वैसी तैयारी तो भाजपा में भी नहीं होती. उनकी तैयारियों और सवालों के आगे के आगे विपक्ष की भूमिका भी कहीं ना कहीं गौण हो जाती है. शायद यही कारण है कि लोबिन की आवाज को झारखंड के एक बड़े वर्ग में बड़े ही ध्यान से सुना जाता है, उनकी अपनी विश्वसनीयता और जनाधार है. कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि हेमंत सरकार विपक्ष से ज्यादा लोबिन से डरी-सहमी नजर आती है.
लोबिन की आवाज को अनसुना करना हेमंत की विश्वसनीयता पर सवाल
अब जब की विधान सभा के अन्दर लोबिन को अपनी पीड़ा को अभिव्यक्त करने का अवसर नहीं मिला है, वह सदन के बाहर बड़ी बेबाकी के अपना पक्ष रख रहे हैं, हेमंत सोरेन के सामने आज भी लोबिन का सवाल एक यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है कि यदि 60:40 का फार्मूला को ही लागू करना था तो रघुवर सरकार में ही क्या बुराई थी. इसके साथ ही पेसा कानून, खनन लूट और 1932 के सवाल पर उनकी आवाज को अनसूना करना हेमंत के लिए इतना आसान नहीं रहने वाला है.