रांची(RANCHI): जैसे जैसे घड़ी की सुई राफ्ता-राफ्ता 2024 की ओर अपना कदम बढ़ा रही है, हर राजनीतिक दल 2024 का महासमर को लेकर अपनी-अपनी तैयारियों को धारदार बनाने की कवायद तेज कर रहा है, संगठन को मजबूती प्रदान करने और जमीनी कार्यकर्ताओं में उर्जा का संचार करने के लिए राजनीतिक गतिविधियां तेज की जा रही है. संगठन में फेरबदल किये जा रहे हैं, भाजपा भी इस कवायद से अछूता नहीं है. राजस्थान-बिहार सहित कई दूसरे राज्यों में भाजपा ने अपने प्रदेश अध्यक्ष में बदलाव किया है, नई नियुक्तियां की जा रही है, इन नियुक्तियों में उस राज्य की सामाजिक- राजनीतिक हकीकत को भी देखा-परखा जा रहा है. बिहार में भाजपा ने नीतीश कुमार के लव कुश समीकरण को ध्वस्त करने के लिए सम्राट चौधरी पर अपना दाव खेला है, राजस्थान में भी सीपी जोशी को कमान सौंपी गयी है, इन नियुक्तियों के बहाने किसी ना किसी वर्ग को साधने की रणनीति और राजनीतिक चतुराई है.
कौन होगा झारखंड में भाजपा का चेहरा
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि झारखंड में भाजपा किस चेहरे के बुते 2024 की लड़ाई लड़ेगी. झारखंड प्रदेश अध्यक्ष के रुप में दीपक प्रकाश का कार्यकाल की समाप्त हो चुका है, लेकिन अब तक नये प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा नहीं हुई है? साफ है कि नये प्रदेश अध्यक्ष को लेकर भाजपा के अन्दर विचार विमर्श को दौर तेज है.
खास कर बिहार राजस्थान के बाद सबकी निगाहें झारखंड पर अटकी गयी है, हालांकि प्रदेश अध्यक्ष के रुप में कई नामों पर चर्चा चल रही है. सूत्रों के हवाले कई खबरों को परोसा जा रहा है. लेकिन यह भी याद रहे कि भाजपा अक्सर अपनी घोषणाओं सारे कयासों को महज कयास बना देती रही है. अक्सर जिन नामों की चर्चा होती रहती है, मीडिया की सुर्खियां बनती है, वह महज कागजी शेर होते हैं, अचानक से एक नया नाम सामने आता है और सब कुछ बदल जाता है. झारखंड में इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
झारखंड में आदिवासी मूलवासी का सवाल सबसे अहम प्रश्न
फिर भी यह सवाल तो महत्वपूर्ण है कि झारखंड जैसे राज्य में भाजपा के पास कितने विकल्प है, क्योंकि आदिवासी-मूलवासी बहुल इस राज्य में बाहरी भितरी की राजनीति काफी गर्म रहती है, अक्सर भाजपा के नेताओं पर बिहारी होने का आरोप चस्पा होता रहता है. कुछ नेताओं का जड़ तो यूपी और हरियाणा से भी जोड़ा जाता रहा है, झामुमों की ओर से कई बार इसे मुद्दा बनाने की कोशिश भी की गयी है. भाजपा नेतृत्व भी इससे अंजान तो नहीं होगा. बहुत संभव है कि नये प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा के पहले इस राजनीतिक हकीकत को ध्यान में रखा जायेगा.
दुमका से संगठन को धारदान बनाने की शुरुआत
हालांकि राज्य स्तर पर संगठन की मजबूती के लिए दुमका से शुरुआत की गयी है. दुमका के स्टेडियम में 24 मार्च से 27 मार्च तक प्रमंडल स्तरीय सांगठनिक बैठक बुलाई गयी है. खबर है कि इसमें नेता विधायक दल और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, प्रदेश संगठन महामंत्री कर्मवीर सिंह, एवं प्रदेश महामंत्री डॉ. प्रदीप वर्मा की भी इसमें भागीदारी होगी. 25 मार्च को प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश संबोधित करेंगे.
संगठन को धारदार बनाने की शुरुआत दुमका से ही क्यों
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि भाजपा ने संगठन विस्तार की इस योजना की शुरुआत दुमका से ही क्यों किया, साफ है कि दुमका और संताल का पूरा इलाका झाममो का सबसे बड़ा गढ़ माना जाता है, इसी इलाके में हेमंत सोरेन की राजनीतिक जमीन सबसे ज्यादा मजबूत है, भाजपा की कोशिश हेमंत सोरेन के इसी किले पर बनी हुई है.
आदिवासी-मूलवासी बहुल संताल में हेमंत के बरक्स भाजपा का चेहरा कौन
लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह है कि इस आदिवासी मूलवासी इलाके में हेमंत के बरक्स भाजपा के पास कौन सा चेहरा है, जो हेमंत आदिवासी मूलवासी कार्ड की काट करेगा, क्योंकि 1932 का सवाल को उछाल कर हेमंत सोरेन ने कहीं ना कहीं भाजपा को बचाव की मुद्रा में खड़ा होने को विवश कर दिया है.
पीएम मोदी की लोकप्रियता की आंधी में बिखऱा था संताल का किला
हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता की आंधी में दुमका का किला काफी हद तक धवस्त हो गया, लेकिन एक दूसरी सच्चाई यह भी है कि 2019 के चुनाव में हेमंत सोरेन ने इस इलाके में अपनी वापसी कर ली है, 2024 के महामुकाबले में भाजपा के सामने एक बार फिर हेमंत सोरेन चुनौती बन कर सामने खड़े होगें. भाजपा की बड़ी परेशानी यह है कि अब पीएम मोदी का जादू भी बहुत हद तक बिखरता नजर आ रहा है, जब तक उसके पास स्थायीय स्तर पर प्रभावशाली नेतृत्व नहीं हो, 2024 का मुकाबला काफी चुनौतीपूर्ण होने वाला है.