बिहार(BIHAR): पाला बदल बदल अपनी अलग पार्टी बनाने वाले बिहार के नेता जीतन राम मांझी की तुलना मंगलवार के बाद लोग रामविलास पासवान से करने लगे हैं. प्रश्न उछाले जा रहे हैं कि क्या जीतन राम मांझी अब स्वर्गीय रामविलास पासवान को भी पीछे छोड़ आगे निकल जाएंगे. क्या जीतन राम मांझी अपने बेटे को तेजस्वी यादव की जगह देखना चाहते है. क्या तेजस्वी यादव उन्हें पच नहीं रहे थे,या अपने बेटे के लिए वह कोई और बड़ा पद ढूंढ रहे थे. यह सब ऐसे सवाल हैं जो राजनीतिक हलकों में चर्चे में हैं. कहने के लिए तो यही कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार उनकी पार्टी को जदयू में विलय कराना चाहते थे लेकिन यह आरोप आज क्यों लगा. मंगलवार को जो परिणाम आए, उसके लक्षण तो पहले से ही दिखाई दे रहे थे.
जीतन राम मांझी ने खेला बड़ा दांव
फरवरी में उन्होंने मगध क्षेत्र में अपनी ताकत दिखाने के लिए गरीब संपर्क यात्रा शुरू की. 14 दिनों की इस यात्रा में वह नवादा से लेकर गया तक गए और एक लंबी लकीर खींचने की कोशिश की. पहले तो उन्होंने तेजस्वी यादव को निशाने पर लिया. अपने बेटे को काबिल बताते रहे और उनकी तुलना तेजस्वी यादव से कई मौकों पर कर भी दी. वैसे कहा जाता है कि जीतन राम मांझी सहयोगी दलों का भरोसा जीतने और समय के अनुसार पल्ला झाड़ने के चालाक खिलाड़ी रहे हैं. मौके को देखते हुए कब किधर जाएं, यह कोई नहीं जान सकता. नीतीश कुमार का भरोसा जीत कर जदयू के कई वरीय नेताओं को पीछे छोड़ते हुए एक साधारण विभाग के मंत्री से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक वह पहुंच गए. कांग्रेस, जदयू से होते हुए अपनी अलग पार्टी बनाने वाले माझी के दल का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. 8 साल पहले यह सब हुआ है. लेकिन इन्हीं 8 सालों में कई बार उन्होंने अपने सहयोगी दल बदले.
पार्टी बनाने के बाद सबसे पहले वह भाजपा के साथ गए. 2015 में पार्टी बनाने वाले माझी ने भाजपा से विधानसभा चुनाव में 20 सीट लिए. बिहार की राजनीतिक परिस्थिति बदली तो भाजपा का साथ छोड़ दिया और महागठबंधन में आ गए. 2019 के लोकसभा चुनाव में 3 सीटों पर चुनाव लड़े ,तीनों पर हार मिली. महागठबंधन में शामिल रहने का लाभ यह मिला कि अपने बेटे संतोष सुमन को राजद के सहयोग से विधान परिषद में भेजवा दिया. 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले फिर से एन डी ए में आ गए. वर्ष 2022 के अगस्त में बिहार में फिर से राजनीतिक समीकरण बदला और राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी तो बेटे को मंत्री बनाए रखने की कोशिश में वह महागठबंधन में ही बनी रहे. लेकिन समय-समय पर कुछ ना कुछ बयान देकर नीतीश कुमार को परेशानी में डालते रहे.
क्या भाजपा में जाएंगे जीतन राम मांझी
हालांकि मंगलवार से पहले भी नीतीश कुमार नहीं चाहते थे कि जीतन राम मांझी से कोई विवाद हो. क्योंकि अभी नीतीश कुमार की अगुवाई में 23 जून को विपक्षी दलों की एकता बैठक पटना में प्रस्तावित है. लेकिन जीतन राम मांझी इसी समय को सही समझा और दबाव बनाने के लिए इस्तीफा का पासा फेंका. देखना है यह पासा जीतन राम मांझी के लिए फायदेमंद होता है अथवा नीतीश कुमार अब किसी लालच में नहीं फसते हुए हमेशा हमेशा के लिए जीतन राम मांझी को महागठबंधन से अलग रखने की कोशिश करेंगे. हो सकता है कि जीतन राम मांझी फिर एक बार भाजपा में जाएं .क्योंकि 2024 सामने है और आया राम गया राम की परिपाटी शुरू है. आगे जाकर यह और तेज हो सकती है.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो