टीएनपी डेस्क(Tnp desk):- लोकसभा चुनाव की तारीख अहिस्ते-अहिस्ते करीब आते जा रही है. इसमे उकातहत उन उम्मीदवारो को होगी, जो टिकट पाने की हसरत लिए अभी से चुनावी बयार बहाने की जुगत में दिन-रात एक कर माहौल टाइट किए हुए है. झारखंड में इंडिया की तुलना में भाजपा की कहानी तो बिल्कुल अलग ही नजर आती है. यहां तो कोई ये नहीं कह सकता है कि उसका टिकट पक्का है. चाहे वह जीत हुआ कद्दावर सांसद ही क्यों न हो . हाल में जिस तरह के फैसले बीजेपी आलाकमान ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव मे लिए ये तो सभी को चौका दिया कि पार्टी कुछ भी कर सकती है. ब़ड़े से बड़े सुरमा भी धराशायी और मामूली विधायक भी मुख्यमत्री बन सकता है. भाजपा यहीं जताने के साथ-साथ संदेश देना चाहती है. बहुत हद तक कामयाब भी होती दिख रही है और एक माइंटसेट भी बना दिया है.
झारखंड बीजेपी में टिकट के दावेदार
झारखंड में लोकसभा की 14 सीटे हैं, जिसमे भारतीय जनता पार्टी के 11 और उसके गठबंधन सहयोगी आजसू की 1 है. अब सवाल उठ रहा है कि भला कौन-कौन से प्रत्याशी होंगे, जो मैदान ए जंग में बीजेपी की तरफ से उतरेंगे. इसे लेकर ही उधेड़बुन , गुणा-भाग और गणित चल रहा है. फरवरी के दूसरे हफ्ते में भाजपा राष्ट्रीय परिषद की बैठक होगी, जिसमे देशभर से 7000 हजार कार्यकर्ता पहुंचेगे, जिसमे झारखंड से भी 250 लोग शिरकत करेंगे. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बैठक काफी अहम मानी जा रही है. यहां प्रत्याशियों के चयन को लेकर भी चर्चा चलेगी . जहां फीडबैक उम्मीदवारों के चयन का बड़ा पैमाना होने वाला है. जिला परिषद स्तर के इन कार्यकर्ताओं रुझान और उनके विचार पर ही तय होगा कि कौन कितना सक्षम है और कितना टिकट पाने के लायक है.
कुछ नये नाम चौका सकते हैं
माना जा रहा है कि 14 सीट में से 8 में नये प्रत्याशियों को मौका मिल सकता है. जहां बेहतर छवि के साथ-साथ उम्र को भी देखा जाएगा. पलामू सांसद बीडी राम औऱ धनबाद के सांसद पीएन सिंह की उम्र 70 के पार चल रही है. लिहाजा, उन्हें बेटिकट किया जा सकता है.
बीडी राम दो बार सांसद रह चुके है और उन पर उम्र हावी दिख रही है. ऐसे में पलामू में राजद से भिड़ंत को देखते हुए किसी दलित चेहरे को बीजेपी मौका दे सकती है. वही, पीएन सिंह के बदले धनबाद से विधायक राज सिन्हा या फिर बोकारों से विधायक विरंचि नारायण को मौका मिल सकता है. जिनके टिकट मिलने की राह में रोड़े हैं, अगर उनकी चर्चा करें, तो भाजपा सांसद सुनील सिंह को पिछले 2019 के चुनाव में ही स्थानीय स्तर पर काफी विरोध का सामना करना पड़ा था. इसे देखते हुए उनके टिकट पर संकट मंडरा रहा है. चतरा से एनसीपी विधायक कमलेश सिंह भी दावेदारी कर रहे हैं
कुछ सांसद हो सकते हैं बेटिकट
लोहरदगा से सुदर्शन भगत की छवि तो बेहतर बतायी जा रही है . लेकिन, बताया जा रहा है कि एक खेमा उनके खिलाफ काफी मुखर है. ऐसा हालात में अगर बवाल बढ़ा तो फिर भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव आशा लकड़ा या पूर्व आईपीएस अरुण उरांव वहां से दावेदार हो सकते हैं. जमशेदपुर से विद्युत वरण महतो के बेटे की भी दावेदारी सामने आ रही है. माना जा रहा है कि यहां से पार्टी किसी अन्य पर दांव लगा सकती है. युवा चेहरे में कुणाल षाडगी को शायद मौका मिल जाए. हालांकि, इस पर अभी साफ नहीं है. रांची सीट पर सांसद संजय सेठ की सक्रियता तो अच्छी-खासी दिखती है. लेकिन, स्थानीयता के मुददे पर शायद उनकी जगह कोई ओर नया नाम देखने को मिले. रेस में प्रदीप वर्मा का भी नाम आगे आ रहा है, जिनकी हसरते भी काफी लंबे समय से लड़ने की रही है. वही हटिया विधायक नवीन जयसवाल भी संसद पहुंचना चाहते हैं. उनकी भी ख्वाहिशे उमड़ रही है.
माना जा रहा है कि आलाकमान शायद ही गोड्डा, खूंटी , दुमका में कोई बदलाव करते हुए दिखाई पड़े . इसमे स्वतंत्र एजेंसियों का भी सहारा भारतीय जनता पार्टी ले रही है. ताकि किसी भी उम्मीदवार के बारे में सही से पता लगाया जा सके . बहुत जल्द ही सारी तस्वीर साफ हो जाएगी कि आखिर किसे टिकट मिलेगा और कौन बेटिकट हो जाएगा. पर ये तो तय है कि कुछ न कुछ तो अप्रत्याशित देखने को जरुर मिलेगा.
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह