धनबाद(DHANBAD): समावेशी शिक्षा के झरिया रिसोर्स सेंटर के तत्वावधान में गुरुवार को झरिया एकेडमी हाई स्कूल में विश्व ब्रेल दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया. सामान्य बच्चों के बीच दृष्टि बाधित बच्चों के पढ़ने -लिखने की लिपी एवं इसके तरीके की जानकारी दी गई. ब्रेल स्लेट, ब्रेल किट एवं ब्लाइंड स्टिक का उपयोग बताये गए. इस दौरान सभी ने एक स्वर में नेत्रहीन स्कूल चलेंगे, खेल -खेल में ब्रेल पढेंगे के नारे लगाए. स्पेशल एडुकेटर अखलाक अहमद ने कहा कि ब्रेल पद्धति एक तरह की लिपि है, जिसको विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है. इस पद्धति का आविष्कार 1821 में एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था.
जो आंखों से देख नहीं सकते, ब्रेल लिपि वरदान
ब्रेल लिपि उन लोगों के लिए वरदान बन गई, जो आंखों से देख नहीं सकते. ब्रेल लिपि नेत्रहीनों के पढ़ने और लिखने की एक स्पर्शनीय कोड है. इसमें विशेष प्रकार के उभरे कागज का इस्तेमाल होता है, जिस पर उभरे हुए बिंदुओं को छूकर पढ़ा जा सकता है. स्टायलस और ब्रेल स्लेट के जरिए लिख सकते है. ब्रेल में उभरे हुए बिंदुओं को 'सेल' कहा जाता है. फ़िज़ियोथेरेपिस्ट डॉ मनोज सिंह ने कहा कि दृष्टिबाधित दिव्यांगजनों का हमें सम्मान करना चाहिए. समाज मे इन्हें दया नही समान अधिकार की आवश्यकता है. आज ब्रेल लिपि के माध्यम से पढ़ाई कर कई दृष्टि बधित लोग आई ए एस बन कर दिखा दिया है कि हम किसी से कम नहीं है.
हौसला मजबूत हो तो दिव्यांगता अभिशाप नही बन सकती
यदि हौसला मजबूत हो तो दिव्यांगता अभिशाप नही बन सकती. डॉ मनोज ने कहा कि दृष्टि बाधित बच्चों को झरिया बीआरसी स्थिति रिसोर्स सेंटर से जुड़ना चाहिए, ताकि उन्हें भी पढ़ाई लिखाई का अवसर प्राप्त हो सके. जो लोग जन्मजात या किसी कारणवश अपनी आंखों की रोशनी खो देते हैं, उन्हें पढ़ाई से वंचित न होना पड़े और वह आत्मनिर्भर बन सकें, इसके लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार करके लुईस ब्रेल दुनियाभर के दृष्टिबाधितों के मसीहा बन गए. कार्यक्रम में फ़िज़ियोथेरेपिस्ट डॉ मनोज सिंह, स्पेशल एडुकेटर अखलाक अहमद, प्रधान शिक्षक उमेश नारायण प्रसाद, शिक्षक ब्रजभूषण दुबे, प्रेमनाथ महतो, सुभोजित आचार्या, सुनीता सोरेन, पिंकी कुमारी, नगमा,पूजा, मदीना,कृष्णा पांडेय, साहिल कुमार सहित बड़ी संख्या में छात्र -छात्राएं उपस्थित रहे.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो