गुमला(GUMLA): गुमला जिला के सुदरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों जिला प्रशासन की ओर से विशेष कैंप का आयोजन किया जा रहा है. जिसके माध्यम से दूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाले आदिम जनजातियों को विकास योजनाओं का लाभ देने की पहल की जा रही है. जिले के डुमरी चैनपुर बिशुनपुर और घाघरा के विभिन्न इलाकों में रहनेवाले आदिम जनजातियों के क्षेत्र में जिला प्रशासन की ओर से विशेष रूप से कैंप लगाकर उनके इलाके की समस्याओं के समाधान की पहल करने के साथ ही साथ वहां रहने वाले लोगों को विकास योजनाओं का सीधा लाभ दिलाने की कोशिश की जा रही है. सबसे बड़ी बात यह है कि इन इलाकों में जब कैंप लगाया जा रहा है तो जिले के उपायुक्त कर्ण सत्यार्थी उस इलाके में मौजूद होकर लोगों की समस्याओं से अवगत होने की पहल कर रहे हैं.
कैंप को लेकर लोगों में खुशी का माहौल
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आजादी के लंबे समय बीत जाने के बाद और झारखंड स्थापना के भी 23 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इन इलाकों में अब तक विकास की योजनाएं नहीं पहुंच पाना काफी चिंता का विषय है. यहां रहनेवाले लोगों का जीवन देखकर आपको यह एहसास हो जाएगा कि आखिरकार सरकारी जो दावा करती है, वह कितना जमीनी स्तर पर सही रूप से नजर आता है. इन इलाकों में रहनेवाले लोगों को मूलभूत सुविधाएं भी आज तक नहीं मिल पाई है. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि आज भी यह लोग विकास से कितने कटे हुए हैं,जिले के प्रशासनिक पदाधिकारी की पहल के बाद पहली बार प्रशासनिक पदाधिकारी की टीम जब गांव में पहुंचती है, तो निश्चित रूप से लोगों के लिए भी काफी खुशी का माहौल होता है, लोग भी खुलकर आकर अपनी समस्याओं की जानकारी देते हैं और विकास योजनाओं का लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं.
डीसी कर्ण सत्यार्थी कैंपों के माध्यम से लोगों की समस्याओं को जानने की कर रहे है कोशिश
डीसी कर्ण सत्यार्थी ग्रामीण क्षेत्रों में लगनेवाले इन कैंपों के माध्यम से वहां के लोगों की समस्याओं को जानने की कोशिश की. उन्होंने घर-घर जाकर लोगों की स्थिति का भी आकलन किया, ताकि उसे इलाके के बदलाव को लेकर विशेष रूप से विकास योजनाओं की पैकेज बनाई जा सके, जिसका सीधा लाभ वहां के लोगों को मिल स.के डीसी ने स्पष्ट कहा है कि उनका पूरा प्रयास होगा कि इस इलाके में रहने वाले लोगों को कैसे अधिक से अधिक विकास योजनाओं का लाभ दिया जा सके, ताकि लोगों को भी सरकार की विकास योजनाओं का लाभ मिल सके और उनकी आर्थिक स्थिति में बदलाव हो सके. केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से आदिम जनजातियों के विकास को लेकर करोड़ों रुपया खर्च किए जाने का दावा किया जाता है लेकिन इन इलाकों पर पहुंचने के बाद यह समझ में नहीं आता है कि आखिरकार वह पैसा कहा जा रहा है, जब इस इलाके में विकास योजनाएं नहीं पहुंची है तो आखिरकार फाइलों में उन योजनाओं का लाभ कहां चला गया. इन तमाम विषयों का निश्चित रूप से जांच होना चाहिए.
रिपोर्ट-सुशील कुमार