रांची टीएनपी डेस्क (RANCHI TNP DESK): डायन प्रथा जनजातीय महिलाओं का अभिशाप है . अब तक इस अंधविश्वास के भेंट न जाने कितनी निर्दोष महिलायें चढ़ चुकी है, और कितनी चढ़नी बाकी है इसका जवाब किसी के पास नहीं है. झारखंड में डायन हत्या के मामले बहुत अधिक हैं. झारखंड का हाल यह है कि चालीस प्रतिशत मामले पुलिस तक पहुंच ही नहीं पाते. बात करें इसके पीछे के कारणों की तो विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई तरह के तत्व होते है. अंधविश्वास एक बड़ी वजह तो है ही साथ ही साथ कई बार ऐसी घटनाओं के पीछे आपसी रंजिश संपत्ति हड़पने की नियत या अकेली महिला का शोषण या फायदा उठाना होता है. अधिकतर मामले दबा दिए जाते हैं. पर कई मामले बेहद भयावह है जिसको सुनने भर से रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
अंधविश्वास नहीं स्वार्थवश होती है डायन हत्या
डायन बताकर जान ने मारने के मामले खासतौर से आदिवासी इलाकों में देखने को मिलते हैं. झारखंड के ग्रामीण इलाकों में यह बड़ी समस्या है. डायन बिसाही (बुरी नजर वाला व्यक्ति) बताकर किसी को मारने के पीछे मुख्य तौर पर कुछ वजहें सामने आती हैं, जैसे- जलन, कोई स्वार्थ, जमीन हड़पने की साजिश या तांत्रिक-ओझा (अंधविश्वांस) का चक्कर. कई बार इसके पीछे की वजह कुछ और होती है और इसे डायन की आड़ मे ढँक किया जाता है. बदला लेने और संपत्ति हड़पने की नीयत से इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया जाता रहा है. अक्सर विधवाओं को डायन बताने के पीछे इसी तरह के मकसद काम करते देखे गए हैं. एक अनुमान के मुताबिक राज्य में वर्ष 2015 में 46, वर्ष 2016 में 39, वर्ष 2017 में 42, वर्ष 2018 में 25, वर्ष 2019 में 27, वर्ष 2020 में 28, वर्ष 2021 में 25 और वर्ष 2022 में अब तक दो दर्जन से अधिक लोगों की हत्या डायन कुप्रथा के नाम पर कर दी गई. इसका शिकार सर्वाधिक महिलाएं ही होती हैं. कभी-कभी इनके साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार किया जाता है कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं. तब गांव का गांव भी चुप रहता है. कहीं से कोई विरोध का स्वर मुखर नहीं होता.
साक्षरता की कमी एक बड़ा कारण
इन तमाम वजहों से झारखंड में जहां इस साल दो दर्जन से अधिक डायन हत्या हुई वहीं साल (2015 से 2020) में 207 डायन हत्या की गई. इन 5 साल में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत 4,560 मामले दर्ज किए गए, यानी इन मामलों में किसी को जान से मारा गया, किसी को मारने की कोशिश हुई तो किसी को डायन के नाम पर प्रताड़ित किया गया. इनमें 'जमीन हथियाने की साजिश और अंधविश्वास मुख्य वजह के रूप में सामने आई . डायन हत्या के मामले गांव में फैले अज्ञानता, शिक्षा के अभाव और अन्य दूसरे कारणों से होते हैं. पुलिस जांच में यह सामने आता है कि ज्यादातर घटनाएं जमीन को हथियाने, किसी की मौत के बाद डायन की अफवाह फैलने और अंधविश्वास से होती हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक, झारखंड की साक्षरता दर 66.41% है, जो कि 35 में से 32वें नंबर पर है. वहीं, भारत की साक्षरता दर 74.04% है. झारखंड में पुरुष साक्षरता दर 76.84% और महिला साक्षरता दर 55.42% है. झारखंड के गांव में भगत और ओझा का चलन बहुत देखने को मिलता है. लोग छोटी से लेकर बड़ी बीमरियों तक के लिए इनसे सलाह लेते हैं और पूजा पाठ करवाते हैं. यहीं से आम जन में डायन-बिसाही जैसी बातें और प्रबल होती हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक, झारखंड की साक्षरता दर 66.41% है, जो कि 35 में से 32वें नंबर पर है. वहीं, भारत की साक्षरता दर 74.04% है. झारखंड में पुरुष साक्षरता दर 76.84% और महिला साक्षरता दर 55.42% है.
रोंगटे खड़े कर देगी पद्मश्री छुटनी देवी की कहानी
पद्मश्री से सम्मानित झारखंड के सरायकेला-खरसांवा जिले के बीरबांस गांव की रहने वाली छुटनी देवी की भयावह कहानी इसी डायन प्रथा से जुड़ी हुई है. बता दें छुटनी देवी को राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने पद्मश्री से सम्मानित किया है. छुटनी देवी ने झारखंड मे जनजातीय महिलाओ को डायन हत्या से बचाने का कार्य किया और उनके इसी नेक कार्य और समाज के प्रति समर्पण ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान दिलाया. छुटनी की कहानी भी कोई कम भयावह नही थी. आज भी छुटनी अपने उन दिनों को याद कर सिसकती है. लेकिन कहीं न कहीं इस घटना ने उनको संबल प्रदान किया और उन्होंने बीड़ा उठाया कि झारखंड में किसी भी और महिला पर ये अत्याचार न हो. छुटनी देवी बताती है 3 सितंबर 1995 ये वो तारीख है जो उनके हृदय में एक टीस बनकर बसी हुई है. इस दिन गांव में बैठी पंचायत ने उन पर जो जुल्म किए थे, उसके याद आते ही जख्म एक बार फिर हरे हो जाते हैं. आंखे भींग जाती है और रुँधे गले से बस इतना ही कह पाती है कि जितने निर्दोषों को बचा सकूँ बस बचाने की कोशिश कर रही हूँ. अपनी बेबसी की कहानी कहती हुई छुटनी बताती है. पड़ोसी की बेटी बीमार पड़ी थी और इसका जुर्म उनके माथे पर मढ़ा गया था, ये कहते हुए कि तुम डायन हो. जादू-टोना करके बच्ची की जान लेना चाहती हो. पंचायत ने उनपर 500 रुपये का जुमार्ना भी लगाया था. दबंगों के खौफ से छुटनी देवी ने जुमार्ना भर दिया लेकिन बीमार बच्ची अगले रोज भी ठीक नहीं हुई तो 4 सितंबर को एक साथ 40-50 लोगों ने उनके घर पर धावा बोला. उन्हें खींचकर बाहर निकाला, उनके तन से कपड़े खींच लिए गए, बेरहमी से पीटा गया. इतना ही नहीं, उनपर मल-मूत्र तक फेंका गया. पर, ये छुटनी देवी का बीता हुआ अतीत है. इसके बाद छुटनी देवी का जीवन बदल गया और अपने साथ हुए इस अन्याय के साथ साथ उन्होंने अपना जीवन उन लाचार महिलाओं के लिए समर्पित कर दिया जिनको अंधविश्वास की भेंट चढ़ा दिया जाता है. छुटनी ने समूचे झारखंड में एक ऐसी 'वीरांगना' के रूप में कार्य किया की पूरे झारखंड में डायन-भूतनी कहकर प्रताड़ित की गई बहुत सी महिलाओं को नरक जैसी जिंदगी से बाहर निकाला है.
'द न्यूज पोस्ट' से हुई छुटनी देवी की खास बातचीत
छुटनी देवी से हुई हमारी खास बातचीत में उन्होंने कहा कि अंधविश्वास की आड़ में लोग अपने स्वार्थ की सिद्धि करते हैं. कई बार मामला कुछ और होता है और गाँव के कुछ लोगों की दबंगाई के कारण एक परिवार और महिला को निशाना बनाया जाता है. अधिकर मामले जमीन से संबंधित होते है जमीन विवाद को ही एक पक्ष के द्वारा डायन का रूप दे दिया जाता है और उसके बाद घेराबंदी कर के उतार दिया जाता है मौत के घाट. ऐसा ही एक मामला लेकर एक लड़का आया कि गाँव की ही एक विधवा माँ और बेटी को गाँव वाले मारने की योजना बना रहे. छुटनी देवी ने अपने स्तर पर संज्ञान लिया तो पाया की ये एक जमीन विवाद था जिसे एक पक्ष के द्वारा अंधविश्वास फैला कर दोनों माँ बेटी की हत्या की योजना बनाई जा रही थी. इस योजना में गाँव के ही प्रमुख लोग भी शामिल थे. जब इस घटना की जानकारी छुटनी ने पुलिस को देनी चाही तो पुलिस इसपर कोई कारवाई नहीं की और टालमटोल करके छुटनी को चलता कर दिया.
पुलिस तक नहीं पहुंचते मामले
बता दें डायन प्रताड़ना के लगभग 30 से 40 प्रतिशत मामले तो पुलिस के पास पहुंच ही नहीं पाते. दबंगों के खौफ और लोकलाज की वजह से कई लोग जुल्म सहकर भी चुप रह जाते हैं. इनमें ज्यादातर महिलाएं होती हैं. कई बार प्रताड़ित करने वाले अपने ही घर के लोग होते हैं. ऐसे मामले पुलिस में तभी पहुंचते हैं, जब जुल्म की इंतेहा हो जाती है. इस मामले में हमने पुनर्वास और बाल संरक्षण विशेषज्ञ राहुल मेहता से बातचीत की. बता दें राहुल ने जनजातीय महिलाओं एवं बच्चों के पुनुरुत्थान के लिए सराहनीय प्रयास किया है. द न्यूज पोस्ट से हुई बातचीत मे राहुल मेहता बताते है कि डायन-बिसाही के नाम पर प्रताड़ना की घटनाओं के लिए लिए वर्ष 2001 में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम लागू हुआ था, बावजूद इसके झारखंड मे वीभत्स डायन हत्या हुई. लोग गोलबंद होकर हजारों की भीड़ किसी एक निर्दोष महिला के घर धावा बोल देती है. इससे पीडिता को बचने का अवसर भी नहीं मिल पाता. झारखंड बनने के बाद डायन प्रताड़ना और हिंसा के बढ़ते मामले यह बताते हैं कि कानून की नये सिरे से समीक्षा की जरूरत है. दंड के नियमों को कठोर बनाये जाने, फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर ऐसे मामलों में जल्द फैसला लिये जाने और सामाजिक स्तर पर जागरूकता का अभियान और तेज किये जाने की जरूरत है. राहुल कहते हैं कि डायन हत्या की कठोर सजा के आड़े आता है भीडतंत्र हजार लोगों की भीड़ किसी निर्बल असहाय को घेरकर मारती है तो कितने चेहरे को याद रखा जाए और इसमें सजा भी कम होती है जिससे अपराधी आसानी से मुक्त भी हो जाते हैं. जुर्माना भी बहुत कम लगाया जाता है और अपराधी आसानी से छूट भी जाता है. अधिकतर मामलों मे राहुल ने पाया की ये हत्याएं आपसी रंजिश या अकेली महिला की संपत्ति हड़पने के उद्देश्य से किया जाता है. राहुल बताते हैं कि एक बार उन्हें सूचना मिली की खूंटी के एक गाँव में लोगों के बीच ये अपवाह फैलाई जा रही है की गाँव की ही एक महिला तंत्र मंत्र करती है तथा उसी के कारण गाँव मे किसी अन्य आदमी की मृत्यु हुई है. ऐसी सूचना मिलने पर समाजसेवी राहुल जब अपनी टीम के साथ उस गाँव पहुंच कर मामले का जायज लेते हैं, तो पाते है कि मामला एक नाली के विवाद का था जिसे तंत्र मंत्र और तोन टोटका बोल कर एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष की हत्या की योजना बनाई जा रही थी. राहुल कहते हैं अधिकतर मामले में ऐसा ही होता है. छोटी सी बात को लेकर कोई शातिर दिमाग सबके मन मे अंधविश्वास पैदा कर देता है और एक दिन घेराबंदी कर, हो जाती है किसी निर्दोष की हत्या. आगे राहुल कहते है कि ये सब अचानक नही होता है. इसके लिए सही समय और घटानाओं को जोड़ने की एक तैयारी की जाती है. किसी गाँव या मोहल्ले में होने वाली घटनाओं को किसी व्यक्ति विशेष से जोड़ा जाता है और धीरे धीरे माहौल बना कर भीड़ को उकसाया जाता है. उसके बाद होता है जघन्य अपराध इस मामले में कानून बहुत ही लचीला है. दोषियों को पकड़ने में देरी और हल्के जुर्माने के साथ छूट जाना अपराधियों के मनोबल को बढ़ाता है. ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए कड़ी कानून और सख्ती से पालन होना जरूरी है.
कैसे रोकेगी डायन हत्या को गरिमा परियोजना
इधर डायन प्रथा के खिलाफ सरकारी प्रयासों को लेकर राज्य सरकार के अपने दावे हैं. झारखंड के मुख्यमंत्री के पोर्टल में दावा किया गया है कि झारखंड को डायन कुप्रथा एवं उसकी ब्रांडिंग से मुक्त घोषित करने के लिए गरिमा परियोजना संचालित की जा रही है. पहले चरण में 7 जिलों के 25 प्रखंडों की 342 ग्राम पंचायतों में ये योजना चल रही है. इसके तहत डायन कुप्रथा के उन्मूलन के लिए जागरूकता अभियान और पीड़िता अथवा उसके परिवार की पहचान कर लाभ पहुंचाया जाना है. इसके लिए गरिमा केंद्र और कॉल सेंटर स्थापित किये गये हैं. बता दें झारखंड का कोई भी जिला ऐसा नहीं, जो इस अंधविश्वास और कुप्रथा से बचा हो. यह कुप्रथा दलित, पिछड़े और आदिवासी समाज में इस कदर पैठ बना चुकी है कि कड़े कानून भी इसको रोकने में नाकाम साबित हो रहे हैं. राज्य बनने के तत्काल बाद आदिवासी क्षेत्रों से इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए 2001 में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001 बना. इसमें कड़ी सजा और जुर्माने का भी प्रविधान है, लेकिन डायन के नाम पर होने वाली हत्याएं थम नहीं रही हैं. हालांकि ऐसी हत्याओं को हम केवल अंधविश्वास का परिणाम कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं. कई बार यह षड्यंत्र का भी नतीजा होता है. इस स्थिति का बदला जाना आवश्यक है. खूंटी, गुमला, पलामू, हजारीबाग से लेकर गिरिडीह और संताल परगना तक ऐसी निर्मम घटनाएं आम होती जा रही है. डायन हत्या जैसी कुप्रथाएं हमारे विश्वास और उद्देश्यों को कमजोर कर रही हैं. अलग राज्य बनने के दो दशक बाद भी हम इससे छुटकारा नहीं पा सके. इस कलंक को घोना ही होगा.
क्या है ‘डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001
वर्ष 2001 में झारखंड सरकार ने अपनी 17वीं बैठक में ‘डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001’ को लागू किया. इस तरह झारखंड देश में दूसरा राज्य बना, जिसने डायन प्रथा के खिलाफ प्रतिषेधात्मक कानून बनाया. झारखंड राज्य डायन प्रथा प्रतिषेध कानून 2001 के अंतर्गत सजा भी कोई अधिक नही है. इसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति किसी को डायन घोषित करता है तो उसे 3 महीने की सजा या ₹1000 का जुर्माना या दोनों हो सकता है. अगर कोई व्यक्ति किसी महिला को डायन करार देकर शारीरिक और मानसिक तौर पे प्रताड़ित करता हो तो उसे 6 माह का कारावास या ₹2000 का जुर्माना या दोनों हो सकता है. झारखंड सरकार डायन बिसाही के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए जागरूकता अभियान चलाती है. 'डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001' के तहत पूरे राज्य में इस कुप्रथा के खिलाफ प्रचार प्रसार किया जा रहा है. इसके लिए नुक्कंड़ नाटक और अन्य' प्रचार के तरीके अपनाए जा रहे हैं. सरकार ने इसके लिए इस साल के बजट में 1 करोड़ 20 लाख रुपए का फंड भी रखा है. हालांकि डायन बिसाही के मामलों पर काम करने वाले लोग सरकार के जागरूकरता अभियान को ज्यादा सफल नहीं मानते. जब तक लोगों की जिम्मेदारी तय नहीं होगी तब तक यह मामले रुकेंगे नहीं.