रांची(RANCHI): - भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रुप में दीपक प्रकाश का कार्यकाल 25 फरवरी को समाप्त होने जा रहा है. इसके साथ ही राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठने लगा है कि भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष कौन होने वाला है, किसके कंधों पर यह जिम्मेवारी दी जाने वाली है.
सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या भाजपा एक बार फिर से दीपक प्रकाश को ही यह जिम्मेवारी देगी या किसी और नाम पर भी अन्दरखाने चर्चा चल रही है.
केन्द्रीय नेतृत्व पर लगी हुई है सबकी निगाहें
हालांकि भाजपा की ओर से अब तक अधिकृत रुप से इस मामले में कोई जानकारी नहीं दी जा रही है, लेकिन प्रदेश के सारे नेताओं की नजर केन्द्रीय नेतृत्व की ओर लगी हुई है. सबों को केन्द्रीय नेतृत्व के फैसले का इंतजार है.
एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत
यहां बता दें कि दीपक प्रकाश वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही राज्यसभा सांसद भी हैं. यदि एक व्यक्ति एक पद की बात करें तो यह दायित्व उन्हे पहले भी नहीं दिया जाता, लेकिन फिलहाल भाजपा एक व्यक्ति एक पद के अपने पुराने सिद्धांत से किनारा करती दिख रही है. इस आधार पर यह माना जा रहा है कि भाजपा अभी झारखंड में किसी नये प्रयोग के लिए तैयार नहीं होगी.
दीपक प्रकाश को प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए भाजपा को सभी उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा
लेकिन यहां यह भी जानना जरुरी है कि दीपक प्रकाश प्रदेश अध्यक्ष के रुप में अब तक किसी भी उपचुनाव में भाजपा को जीत दिलवाने में कामयाब नहीं रहे और यह नाकामयाबी उनका पर कतर सकती है, खुद प्रदेश संगठन के अन्दर भी दीपक प्रकाश का दबे जुबान विरोध किया जाता रहा है. दावा यह भी है कि झारखंड में दीपक प्रकाश का कोई जमीनी पकड़ नहीं है और ना ही राज्य स्तर पर उनकी पहचान है. वह अपने दम-खम पर भाजपा को कोई कामयाबी दिलवाने का सामर्थ्य नहीं रखते.
बाबूलाल के नाम पर विचार
पार्टी से जुड़े कुछ नेताओं का इशारा है कि पार्टी बाबूलाल मरांडी या राज्य सभा सांसद आदित्य साहू के नाम पर विचार कर सकती है. लेकिन यहां यह बता दें कि भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया है, लेकिन काफी मशक्कत के बाद भी अब तक नेता प्रतिपक्ष के रुप में उनकी दावेदारी को स्वीकार नहीं किया गया है, यह मामला अभी भी विधान सभा अध्यक्ष के न्यायाधिकरण में लटका पड़ा है, हाल ही में विधान सभा अध्यक्ष रविन्द्र नाथ महतो के द्वारा यह संकेत भी दे दिया था कि भाजपा नेता प्रतिपक्ष के लिए किसी और नाम पर विचार करे.
फिर कौन होगा विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष
इस प्रकार देखा जाय तो भाजपा बाबूलाल के नाम पर विचार कर सकती है, लेकिन फिर बड़ा सवाल यह खड़ा होगा कि विधान सभा के अन्दर नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेवारी किसे दी जायेगी. झारखंड के वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में भाजपा की कोशिश होगी कि यदि प्रदेश अध्यक्ष कोई आदिवासी हो तो नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेवारी किसी मूलवासी को दी जाय. इस मामले में भाजपा के पास कोई ज्यादा विकल्प नहीं है.
हेमंत सोरेन के आदिवासी-मूलवासी कार्ड का जवाब खोजेगी भाजपा
क्योंकि जिस तरीके से हेमंत सोरेन के द्वारा आदिवासी-मूलवासी कार्ड खेलकर भाजपा को घेरने की रणनीति बनायी गयी है, उसके बाद भाजपा के सामने किसी अगड़ी जाति के नेता को सामने लाना राजनीतिक रुप से काफी चुनौतीपूर्ण होने वाला है. खासकर तब जबकि कई मौके पर हेमंत सोरेन के द्वारा भाजपा नेताओं का नाम ले-ले कर उन्हे गैर झारखंडी बताया गया है, उनका संबंध बिहार, उतर प्रदेश और छत्तीसगढ़ से जोड़ा गया है.
विकल्प क्या है?
बहुत संभव है कि इस परिस्थिति में भाजपा दोनों ही पदों पर किसी खांटी झारखंडी को सामने रखें, एक पद पर किसी आदिवासी को रखे तो दूसरे पद पर किसी मूलवासी को. इस हालत में बहुत संभव है कि आदित्य साहू के नाम पर विचार किया जा सकता है. अब देखना होगा कि भाजपा क्या निर्णय लेती है, फिलहाल तो सारे झारखंडी नेताओं का जमाकड़ा रामगढ़ के चुनावी मैदान में है. बहुत संभव है कि उसके बाद ही इसकी घोषणा हो, क्योंकि यह दीपक प्रकाश की अंतिम परीक्षा है.