धनबाद(DHANBAD) : क्या 17 हज़ार करोड़ कमाने वाले के साथ रेलवे का यही न्याय है? क्या कोई सांसद अगर किसी ट्रेन को यथावत रखने को कह दे, तो उस ट्रेन को रेलवे उसके भाग्य के भरोसे छोड़ देगा? क्या रेलवे को जनता के हित के विरोध पर भी गुस्सा आ जाता है ? यह सवाल इसलिए बड़ा हो गया है कि 2 साल पहले पूर्व सांसद पशुपतिनाथ सिंह ने धनबाद-टाटा स्वर्णरेखा में किसी भी बदलाव का विरोध किया था. दरअसल, रेलवे ने 2 साल पहले गंगा दामोदर एक्सप्रेस की रैक को एलएचबी में तब्दील करते हुए इस ट्रेन को स्वर्ण रेखा की जगह धनबाद के बदले टाटानगर से चलाने का ऐलान किया था. उस समय धनबाद के सांसद पशुपतिनाथ सिंह थे. पशुपतिनाथ सिंह के विरोध के बाद गंगा दामोदर का विस्तार टाटानगर तक करने के निर्णय को रोक दिया गया. तब से रेलवे ने धनबाद -टाटानगर स्वर्ण रेखा एक्सप्रेस से आंखें बंद कर ली है.
एलएचबी बोगी के इंतजार में जैसे-तैसे दौड़ रही है ट्रेन
धनबाद से चलने वाली कई ट्रेनों में एलएचबी बोगी मिल चुकी है, लेकिन स्वर्णरेखा पुरानी और जर्जर बोगियों के साथ ही चल रही है. दरअसल, धनबाद से टाटानगर के बीच चलने वाली स्वर्ण रेखा एक्सप्रेस जर्जर बोगियों के साथ दौड़ रही है. बोगियां इतनी पुरानी और जर्जर हो गई है कि इसमें छिद्र बन गए है. धनबाद से टाटानगर के बीच कई दशकों से स्वर्ण रेखा एक्सप्रेस चल रही है. इससे लोग आना-जाना करते है. धनबाद से टाटानगर को जोड़ने वाली इस महत्वपूर्ण ट्रेन के प्रति रेलवे का रवैया बिल्कुल उदासीन है. इधर, धनबाद की ट्रेन नामक ग्रुप ने धनबाद-टाटानगर की बदहाली पर सोशल मीडिया एक्स पर अभियान चलाया है. ग्रुप के सदस्यों के साथ-साथ धनबाद के आम लोगों ने भी इसका समर्थन किया है. ताकि जल्द से जल्द इस पर कोई पहल की जा सके और यात्रियों को सुविधा मिले. धनबाद के डीआरएम के साथ-साथ पूर्व मध्य रेलवे के महाप्रबंधक और रेल मंत्री को ट्वीट कर ट्रेन की बोगियों में बदलाव की मांग की गई है.
रेल मंत्री से धनबाद के लोगों का सवाल-17000 करोड़ कमाने वाले का यह हाल
लोगों ने रेल मंत्री से पूछा है कि 17000 करोड रुपए कमाने वाले धनबाद डिवीजन के साथ यह भेदभाव क्यों? धनबाद रेल डिवीजन भारतीय रेल का कमाई में सिरमौर है. धनबाद डिवीजन की बदौलत रेलवे की छाती चौड़ी होती है. फिर भी धनबाद के प्रति रेलवे का रुख सौतेला रहता है. यह बात कई मौकों पर साबित भी हो चुकी है. धनबाद को भले ही धन से आबाद कहा जाता हो, भले ही यहां का रेल मंडल देश का नंबर एक कमाऊ पूत हो, भले ही धनबाद रेल मंडल की कमाई से रेल मंत्रालय की छाती चौड़ी होती हो, लेकिन धनबाद को सुविधाओं के लिए तरसाया जाता है. धनबाद से दिल्ली के लिए हर दिन सैकड़ों लोग रेल मार्ग से यात्रा करते हैं, पर धनबाद से दिल्ली के लिए कोई ट्रेन नहीं खुलती. लोगों को हावड़ा और सियालदह से आने वाली ट्रेनों पर ही आश्रित रहना पड़ता है. धनबाद से दिल्ली के लिए ट्रेन की मांग 20 वर्षों से लगातार की जा रही है. इसपर रेलवे ने कभी ध्यान तक नहीं दिया. नतीजा धनबाद को आज तक दिल्ली के लिए ट्रेन नहीं मिल सकी. और अब धनबाद-टाटा स्वर्णरेखा का यह हाल.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो