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धनबाद शहर में सांड़ तो ग्रामीण इलाकों में हाथी क्यों मचा रहे उत्पात, पढ़िए इस रिपोर्ट में 

धनबाद शहर में सांड़ तो ग्रामीण इलाकों में हाथी क्यों मचा रहे उत्पात, पढ़िए इस रिपोर्ट में 

धनबाद(DHANBAD) : धनबाद के शहरी  इलाकों में आवारा पशुओं, खासकर सांड़ का आतंक है, तो ग्रामीण इलाकों में हाथियों के डर से लोग घर में भी नहीं रहते. शहर में आवारा पशुओं को पकड़ने का काम नगर निगम का है, तो ग्रामीण क्षेत्र में हाथियों के आतंक से छुटकारा दिलाने का काम वन विभाग का है. लेकिन न नगर निगम धनबाद शहर के लोगों को भय मुक्त करा पा रहा है और नहीं वन विभाग ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को सुकून से रहने की व्यवस्था दे पा रहा है. शहर में सांड़ों  का आतंक तो सिर  चढ़कर बोलता है. सांड के हमले से घायल भिश्ती पाड़ा, धनबाद निवासी सेवानिवृत्ति रेलकर्मी बाबू बनर्जी की मौत हो गई है. 23 जुलाई को सांड़  ने उन पर हमला कर दिया था. उसके बाद उन्हें  अस्पताल में भर्ती कराया गया था.  

ब्रेन  सर्जरी के बाद भी नहीं बचाया जा सका 

उनके सिर पर गंभीर चोट थी. ब्रेन सर्जरी के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका.  इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया. परिजनों के अनुसार 23 जुलाई की सुबह बाबू बनर्जी घर से जाने के लिए कहीं निकले. लिंडसे  क्लब रोड स्थित शुभम लॉज के पास सड़क पर सांड़ ने  हमला बोल दिया और वह गंभीर रूप से जख्मी हो गए. उनके सिर में गंभीर चोट आई थी. ब्रेन सर्जरी भी की गई बावजूद उन्हें नहीं  बचाया नहीं जा सका. अंतत उनकी मौत हो गई. धनबाद शहर की यह कोई पहली घटना नहीं है. इसके पहले भी आवारा पशुओं ने कई लोगों की जान ले ली है. इधर, गिरिडीह, दुमका, जामताड़ा से सटे ज़िलों के ग्रामीण इलाकों में हाथियों का उत्पात लगातार बना रहता है. खासकर टुंडी, पूर्वी टुंडी तथा तोपचांची व आसपास के इलाकों में साल के लगभग 6 महीने हाथी डेरा जमाए रहते है. इनकी चपेट में आकर कई लोगों की जान भी जा चुकी है. फसलों का भी भारी नुकसान होता है. किसी तरह वन विभाग और ग्रामीण संयुक्त रूप से हाथियों को भगा पाते हैं, लेकिन हाथी फिर लौट आते है. वन विभाग की सायरन योजना सहित मशालची  योजना फेल हो जाती है.

कहां गुम हो गई है  एलिफेंट कॉरिडोर योजना
  
सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि हाथियों के सुरक्षित आवागमन को लेकर प्रस्तावित एलिफेंट कॉरिडोर योजना अभी भी फाइलों में बंद है. अगर यह योजना जमीन पर उतर पाती तो लोगों  की जान बच सकती थी. फसल का नुकसान रोका जा सकता था. जानकारी निकाल कर आ रही है कि गांव में हाथियों का प्रवेश रोकने सहित हाथियों को सुरक्षित स्थान देने के लिए साल  13 -14 में  3000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले टुंडी पहाड़ में हाथियों के लिए कॉरिडोर बनाने की योजना धनबाद वन प्रमंडल ने बनाई थी. इसके लिए लगभग 9 करोड रुपए की योजना बनाई गई थी. प्रस्ताव तैयार कर मुख्यालय भेजा गया, लेकिन योजना अभी भी फाइलों में कैद है. वन विभाग के सूत्रों के अनुसार हाथियों का झुंड सबसे अधिक समय टुंडी और तोपचांची के जंगलों व पहाड़ों में रहता है. टुंडी ,पूर्वी टुंडी के अलावा तोपचांची  के जंगलों में जब हाथी पहुंच जाते हैं, तो कोहराम मच  जाता है.  देशभर के 22 राज्यों में 27 एलिफेंट कॉरिडोर हैं, लेकिन झारखंड में एक भी एलिफेंट कॉरिडोर नहीं है.

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो 

Published at:29 Jul 2024 12:34 PM (IST)
Tags:DhanbadAwara PashuShaharDehatNigam
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