रांची (TNP Desk) : झारखंड के चार सीटों पर होने वाले चुनाव को लेकर सियासी घमासान जोरों पर है. वोटरों को साधने के लिए युद्ध स्तर पर प्रत्याशी से लेकर बड़े-बड़े नेता और कार्यकर्ता लगातार जनसंपर्क अभियान में जुटे हुए हैं. जगह-जगह पर जनसभाएं कर मतदाताओं को रिझाने का काम किया जा रहा है. विभिन्न प्रत्याशी लोगों से कई वादे करे रहें है. झारखंड में लोकसभा चुनाव का प्रचार प्रसार कल थम जाएगा, यहां 13 मई को वोटिंग होगी. इसी वजह से सभी दल के नेता आखिरी जोर लगा रहे हैं.
लोहरदगा संसदीय क्षेत्र की बात करें तो यहां त्रिकोणीय मुकाबले के आसार है. इस सीट से भाजपा के समीर उरांव, कांग्रेस के सुखदेव भगत और निर्दलीय उम्मीदवार चमरा लिंडा मैदान में ताल ठोक रहे हैं. वैसे तो पंद्रह उम्मीदवार अपनी किस्मत अजमा रहे हैं. लेकिन मुख्य मुकाबला, समीर उरांव, सुखदेव भगत और चमरा लिंडा का नाम सबसे ऊपर चल रहा है. तीनों ही उम्मीदवार के कार्यकर्ता अपना-अपना दम दिखाने में लगे हैं. शहर से लेकर गांव तक घूम-घूमकर प्रचार प्रसार के माध्यम से जीत की जुगाड़ में लगे हैं. अगर मतदाताओं के रुझान की बात करें तो एक तरह से अलग-अलग समाज के लोगों की राय अलग-अलग दिखाई दे रहा है. मतदाताओं की बात करें तो पूरे क्षेत्र से एक बात निकलकर सामने आ रही है जो भी पार्टियां जिन्हें खास समुदाय से उम्मीद है उससे ऊपर उठकर अगर सेंधमारी कर ले तो मत प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हो सकती है. वहीं कुछ मतदाताओं का कहना है कि हमलोग जिस पार्टी के प्रत्याशी को वोट देते थे वो हमारी उम्मीदों पर खड़ा नहीं उतरे. हमारी जो मांगे थी वो अबतक पूरी नहीं हुई.
क्या सोचते हैं मुस्लिम मतदाता
लोहरदगा संसदीय क्षेत्र एसटी के रिजर्व है. यहां की जातीय समीकरण की बात करें तो बौद्ध 0.04 प्रतिशत, ईसाई 13.91 प्रतिशत, जैन 0.02 प्रतिशत, अनुसूचित जाति 3.63 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 59.88 प्रतिशत और मुस्लिम 9.95 प्रतिशत है. चुनाव को लेकर मुस्लिम मतदाता चुप्पी साधे हुए हैं. कोई भी इस मामले पर बोलने को तैयार नहीं है कि इनका वोट किसके पक्ष में जाएगा. लेकिन ऑफ द कैमरा मुस्लिम वोटर ये जरूर कहा कि हमें कांग्रेस पार्टी से उम्मीद थी कि राज्य के किसी एक संसदीय क्षेत्र से मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाया है. वहीं कुछ लोग चमरा के पक्ष में जाते हुए दिख रहे हैं.
बिल्कुल अलग नजर आएगा इस बार का चुनाव
ऐसे में इस बात की ज्यादा संभावना बन रही है कि बीजेपी, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवार चमरा लिंडा हो, अगर अपने पुराने और समर्थित मतदाताओं को मनाने और रिझाने में ध्यान नहीं दे पाए तो इस बार का चुनाव बिल्कुल अलग नजर आएगा. मतलब चाहे पार्टियां जो भी हो और अगर सोच रहे हो कि हमारा पूरा मतदाता इतना है तो ऐसे में उनका आंकड़ा गड़बड़ाने की संभावना ज्यादा बढ़ गई है. ऐसे में इन्हें और ज्यादा ताकत लगाने की जरूरत है, ताकि वोटर इनके पक्ष में मतदान कर सके.