Tnp desk:- सियासत में जिसने संघर्ष किया, इसके दांव-पेंच को जाना औऱ जनता से जुड़ा रहा , उसकी किस्मत देखा गया है कि देर-सवेर खुलती ही है. चंपई मंत्रिमंडल में शामिल नये चेहरा दीपका बरुआ इन्हीं नामों में से एक है. जिनकी किस्मत देर से ही सही , लेकिन खुली. अगर दीपक की तुलना बसंत सोरेन से करें तो , इस मुकाबले उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ा. तब जाकर अभी यहां पहुंचे. यानि सियासी सफर में धूप-छांव देखने के साथ संघर्ष भी काफी किया. वही, दिशोम गुरु शिबू सोरेन के छोटे बेटे बसंत सोरेन को राजनीति विरासत में मिली, जिसका फायदा भी जल्द ही मिल गया. दुमका से पहली बार विधायक बनने के बाद, मंत्री भी इसी दौरान बन गये. सबकुछ जल्द मिल गया, लेकिन दीपक को इसके लिए संघर्ष के रास्ता तय करना पड़ा, तब जाकर मंजिल मिली.
चाईबासा के विधायक हैं दीपक बरुआ
दीपक बरुआ जो की चाईबासा से लगातार तीन बार जेएमएम के लिए चुने गये, लंबे समय से उनको दरकिना करना मुश्किल था. इसलिए पार्टी ने विचार किया, वो भी दीपक ने झारखंड मुक्ती मोर्चा की कद्दावर जोबा मांझी की जगह ली. जो की हेमंत कैबिनेट में एकमात्र आदिवासी महिला चेहरा के तौर पर मंत्री रही. चंपई मंत्रिमंडल में ज्यादा फेरबदल तो दिखा ही नहीं, सिर्फ मनोहरपुर से जेएमएम की विधायक जोबा मांझी को किनारे लगाया गया . जोबा का लंबा राजनीति अनुभव रहा है और महिला आदिवासी चेहरे के तौर पर पेश होती रही है. जोबा के जमीनी आधार और पकड़ का अंदाजा, इस बात से लगाया जा सकता है कि पांच बार मनोहरपुर विधानसभा सीट से विधायक बन चुकी हैं और चार बार कैबिनेट मंत्री रही. उनके दिवंगत पति देवेन्द्र मांझी भी बड़े राजनेता रहे थे , उनकी हत्या 1994 में कर दी गई थी. इसके बाद 1995 में जोबा मांझी ने अपना सियासी सफर शुरु किया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनकी जगह को हटाकर दीपका बिरुआ को कैबिनेट मंत्री बनना, ताज्जुब औऱ चौकाने वाला तो रहा ही, इसके साथ ही अभी भी ये चर्चा का केन्द्र बना हुआ है . सवाल किया जा रहा है कि आखिर जोबा मांझी को क्यों हटाया गया, जो इकलौती आदिवासी महिला का चेहरा पेश करती थी.
.इस बार जोबा मांझी का कट गया पत्ता
चंपई सरकार में दीपक बिरुआ को परिवहन, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग मिला है, जिसका काम देखेंगे. कोल्हान में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गढ़ है , जहां बिरुआ ने खासी मेहनत की है और अपनी जमीन तैयार की है. दरअसल, सबसे ज्यादा सुर्खिया अपनी सियासी सफर में बिरुआ को तब मिली, जब उन्होने 2009, 2014 और 2019 में लगातार तीन बार चक्रधरपुर से जेएमएम की टिकट पर विधायक चुने गये. बिरुआ की ताकत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है. जब उन्होंने दो बार बीजेपी के उम्मीदवार और गृह सचिव रहे जेबी तुबिद को करारी शिकस्त दी और उनके सपने को चकनाचूर कर दिया.
उनके मंत्री बनने की चर्चा तो तत्कालीन हेमंत सरकार में भी थी. लेकिन, किसी वजह से चुक गये. उनकी दावेदारी और उनका कद हमेशा पार्टी के सामने दस्तक देता रहा है. दीपक बिरुआ राजनीतिक सफर काफी लंबा रहा है और तीन दशक से ज्यादा वक्त से सियासत की दांव-पेंच , उतार-चढ़ाव और दाएं-बाएं के खेल को देख रहें हैं.
आजसू से शुरु किया सियासी सफर
बीए पास दीपक ने अपने सियासी सफर में तो कई उतार-चढ़ाव और धूप-छांव देखे. लेकिन, उनकी शुरुआत आजसू पार्टी के साथ हुई. 1990 में इसी पार्टी से चुनाव भी लड़ा औऱ फिर 1991 में लोकसभा के लिए भी खड़े हुए. लेकिन उनके करियर में कामयाबी 1995 में आयी, जब पहली बार जनता दल के टिकट से विधायक बनें. बिरूआ 1997 में झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़े और चुनाव भी लड़ा . इसके बाद फिर इससे अलग होकर 2005 में निर्दलीय चुनाव लड़ा . बाद में एकबार फिर जेएमएम में आ गये और 2009 में विधानसभा चुनाव लड़ा और विधायक बनें. इसके बाद लगातार तीन बार से चाईबासा का प्रतिनिधित्व विधानसभा में कर रहें है.
मंत्री बनने के ख्वाब तो दीपका बरूआ का पूरा हो गया . लेकिन, अभ देखना है कि आगे कैसे काम करते हैं. क्योकि, मंत्री पद भी कुछ वक्त के लिए रहने वाला है, क्योंकि इस साल के आखिर में झारखंड का विधानसभा का चुनाव भी होगा.
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह