दुमका (DUMKA): जनवरी के महीने में संताल प्रमंडल के गली मुहल्ले से लेकर चौक चौराहे तक आपको एक नजारा देखने को आसानी से मिल जाएगा. परंपरागत परिधान में लोगों की टोली उम्र को दरकिनार कर एक साथ कदम ताल करते नजर आ जाएंगे. परंपरागत वाद्य यंत्रों से निकलते मधुर धुन को सुनते ही संताल समाज के लोगों का मन खुशी से झूमने लगता है. आखिर हो भी क्यों नहीं, सोहराय जैसा त्यौहार जो आया है.यह पर्व संताल समाज का सबसे बड़ा पर्व है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि इसकी तुलना हाथी से की गई है.
कृषि कार्य में पशु की महत्ता को देखते हुए होती है पशु की पूजा
आदिवासी प्रकृति पूजक होते है. संताल समाज का सबसे बड़ा पर्व सोहराय जनवरी के महीने में मनाया जाता है। यह 5 दिनों तक मनाया जाता है.हर दिन का अपना नाम और महत्व ह। इस समय नया फसल खेतों से कटकर दरवाजे तक पहुंच जाता है. फसल उत्पादन में पशु की भूमिका काफी अहम मानी जाती है.सोहराय पर्व में पशु की पूजा होती है.उसकी मेहनत के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है.
भाई और बहन के अटूट स्नेह को दर्शाता है सोहराय पर्व
सोहराय पर्व प्रकृति के प्रति आस्था के साथ साथ भाई बहन के अटूट स्नेह को दर्शाता है. अमूमन कहा जाता है कि बेटियां पराई होती है. शादी के बाद बेटियों को पिता का घर छोड़ कर ससुराल जाना पड़ता है. लेकिन संताल समाज में सोहराय के मौके पर भाई अपनी बहन को आमंत्रित कर ससुराल से मायके लाते है. पर्व त्यौहार के बहाने परिवार के सभी सदस्य जब एकत्रित होते है तो एक उत्सव सा माहौल तैयार होता है और उत्सवी माहौल में सोहराय के गीत पर सभी एक साथ कदम ताल करते नजर आते है.
सचमुच सोहराय पर्व संताल समाज का सबसे महत्वपूर्व पर्व है.यह पर्व अपनी सभ्यता और संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश देती है। समाज के लोगों को बेसब्री से इस पर्व का इंतजार रहता है. जनवरी महीना आते ही संताल समाज के लोग मिलकर सोहराय की खुशियां बांटते है.
रिपोर्ट: पंचम झा