टीएनपी डेस्क:10 सितंबर को आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंसन डे मनाया जाता है. लेकिन यह दिन सिर्फ नाम का ही रह गया है. क्योंकि राज्य में आत्महत्या के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है. इसकी रोकथाम के लिए दावे तो कई किए जाते हैं. लेकिन, दावे धरातल पर नहीं दिखती हैं और नतीजा, लोग सुसाइड करने पर मजबूर हो जाते हैं, जिंदगी बहुत अनमोल है लेकिन कई लोग छोटी सी विफलता,दबाव के आगे हिम्मत खो देते है और आत्महत्या कर बैठते हैं. लेकिन वह लोग यह नहीं समझते हैं कि उनके इन फैसले से उनके परिवार वालों पर क्या बीतती होगी.
देश में आत्महत्या के आंकड़ों में लगातार वृद्धि हो रही है, दबाव झेलने की क्षमता लोगों में कम हो रही है.ताज़ा मामला रांची के बरियातू थाना क्षेत्र का हैं जहां 49 वर्षीय महिला ने खुदकुशी कर ली. महिला उसी अपार्टमेंट के चौथे फ्लोर पर अपने पति और बच्चे के साथ रहा करती थी.मामले को लेकर महिला के पति चन्द्रेश्वर प्रसाद ने बताया कि रविवार की सुबह उनकी पत्नी कब घर से बाहर निकल गई उन्हे यह पता ही नहीं चला.फ्लैट के लोगो की ओर से उन्हें सूचना दी गई कि उनकी पत्नी खून से लथपथ अवस्था में पड़ी हुई है. अनन फनन में जब वह मौके पर पहुंचे तो देखा कि उनकी पत्नी मृत पड़ी हुई है.मामले की जानकारी मिलने बाद बरियातू पुलिस की टीम मौके पर पहुंची और शव को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए रिम्स भेज दिया.वहीं फ्लैट के लोगों ने बताया कि मधुबाला सुबह के समय छत पर थी और फिर अचानक नीचे कूद गई. जिससे उनकी मौत हो गई.लेकिन झारखंड की राजधानी रांची का यह पहला मामला नहीं था बता दें कि हर हफ्ते इस तरीके का मामला सामने आता है जहां कोई ना कोई आत्महत्या कर बैठता है
झारखंड का ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों का भी यही हाल
राजस्थान के कोटा शहर से भी इस तरीका का मामला लगातार आता है.आपने कोटा शहर के बारे में तो जरुर सुना होगा. उच्च शिक्षा कोचिंग के लिए कई लोग कोटा शहर जाते हैं ताकि वहां से अच्छी शिक्षा ले सकें. देश के कोने-कोने से बच्चे मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी करने के लिए कोटा शहर जाते हैं, लेकिन कोटा शहर में आए दिन बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं, आज तक के जो आंकड़े बताते हैं वह यही कहते हैं कि अबतक जितने बच्चों ने सुसाइड किया है वह या तो गरीब या फिर मिडिल क्लास फैमिली के बच्चे होते हैं. तनाव और दबाव की वजह से ऐसा कदम उठा लेते है, आंकड़े बताते हैं इस साल लगभग दो दर्जन बच्चों ने आत्महत्या की है.
सकारात्मक विचार से मिलती है खुशी
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सकारात्मक विचार हमारे दिमाग में डोपामाइन और नोरपेनेफिरन जैसे रासायनिक द्रव्य की सक्रियता को बढ़ाते हैं, जिससे व्यक्ति को खुशी एवं आनंद की अनुभूति होती है.सकारात्मक सोच के कारण मेटाबॉलिज्म संतुलित होता है, जिसके कारण मनोविकार उत्पन्न नहीं होते हैं.सकारात्मक सोच, तनाव को ऊर्जा में रूपांतरित करके व्यक्ति की ताकत बना देते हैं,इसलिए नशीले पदार्थों के सेवन से दूर रहे और एक्सरसाइज, योग प्राणायाम, डायरी राइटिंग, पेंटिंग, अच्छा साहित्य पढ़ना चाहिए.
क्या हैं लक्षण
बच्चों के स्वभाव में अचानक परिवर्तन दिखाई दे, जैसे नींद में कमी, भोजन में अरुचि, अकेला रहने की आदत, चिड़चिड़ापन, नकारात्मक प्रवृत्ति, आक्रामकता, संवेगिक अस्थिरता आदि. मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक लक्षणों को कभी अनदेखा न करें. आवश्यकता पड़ने पर मनोचिकित्सक की सलाह भी जरूर लें.
बचाव के क्या हैं उपाय
आत्महत्या करने के कई कारण होते हैं और स्पीच मन विचलित भी हो जाता है लेकिन जब भी मन हताश और निराश हो या खुदकुशी का विचार आने लगे तो तत्काल अपने करीबी या अपने दोस्त के अलावा परिवार के किसी सदस्य से इन तमाम बातों को साझा करें.यदि फिर भी आपको लगे की बार-बार ऐसे विचार मन में आ रहे है तो उम्मीदों का दामन जोर से पकड़ लें और नकारात्मक विचारों को दूर रखकर जिंदगी को गले लगाना सीखें.