धनबाद(DHANBAD): कोयलांचल की राजनीति को गुरदास चटर्जी से पृथक करके नहीं देखा जा सकता. यह अलग बात है कि वह जमाना बिहार का था .उस समय झारखंड नहीं बना था. आज ही के दिन 2000 में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी. उनके बारे में यह कहावत प्रचलित थी कि वह बुलेट मोटरसाइकिल तो रखते थे लेकिन खुद चलाने नहीं जानते. चलाने वाला कोई साथी रहता था. इसी मोटरसाइकिल पर धनबाद से निरसा लौट रहे थे कि गोविंदपुर और निरसा के बीच देवली में घात लगाए अपराधियों ने उनकी हत्या कर दी. उस समय धनबाद के एसपी अनिल पलटा थे. गुरदास चटर्जी की हत्या की खबर से प्रशासन के हाथ पांव फूलने लगे थे. एसपी तत्काल घटना स्थल पर पहुंचे थे और शुरू हो गई थी ताबड़तोड़ छापेमारी.भारी भीड़ जुट गई थी. निरसा पुलिस पर कई तरह के आरोप लगे थे. भीड़ निरसा थाने पर हमले को उतावली थी. लेकिन पुलिस की सजगता और होशियारी से ऐसा कुछ नहीं हुआ.
धनबाद प्रशासन ही नहीं बल्कि बिहार सरकार में भी उनकी हनक थी
गुरदास चटर्जी विधायक तो थे लेकिन रहते थे एक सामान्य व्यक्ति की तरह. निरसा से तीन बार विधायक रहे. 1990, 1995 और 2000 में वह विधायक रहे. पूर्व सांसद और चिंतक एके राय के विश्वासपात्र रहे. विधायक रहते हुए जब भी पटना से लौटते तो पहले एके राय के पुराना बाजार स्थित घर जाते. फिर निरसा लौटते. नौकरी त्याग कर राजनीति में आए गुरदास चटर्जी कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और लोगों का विश्वास और भरोसा जीतने में वह लगातार कामयाब होते रहे. आज भी उनके समर्थक या उनसे उपकृत लोग उनको याद कर परेशान हो जाते हैं. आंखों में आंसू छलक पड़ते हैं. यह अलग बात है कि उन पर उद्योगों को बंद करने का भी आरोप लगते रहे, लेकिन इस आरोप का भी उनके पास अपना जवाब था. शोषण और अत्याचार के घोर विरोधी थे. धनबाद प्रशासन ही नहीं बल्कि बिहार सरकार में भी उनकी हनक थी. अगर वह जान गए कि किसी के साथ अत्याचार हो रहा है, तो भले ही वह व्यक्ति उनके विधानसभा क्षेत्र का नहीं हो, उसकी पीठ पर खड़े हो जाते थे. प्रशासन के अधिकारी भी उनकी बातों को गंभीरता से लेते थे. फक्कड़ मिजाज के गुरदास चटर्जी को विधायक के रूप में जो तनख्वाह मिलती थी, वह भी लोगों के बीच बांट देते थे. ईसीएल के क्वार्टर में रहते थे. निरसा में रहने की सूचना जब लोगों को मिलती थी तो भारी भीड़ जुट जाती थी. आज ही के दिन गुरदास चटर्जी की हत्या कर दी गई थी.
गुरदास चटर्जी मूल रूप से पश्चिम बंगाल के पुरुलिया के निवासी थे. पुरुलिया में एक विवाद में फंसने के बाद उनके भाई रामदास चटर्जी उनको लेकर धनबाद आ गए. निरसा में निजी कोयला कंपनी में क्लर्क की नौकरी करने लगे. कोलियरियो का जब राष्ट्रीयकरण हुआ तो वह कोल इंडिया की ईसीएल में क्लर्क हो गए. अन्याय के खिलाफ लड़ने की मानसिकता के चलते वह मजदूरों के हक की लड़ाई भी लड़ने लगे. फिर नौकरी के साथ-साथ राजनीति भी करने लगे और कोयला माफिया के लिए परेशानी का कारण बन गए थे .इसी दौरान एक मुकदमे में उन्हें जेल जाना पड़ा. बाद में वह बेकसूर साबित होकर जेल से बाहर आए. इसके बाद गुरदास चटर्जी ने ईसीएल की नौकरी से त्यागपत्र देकर पूर्ण रूप से राजनीति करने लगे. अन्याय के खिलाफ लड़ाई ही उनकी राजनीतिक पूंजी थी .धीरे-धीरे निरसा सहित धनबाद के अन्य इलाकों में उनकी पैठ बढ़ गई. उनकी हत्या के समय उनके पुत्र पूर्व विधायक का अरूप चटर्जी कोलकाता में नौकरी करते थे. राजनीति में आने की उनकी इच्छा नहीं थी, बावजूद परिस्थितियों ने उन्हें राजनीति में खींच लाई. वह निरसा से विधायक बने. दो बार विधायक रहे.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो