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आदिवासी महोत्सव: CM हेमन्त सोरेन एक आदिवासी की पीड़ा और खुशी के बारे में बताया, पर्यावरण बचाने पर दिया जोर 

आदिवासी महोत्सव: CM हेमन्त सोरेन एक आदिवासी की पीड़ा और खुशी के बारे में बताया, पर्यावरण बचाने पर दिया जोर 

रांची(RANCHI): आदिवासी महोत्सव में आदिवासी जीवन शैली पर एक परिचर्चा में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने भाग लिया. इस परिचर्चा में एक मैगजीन की संपादक से मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने आदिवासी समाज के बारे में परिचर्चा की .इस परिचर्चा में Cm ने आदिवासी समाज के ज़िंदगी से लेकर अंत तक प्रकाश डाला. साथ ही पर्यावरण बचाने पर भी फोकस किया.

ट्राइबल पहचान 

मुख्यमंत्री ने कहा कि ट्राइबल पहचान क्या है इसकी तलाश अभी भी जारी है,झारखंड राज्य की स्थापना आदिवासी पहचान के लिए हुयी थी. लेकिन राज्य अलग होने के बाद भी अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहे है.हमारी सरकार आने के बाद यह दूसरी बार महोत्सव मना रहे है.जब लोग महोत्सव देख रहे है उन्हें खुद महसूस हो रहा है कि आदिवासी कैसे अपनी पहचान दिखाने कि कोशिश कर रहे है.1 करोड़40 लाख की आबादी में अपनी पहचान तलाश रहे है.सरना धर्म कोड की डिमांड शुरू से रही है.सवा सौ करोड़ के बीच में जो आदिवासी जनजाति है उन्हें एक पहचान मिलनी चाहिए. इसके लिए हम सरना धर्म कोड की मांग कर रहे है.क्या हम आदिवासी को भी 1 करोड़ 40 लाख में मिला कर खत्म कर देंगे.देश में ऐसी कई जाति है जिसकी अलग पहचान है,लेकिन आदिवासी की पहचान अभी तक नहीं हो पाई है.हम शुरू से संघर्ष कर रहे है और अभी और लड़ाई की जरूरत है.

कोई हमे आदिवासी नहीं मानता 

देश में लोग आदिवासी को आदिवासी नहीं समझते है.कोई कुछ बोलता है.आदिवासी कल्याण मंत्रालय जरूर है लेकिन कोई हमें आदिवासी नहीं मानता है.CM ने कहा कि अजब हाल है कि देश में हमें वनवासी बोलते है.हमारे दादा सोबरन सोरेन एक शिक्षक थे और उन्होंने भी अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत की थी.हमारे पिता और दिशोम गुरु शिबू सोरेन संघर्ष कर आदिवासी समाज को आगे लागे की कोशिश कर रहे है.हमारे दादा से लेकर खुद संघर्ष कर रहे है.हमारे जेनरेशन में ही संघर्ष लिखा हुआ है.हम संघर्ष की लाठी को आगे लेकर जा रहे है.

आदिवासी बच्चे विदेश में पढ़ रहें हैं 

राज्य में आदिवासी कभी सोच नहीं पा रहे थे कि उनके बच्चे विदेश में जाकर पढ़ाई कर पाएंगे.लेकिन देश में ऐसा पहली बार हुआ कि आदिवासी दलित के बच्चे का सपना पूरा हो रहा है.जो काम राज्य बनने के साथ शुरू होना चाहिए था वह 20 वर्षों बाद हुआ.दो दिनों से आदिवासी समाज अपने आप को दिखा रहा है.अगर यह प्रोग्राम 10 दिन का भी होता तो लोगों का हुजूम जुटा दिखेगा.राज्य अन्य राज्यों से अलग है.दुनिया में ऐसा कोई मिनिरल्स नहीं है जो झारखंड में नहीं मिलता हो.कोयला से लेकर सोना तक यहां मौजूद है.मुगल पहले शासन कर रहे थे तो यहां से सोना चांदी लेकर चले गए.अग्रेंज आये तो मिनिरल्स पर नजर डाल कर निकालना शुरू किया.इसके साथ ही आदिवासी के विस्थापन शुरू हो गया.आदिवासी के हालात सुधरने के बजाय और गर्त में चला गया.

आदिवासियों को एकजुट करने की कवायद 

जब हमारी सरकार बनी,तो जो चिजी 100 साल से चली आ रही है.उसे बदलने की कोशिश शुरू किया.हम राज्य के बदहाली को जानने की कोशिश किया.झारखंड के कोयला से पूरा देश रौशन हो रहा है.लेकिन इसके बावजूद देश में कोशिश की जा रही है,कि आखिर आदिवासी को खत्म कैसे कर दिया जाए.इसका उदाहरण मणिपुर से सांमने आया है.कई राज्यों में आदिवासी के साथ घिनौनी हरकत की जा रही है.जहां हमारी नज़र जाती है उसे रोकने की कोशिश करते है लेकिन कई जगह हम पहुंच नहीं पाते.देश के अलग अलग राज्य में आदिवासी पर अत्याचार होता है तो दूसरे राज्य के आदिवासी को फर्क नहीं पड़ता है.इसी का फायदा लोग उठा कर अत्याचार करते रहते है.लेकिन अब आदिवासी को एक जुट करने की कोशिश इस महोत्सव के जरिये कि जा रही है.झारखंड की महिलाओं ने जल जंगल जमीन बचाने में विधवा हुई लेकिन उन्हें पेंशन नहीं दिया जाता था अब हमारी सरकार सभी को पेंशन देने का काम कर रही है.

पर्यावरण बचाने पर फोकस 

कोरोना काल में सभी राज्य ने मजदूर को मरने के लिए छोड़ दिया.लेकिन हमारी सरकार ने सभी को वापस अपने राज्य लाने  का काम किया.हमने बस,हवाईजहाज जैसे बना वैसे वापस मजदूर को घर पहुंचाने का काम किया है.Cm ने कहा कि देश में बड़े बड़े 5 स्टार होटल में पर्यावरण संरक्षण पर चर्चा की जाती है.लेकिन इसके वास्तविक हाल को ठीक करने के बारे में किसी ने नहीं सोचा.पर्यावरण पर हमारी सरकार काम कर रही है.देश में पर्यावरण ठीक करने पर चर्चा करते है लेकिन नीति उससे उल्टा बना देते है.इसका उदाहरण झरिया है जहां सालों से आग धधक रही है. आदिवासी समाज पर्यावरण के लिए शुरू से काम करते है.लेकिन जैसे शहर में इंटर कीजिये तो नदी नाले में तब्दील मिलेगी.यही फर्क आदिवासी और आम लोग में है.

Published at:10 Aug 2023 08:11 PM (IST)
Tags:Tribal Festival Cm Hemant Sorenpain and happiness of a tribal saving the environmenthement soren aimchief minister of jharkhand Trible festivel in j harkhand आदिवासी समाज आदिवासी महोतस्व रांची
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