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बिहार सहित झारखंड के अब तक के मुख्यमंत्रियों से तोपचांची झील पूछ रही,हम तो बुढ़ापे में भी अपने कर्म पथ पर चल रहे लेकिन आप लोग क्यों मुंह मोड़ लिए?

बिहार सहित झारखंड के अब तक के मुख्यमंत्रियों से तोपचांची झील पूछ रही,हम तो बुढ़ापे में भी अपने कर्म पथ पर चल रहे लेकिन आप लोग क्यों मुंह मोड़ लिए?

धनबाद(DHANBAD): धनबाद के तोपचांची की यह एक ऐसी झील है, जो बिना बिजली, बिना पंप के लाखों लोगों की प्यास तब भी  बुझाती थी,आज भी बुझा रही है.100 साल में भी यह व्यवस्था कायम है. नई-नई तकनीक डेवलप हुए, बड़े-बड़े इंजीनियर हुए, लेकिन अंग्रेजों के इस तकनीक का काट उनके पास नहीं है.

1924 में अंग्रेजों ने इस झील का निर्माण इसलिए कराया था कि कोयलांचल के लोगों को जलापूर्ति हो सके. यह व्यवस्था आज भी बनी हुई है. तेतुलमारी, सिजुआ, तिला तांड, कतरास सहित कोयलांचल के कई इलाकों की प्यास, अभी भी इस झील से बुझती है. इस झील में अंग्रेजों का बना हुआ एक टिल्टिंग गेट लगा हुआ है. यह टिल्टिंग गेट पानी में डूबा रहता, लेकिन इसमें जंग नहीं पकड़ती. सोचने की बात है कि किस क्वालिटी के लोहे से अंग्रेजों ने यह टिल्टिंग गेट बनवाया होगा. आज भी यह इलाका हरे-भरे जंगलों और पहाड़ियों से घिरी हुई है. बिना देखरेख के इसका यह हाल है, तो जिस समय अंग्रेजों ने इसका निर्माण कराया होगा, उस समय इसकी सुंदरता क्या रही होगी? इसका सिर्फ हम अंदाज ही लगा सकते हैं. यह झील देश की स्वतंत्रता का गवाह है. न जाने कितने अंग्रेज अधिकारी इस झील के बगल में बने गेस्ट हाउस में ठहरे होंगे. अंग्रेजों के जाने के बाद भी इस गेस्ट हाउस की अलग पहचान थी. उस समय कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ था. पूरे जिले का यह उम्दा गेस्ट हाउस माना जाता था. इसकी देखरेख की जिम्मेवारी तत्कालीन झरिया वाटर बोर्ड के पास थी. चुकी कोयला क्षेत्र में जलापूर्ति का जिम्मा झरिया वाटर बोर्ड के पास था, इसलिए इसकी जिम्मेवारी भी झरिया वाटर बोर्ड को दी गई. लेकिन समय के साथ गेस्ट हाउस के बुरे दिन शुरू हुए और आज तो बदतर  स्थिति में यह गेस्ट हाउस  पहुंच गया है और तोपचांची झील की हालत भी अब बिगड़ गई है. हालांकि जलापूर्ति अभी भी चल रही है.

तोपचांची झील से जो पानी छोड़ा जाता है, वह बिना मोटर के खेत खलियान होते हुए फिलहाल के झमाड़ा के  वाटर रिजर्वायर में पहुंचता है. फिर वहां से कई इलाकों में जलापूर्ति होती है. यह झील पर्यटकों को भी आकर्षित करती है, लेकिन समय के साथ तोपचांची झील पर उग्रवादियों की पकड़ जब बढ़ी, तो लोगों का आना-जाना भी कम हो गया. विभाग भी इस पर ध्यान केंद्रित नहीं किया. नतीजा हुआ कि 100 साल पहले बनी यह झील आज आठ आठ आंसू बहा रही है. यह झील बिहार के भी सरकारी व्यवस्था को अपनी आंचल में समेटे हुए हैं ,तो झारखंड को भी एक चौथाई दशक से देख रही है.यह झील  आज भी अपने कर्म पथ पर चल रही है, लेकिन अब इसकी हड्डियां बूढी हो गई है. यह झील झारखंड सरकार से भी सवाल कर रही है. झारखंड के जितने मुख्यमंत्री हुए ,जितने पर्यटन मंत्री हुए, सबसे पूछ रही है कि मेरी यह हालत क्यों बना दी गई?

झील में गाद भरने से इसकी जल क्षमता भी कम गई है. यह अलग बात है कि 6-7 साल पहले 13 करोड़ की लागत से तोपचांची  झील के गाद की सफाई हुई थी. लेकिन उस अभियान पर भी सवाल खड़े हुए थे. खैर इस झील को जहां हेरिटेज का दर्जा मिलना चाहिए था ,वहां यह झील अब खुद की अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है.है न धनबाद के जनप्रतिनिधियों पर भी बड़ा सवाल?

रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो 

Published at:01 Jul 2025 02:43 AM (IST)
Tags:Jharkhand news Dhanbad news Topchanchi LakeTopchanchi Lake Dhanbad Jharkhand cmJharia Water Boardतोपचांची झील
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