रांची(RANCHI): झारखंड कांग्रेस में सब ठीक नहीं चल रहा है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं में रोष है. कांग्रेस के अंदर बड़ी चूक हुई, जिसके बाद उसे सुधारा गया. लेकिन इसके पीछे किसी साजिश का आरोप लगाया जा रहा है. राहुल गांधी के नेतृत्व में जहां कांग्रेस भारत जोड़ने के लिए ‘भारत जोड़ो यात्रा’ कर रही है. वहीं झारखंड में कांग्रेस में टूट होती दिख रही है. इस टूट की कई वजह है. मगर, हम आज आपको दो वजह बताएंगे जिससे ये पता चल जाएगा कि झारखंड कांग्रेस के अंदर सब ठीक नहीं है.
पहली वजह कांग्रेस द्वारा जारी जिला अध्यक्षों की सूची है. इस लिस्ट में पहले तो एक भी जिला में अल्पसंख्यक चेहरे को अध्यक्ष नहीं बनाया गया. इसका विरोध हुआ. Thenewspost ने भी इस बारे में लिखा था. इसके बाद कांग्रेस की अंदर से भी बगावत के सुर उठने लगे. यहां तक कि अल्पसंख्यक कार्यकर्ताओं की ओर से प्रदेश कार्यालय में प्रदर्शन भी किया गया. बवाल बढ़ता देख देर रात आनन-फानन में प्रदेश अध्यक्ष को प्रेस वार्ता करनी पड़ी. प्रेस वार्ता कर फिर से एक संसोधित लिस्ट जारी की गई. जिसमें चार जिलों के अध्यक्ष का बदलाव किया गया. इसके अलावा सात जिलों में कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है. नई लिस्ट में अल्पसंख्यक चेहरों को भी जगह दी गई, इसके साथ ही एससी लोगों को भी जगह मिली.
बिना पार्टी मेम्बरशिप के ही बन गए जिलाध्यक्ष
कांग्रेस ने सोचा कि इस लिस्ट के बाद सब सामान्य हो जाएगा. लेकिन इसके बाद एक ऐसा मामला सामने आया जिसने कांग्रेस की इस लिस्ट पर और भी कई सवाल खड़े कर दिए और किसी गहरे साजिश की ओर इशारा कर दिया. दरअसल, मामला है कांग्रेस की जिलाअध्यक्ष की लिस्ट में बने बोकारो के नए जिला अध्यक्ष उमेश गुप्ता का. उमेश गुप्ता की नियुक्ति पर सवाल उठ रहे हैं और ये सवाल खुद करीब 30 सालों से भी ज्यादा पुराने कांग्रेस के कार्यकर्ता जवाहर महथा ने उठाया है. जवाहर महथा का कहना है कि उमेश गुप्ता पार्टी के मेम्बर ही नहीं हैं, फिर उन्हें कैसे जिला अध्यक्ष बना दिया गया. वे इसकी शिकायत करने दिल्ली गए हैं, जहां वे राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे से मुलाकात कर इसकी शिकायत करेंगे.
जवाहर महथा ने लगाया ये आरोप
जवाहर महथा ने कहा कि, “मुझे कांग्रेस द्वारा जारी जिला अध्यक्ष की लिस्ट से प्रॉबलम है. पांच लोगों के पैनल को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था. इन सभी के पास पार्टी की मेंबरशीप थी. मगर, आपने जिला अध्यक्ष उस छठे व्यक्ति को बना दिया जो पार्टी का मेंबर ही नहीं है और ना ही उसे इंटरव्यू देने के लिए बुलाया गया था. मेरी उमेश गुप्ता से कोई व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है, लड़ाई उस सिस्टम से है, कि आखिर ऐसा क्यूं हुआ. और अगर ऐसा करना था तो फिर सिस्टम बनाने की क्या आवश्यकता थी. सिस्टम बनाया गया था कि जिसके पास पार्टी की मेंबरशिप है, उसी से आवेदन लेना है. उमेश गुप्ता ने आवेदन किया था. मगर, मेंबरशिप नहीं होने के कारण उनका आवेदन रद्द कर दिया गया था. मेरा ये कहना है कि जब उनका नाम लिस्ट में नहीं था तो उन्हें कैसे जिलाध्यक्ष बना दिया गया.” जवाहर महथा ने कहा कि उन्हें सिर्फ डमी के तौर पर जिलाध्यक्ष बनाया गया है. उनके अध्यक्ष बनने से प्रखण्ड के कार्यकर्ता भी खुश नहीं हैं.
क्या कांग्रेस ने किसी के दबाव में आकर लिया ये फैसला
जवाहर महथा के इन आरोपों को अगर सच माने तो कांग्रेस पर बहुत ही गंभीर सवाल उठते हैं. क्या कांग्रेस ने किसी के दबाव में आकर ये फैसला लिया है, जिसके लिए सिस्टम को फॉलो नहीं किया गया. या ये कांग्रेस को कमजोर करने की कोई साजिश है. क्योंकि अगर किसी कोई पार्टी का मेम्बर ही नहीं है, उसका नामांकन रद्द हो चुका है तो उसे अध्यक्ष कैसे बनाया जा सकता है. इसका जिम्मेवार कौन है? पार्टी सचिव के सी वेणुगोपाल ने किसके कहने पर इस लिस्ट पर मुहर लगाया है, प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के कहने पर या प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे के कहने पर?
धनबाद के नए जिलाध्यक्ष पर लग चुका है अनुशासनहीनता का आरोप
अब इसी लिस्ट में एक और चौंकाने वाला नाम है, और वो नाम है धनबाद के नए जिलाध्यक्ष संतोष कुमार सिंह का. संतोष सिंह को धनबाद का नया जिलाध्यक्ष बनाया गया है. मगर, ताजुब की बात ये है कि इन्ही संतोष सिंह के पर कांग्रेस की ही तत्कालीन प्रत्याशी और वर्तमान विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह के खिलाफ बयान बाजी करने का आरोप लगा था. पार्टी हाईकमान से इसकी शिकायत भी की गई थी, जिसके बाद संतोष सिंह को शोकॉज किया गया था. उन पर कांग्रेस की प्रतिष्ठा को धूमिल कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संविधान एवं नियम के अनुशासनात्मक नियम की धारा 4 के (क) (ख) एवं (ड.) का उल्लंघन का आरोप लगा था. ऐसे में उनके जिलाध्यक्ष बनने पर भी सवाल उठ रहे हैं.
कांग्रेस को कमजोर करने की साजिश तो नहीं?
कांग्रेस की हालत देश में किसी से छिपी नहीं है. 2014 लोकसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेस का जनाधार कम होता रहा है. इसके साथ ही काफी संख्या में नेता और कार्यकर्ताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दूसरे पार्टी का दामन थामा है. ऐसे में झारखंड में भी कांग्रेस के अंदर बगावती सुर उठने के बाद कांग्रेस हाई कमान जरूर चिंतित होगी. बड़ा सवाल ये है कि 2024 का चुनाव अब नजदीक है. ऐसे में कांग्रेस की ओर से इतनी बड़ी गलती कैसे की जा सकती है कि पार्टी के अंदर ही बगावत शुरू हो जाए. कहीं ये कांग्रेस को कमजोर करने की साजिश तो नहीं? ये भी सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस के इस फैसले के पीछे झामुमो को फायदा पहुंचाने की कोशिश है.
ये रणनीति है भी तो इससे नुकसान कांग्रेस को ही होने वाला है. क्योंकि कांग्रेस के लिए अल्पसंख्यक एक बड़ा वोट बैंक हैं और उनका झामुमो की ओर रुझान से नुकसान कांग्रेस को होगा. कांग्रेस की इस नुकसान से फायदा झामुमो को होगा, क्योंकि राज्य में अल्पसंख्यक वोटर के पास झामुमो के अलावा कोई और विकल्प नहीं होगा. इस तरह से अल्पसंख्यक के साथ आने से झामुमो राज्य में सबसे मजबूत हो जाएगी.
कौन है इसका जिम्मेवार?
ऐसे में कांग्रेस के इस फैसले के बाद ये भी सवाल उठने लगे थे कि जानबुझ कर कहीं ये कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश तो नहीं है और झामुमो को फायदा पहुंचाने की कवायद तो शुरू नहीं की गई है. अगर, ऐसा है तो इसके जिम्मेदार कौन हैं. क्योंकि राष्ट्रीय सचिव के सी वेणुगोपाल ने किसके कहने पर ये लिस्ट जारी की थी, प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के कहने पर या प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे के कहने पर. पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को जिम्मेदारी तो तय करनी पड़ेगी. क्योंकि पार्टी के अंदर ही नेताओं की शिकायत दिल्ली पहुंचने लगी है और इस मामले में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे काफी गंभीर हैं.