धनबाद(DHANBAD): झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी हर मुद्दे पर ताबड़तोड़ ट्वीट कर रहे है. उनका नया ट्वीट संथाल परगना को लेकर है. ट्वीट में लिखा है कि संथाल परगना में संताल पहाड़िया आदिवासियों की पहचान पर गहरा संकट मंडरा रहा है. बांग्लादेशी घुसपैठिए आदिवासी बेटियों से विवाह कर उनका धर्म परिवर्तन कर रहे है. फिर सरकारी योजनाओं का लाभ आदिवासी बनकर ले रहे है. यह सिलसिला अब तो चुनाव लड़ने तक जा पहुंचा है. कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा को ऐसे लोगो से बहुत प्यार है. वह जानते हैं कि भाजपा सरकार में आएगी तो उन्हें भगा देगी. देश की सुरक्षा और आदिवासियों के अस्तित्व पर संकट पैदाकर अपनी राजनीतिक रोटी सेकने वाले लोग बहुत बड़ी भूल कर रहे है. भाजपा सरकार में उन्हें भी चिन्हित किया जाएगा. लोग जानेंगे कि इस षड्यंत्र में कौन-कौन से लोग शामिल थे . यह कोई साधारण ट्वीट नहीं है.
संथाल परगना में संताल-पहाड़िया आदिवासियों की पहचान पर गहरा संकट मंडरा रहा है। बांग्लादेशी घुसपैठिए आदिवासी बेटियों से विवाह कर उनका धर्मपरिवर्तन कर रहे हैं फिर सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें "आदिवासी" बनाकर ले रहे हैं। यह सिलसिला अब तो चुनाव लड़ने तक जा पहुंचा है।
— Babulal Marandi (@yourBabulal) July 11, 2023
घुसपैठियों को…
राजनीति चश्मे से देखिये इसके माने -मतलब
राजनीति चश्मे से अगर देखा जाए तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के जल ,जंगल और जमीन बचाने के नारे के सामने बाबूलाल मरांडी ने घुसपैठ के नारे को खड़ा करने का प्रयास किया है. मतलब साफ है कि झारखंड के संथाल परगना में इस बार की चुनावी लड़ाई जल, जंगल जमीन और घुसपैठ के बीच होगी. संथाल परगना झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल है तो भाजपा के लिए भी गंभीर मामला है. कहा जा रहा है कि घुसपैठ की समस्या सिर्फ झारखंड में ही नहीं है बल्कि बिहार, बंगाल, असम जैसे राज्यों में भी घुसपैठ की बड़ी समस्या है. बावजूद बाबूलाल मरांडी का ट्वीट सिर्फ झारखंड के संथाल परगना पर केंद्रित है.इसलिए यह माने - मतलब निकाले जा रहे हैं कि संथाल परगना में इस बार चुनावी लड़ाई जल ,जंगल और जमीन और घुसपैठ के बीच होगी. 2024 के लोकसभा और विधानसभा का चुनाव भारतीय जनता पार्टी आदिवासी चेहरे पर लड़ने का मन बनाने के बाद बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.
28 विधानसभा सुरक्षित सीट रहेगी निशाने पर
इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि झारखंड में 28 विधानसभा की सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है. इन सीटों पर 10 से 12 सीटें मिल जाया करती थी भाजपा को. लेकिन 2019 में बहुत कम सीटें मिली और यही कारण रहा कि 2019 में भाजपा पिछड़ गई और महागठबंधन की सरकार बन गई. भाजपा को अगर आदिवासियों के सुरक्षित सीटों पर 10 या उससे अधिक सीट मिली होती तो भाजपा सरकार बना सकती थी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं ,इन्हीं सब के मंथन के बाद भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व आदिवासी चेहरा को आगे कर चुनाव लड़ने का निर्णय किया है. बाबूलाल मरांडी को आदिवासी चेहरा के रूप में पेश किया गया है. लोकसभा और विधानसभा का चुनाव बाबूलाल मरांडी के लिए भी महत्वपूर्ण है. बाबूलाल मरांडी भी इस दिशा में सक्रिय हो गए है. यह बात तो सच है कि संथाल परगना के रास्ते होकर ही रांची में मुख्यमंत्री की कुर्सी पहुंचती है. इसलिए संथाल में इस बार जोर -आजमाइश होगी और लड़ाई निश्चित रूप से जल ,जंगल और जमीन और घुसपैठिए के नारों के बीच लड़ी जाएगी, इसकी पूरी संभावना है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो