टीएनपी डेस्क (TNPDESK) : धरती का ‘वैकुंठ’ कहे जाने वाले जगन्नाथ पुरी में रविवार 7 जुलाई से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आरंभ होने जा रहा है. हर साल की तरह इस बार भी ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा बड़े ही धूम-धाम से निकलने वाली है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष के द्वितीया को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण के लिए निकलेंगे. वहीं, देश-विदेश से श्रद्धालु इस पवित्र रथ यात्रा के लिए ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में एकत्रित होने वाले हैं. भगवान जगन्नाथ को श्री हरी का ‘हृदय’ भी कहा जाता है, माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर निवास करते हैं. ऐसे में मान्यता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा का साक्षात दर्शन करने से ही श्रद्धालुओं को 1000 यज्ञों का पुण्य फल मिल जाता है.
आज होगा नेत्रदान, जानें रांची में आज का कार्क्रम
भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ शनिवार को 15 दिनों के बाद एकांतवास से बाहर आएंगे. उनके आगमन की खुशी में आज शाम चार बजे नेत्रदान अनुष्ठान का आयोजन किया जाएगा. जगन्नाथपुर मंदिर के प्रथम सेवक ठाकुर सुधांशु नाथ शाहदेव ने बताया कि एकांतवास के बाद भगवान नए वस्त्र धारण करेंगे, उनके नेत्रों का श्रृंगार किया जाएगा. जिसके बाद भगवान की 108 दीपों से मंगलारती की जाएगी. भगवान को मालपुआ, इलायची दाना, बादाम, आम, कटहल और अनानास का भोग लगाया जाएगा. जिसके बाद पांच हजार भक्तों में प्रसाद का वितरण किया जाएगा. जिसके बाद ही दर्शन मंडप पर भगवान भक्तों को दर्शन देंगें.
जगन्नाथ रथ यात्रा का समय
जगन्नाथ रथ यात्रा 7 जुलाई रविवार को सुबह 8 बजकर 5 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 27 मिनट तक निकली जाएगी. इसके बाद दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से लेकर 1 बजकर 37 मिनट तक निकली जाएगी. इसके बाद फिर शाम 4 बजकर 39 मिनट से लेकर 6 बजकर 1 मिनट तक रथ यात्रा निकाली जाएगी.
बंगाल से मंगाए गए हैं 2000 किलो फूल
रथ यात्रा के लिए शुक्रवार को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र का रथ सज-धज कर तैयार हो गया। मंदिर और रथ का रंग-रोगन करने के साथ पूरे मंदिर को आकर्षक लाइटिंग से सजाया गया है। वहीं, मंदिर और रथ को सजाने के लिए बंगाल से कई तरह के 2000 किलो फूल मंगाए गए हैं. इस रथ यात्रा के लिए पूरी जगन्नाथ पुरी को अलग –अलग फूलों, रंगोली, और रोशनी से सजाया जाएगा.
जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की पूजा को समर्पित यह त्योहार श्रद्धालुओं के लिए बहुत खास है. पूर्णिमा से आरंभ होने इस उत्सव में तीन रथ आकर्षण का केंद्र होते हैं. कहा जाता है कि 12वीं सदी से इस उत्सव की शुरुआत हुई थी. ओडिशा का जगन्नाथ पुरी मंदिर भारत के चार धाम व सबसे पुराने मंदिरों में से भी एक है. श्री कृष्ण को समर्पित इस रथ यात्रा में मंदिर से भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियों को बाहर लाया जाता है जिसके बाद ही इस पवित्र रथ यात्रा की शुरुवात होती है.
रथ यात्रा में निकाले जाते हैं तीन रथ
इस रथ यात्रा में तीन रथ निकाले जाते हैं. सुंदर फूलों से सजे तीनों रथों में फिर भगवान को विराजित किया जाता है. इस यात्रा में सबसे आगे भगवान बलराम का रथ फिर बीच में मां सुभद्रा का रथ और अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ सजाया जाता है. भगवान बलराम के रथ को ‘तालध्वज’ मां सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ व भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहा जाता है.