धनबाद(DHANBAD) | वह भी एक जमाना था, जब केरोसिन यानी मिट्टी का तेल गांव के हर घर का जरूरी हिस्सा था. लालटेन से लेकर , किचेन से लेकर स्टोर तक में इसकी धमक थी. लेकिन अब तस्वीर बदल गई है. क्या आपने हाल के दिनों में कहीं पेट्रोमैक्स जलते देखा है. पेट्रोमैक्स की जगह अब जनरेटर ने ले लिया है. इन्वर्टर ने ले लिया है. पहले शादी -विवाह में पेट्रोमैक्स की अलग शान थी. उसको जलाने के भी तरकीब थे. सब कोई जला भी नहीं पाता था. लेकिन धीरे-धीरे पेट्रोमैक्स भी इतिहास की बात हो गई है. वही, हाल केरोसिन तेल का भी लगभग हो गया है. अब किसी के घर में केरोसिन का डिब्बा आपको नहीं दिखेगा. सरकार ने भी किरोसिन तेल पर सब्सिडी बंद कर दी है. लोगों में उपयोग भी कम गया है और सब्सिडी भी बंद होने से लोगों में रुचि भी खत्म हो गई है. नतीजा है कि केरोसिन अब इतिहास की बात की ओर बढ़ चला है.
ढिबरी सिस्टम तो अब खत्म ही हो गई है
यह इसलिए कहा जा रहा है कि ढिबरी की जगह इनवर्टर और इमरजेंसी लाइट ने ले ली है. लकड़ी और गोईंठा से खाना बनाने की जगह अब गैस चूल्हा हो गया है. गांव में भी अब बिजली के बल्ब जलने लगे है . सस्ती दर पर अब पीडीएस की दुकानों में भी केरोसिन नहीं मिलता है. बाजार दर पर उसका मूल्य निर्धारित है. ऐसे में केरोसिन के प्रति न कारोबारियों की दिलचस्पी है और न हीं उपभोक्ताओं की. एक वक्त था जब केरोसिन के लिए मारामारी होती थी. जन वितरण की दुकानों में सस्ती दर पर केरोसिन राशन कार्ड के आधार पर बांटे जाते थे. जिस कार्ड पर अथवा जिस घर में जितनी लोगों की संख्या होती थी, उसी अनुपात में केरोसिन का वितरण किया जाता था. दर भी बाजार दर से सस्ती हुआ करती थी. लेकिन अब तो समय बदल गया है, जमाना बदल गया है. लोग की सुविधाएं बढ़ गई है. पहले अगर रिक्शा के ठेले में लदा किरोसिन मोहल्ले में पहुंच जाता था , तो खरीदारों की भीड़ लग जाती थी. लाइन लगाकर लोग केरोसिन लेते थे.
वह भी एक जमाना था ,जब लोग प्रतीक्षा करते थे
उसके पहले माथे पर टीना लेकर लोग किरोसिन बेचने निकलते थे. आवाज सुनकर ही घरों से लोग निकल पड़ते थे, लेकिन अब धीरे-धीरे वह सब इतिहास की बातें होती दिख रही है. जानकारी निकलकर आई है कि धनबाद जिले के जन वितरण प्रणाली की दुकानों में डेढ़ वर्ष से भी अधिक समय से केरोसिन का उठाव एवं वितरण बंद है. मांग बिल्कुल नहीं रहने के कारण अब डीलर केरोसिन के लिए ड्राफ्ट नहीं लगा रहे है. किरोसिन की कीमत बाजार दर पर तय हो गई है. जन वितरण प्रणाली की दुकानों में केरोसिन की बिक्री कम होने लगी थी. जन वितरण दुकानों में भी किरोसिन की कीमत 70 से 80 रुपए प्रति लीटर निश्चित है. इधर, गांव में भी विद्युतीकरण हो गया है. ग्रामीण लालटेन की जगह बिजली के बल्ब जलाने लगे है. इनवर्टर या बैटरी वाली इमरजेंसी लाइट का उपयोग हो रहा है. ऐसे में केरोसिन की मांग व खपत कम होने से पीडीएस डीलरों को केरोसिन के उठाव से नुकसान होने लगा है. इसलिए डीलर इसके लिए ड्राफ्ट लगाना ही बंद कर दिए है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो