Tnp desk:- झारखंड में अभी ठंड का असर जोरदार है, कोहरा, कुआंसा और साथ में कनकनी ने तो सितम ही ढा दिया है. हालत ये है कि लोग घर में ही दुबके हुए हैं, क्योंकि कोहरे के चलते सूरज निकलता ही नहीं है. सर्दी में गुनगुनी धूप का आनंद लोग नहीं ले पा रहे हैं. मौसम विज्ञानिकों की माने तो अभी अगले दो दिन तक ऐसा ही कुछ देखने को मिलेगा. कनकनाती सर्दी के साथ कोहरे की चादर आसमान में बनी रहेगी. प्रदेश के उत्तरी भाग में कहीं-कहीं घना कुहासा छाने का येलो अलर्ट जारी कर दिया गया है. इसके बाद बादल छाने की संभावना जताई गई है.
बताया जा रहा है कि 10 जनवरी को राज्य के पश्चिमी भागों खासकर पलामू, चतरा, गढ़वा, लातेहार में हल्की बारिश की संभावना जताई जा रही है. इस बीच आशंका जताई जा रही है कि अगले दो दिन सुबह के दौरान धुंध और कोहरा छाने के बाद मौसम साफ रहेगा. मौसम के इस बदलाव के पीछे जेट स्ट्रीम कारण बताया जा रहा है.
झारखंड से गुजर रही जेट स्ट्रीम
मौसम वैज्ञानिकों की माने तो बर्फीले पहाड़ों से 6 से 14 किलोमीटर जेट स्ट्रीम बन गई है. जिसके चलते झारखंड समेत 13 राज्य इससे प्रभावित हुए हैं. इसी के असर के चलते कोहरा और कनकनी बनीं हुई है. झारखंड के साथ ही हिमाचाल, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मेघालय, यूपी,बिहार, एमपी,बंगाल और असम में ठंड महसूस हो रही है. जेट स्ट्रीम एक ठंडी हवाओं का तूफान है, जिसके चलते ही बारिश के साथ ठिठुरन बढ़ जाती है
क्या होती है जेट स्ट्रीम
चलिए जेट स्ट्रीम या जेटधाराएँ क्या होती है, इसे जानते हैं. दरअसल, ऊपरी वायुमंडल में और विशेषकर समतापमंडल में तेज़ गति से बहने वाली हवाए हैं. इनके प्रवाह की दिशा जलधाराओं की तरह ही निश्चित होती है इसलिए इसे जेट स्ट्रीम का नाम दिया गया है.जेट स्ट्रीम जमीन से ऊपर यानी 6 से 14 किलोमीटर की ऊँचाई पर लहरदार रूप में चलने वाली एक वायुधारा है. जेट स्ट्रीम दो प्रकार की होती है, पहला पश्चिमी जेट स्ट्रीम और दूसरा पूर्वी जेट स्ट्रीम . पश्चिमी जेट स्ट्रीम एक स्थाई जेट स्ट्रीम है, जो सालों भर चलता है. इसके प्रवाह की दिशा पश्चिमोत्तर भारत से लेकर दक्षिण पूर्व भारत की ओर होती है. पश्चिमी जेट स्ट्रीम का संबंध सूखी, शांत और शुष्क हवाओं से है. इधर, पूर्वी जेट स्ट्रीम पश्चिमी के बिल्कुल उल्टे होती है. यह पूर्वी जेट स्ट्रीम की दिशा दक्षिण-पूर्व से लेकर पश्चिमोत्तर भारत की ओर से है यह अस्थाई है और इसका प्रभाव जुलाई, अगस्त और सितंबर महीने में भी देखा जा सकता है. मूसलाधार बारिश इसी स्ट्रीम के जरिए होती है. मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भारत में जितनी भी बारिश होती है, उसका 74 प्रतिशत हिस्सा जून से सितंबर महीने तक होता है, यह पूर्वी जेट से ही संभव हो पाता है.