धनबाद(DHANBAD): बिहार के समय का चारा घोटाला और फैसला झारखंड में सुनाया गया. हालांकि सजा बिंदु पर सुनवाई के बाद एक सितंबर को सजा तय होगी. लेकिन सोमवार को रांची के सीबीआई कोर्ट में जो दृश्य दिखा, वह नौकरशाही के लिए सचेत होने वाला था. पूजा सिंघल ,छवि रंजन, वीरेंद्र राम भी उदाहरण जरूर है. सोमवार को बुजुर्ग हो गए कोई अधिकारी एंबुलेंस से पहुंच रहे थे तो कोई हाथों में छड़ी लेकर किसी के सहारे कोर्ट के दरवाजे तक पहुंच रहा था. यह दृश्य अपने आप में अजूबा दिख रहा था. यह चारा घोटाला पूरे देश का चर्चित घोटाला है और इस घोटाले में बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्रा लपेटे में आये. 1996 में जब घोटाले का खुलासा हुआ था, उसे समय जाँच अब के झारखंड के चाईबासा से ही शुरू हुई थी.
जाँच आगे बढ़ी तो सुरसा के मुंह की तरह घोटाले सामने आते गए
जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ती गई, सुरसा के मुंह की तरह घोटाले सामने आते गए. पशुपालन घोटाले में भुगतान के लिए वह सब काम किया गया, जो संभवत आज भी इतिहास बना हुआ है. कंपनी थी ही नहीं ,कंपनी बनी ही नहीं और भुगतान कर दिया गया. चाईबासा से जब जांच शुरू हुई तो मामला आगे बढ़ते- बढ़ते मुख्यमंत्री की गर्दन तक पहुंच गया. उसे समय अधिकारी और नेताओं को यह थोड़ा भी अंदेशा नहीं था कि इस कदर उनकी गर्दन इस घोटाले में फंसेगी. लेकिन जांच आगे बढ़ती गई और उनकी गर्दन फसती चली गई. इस मामले में सूत्र बताते हैं कि 27 मार्च 1996 को सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की. उसके बाद जांच आगे बढ़ी तो लगभग 950 करोड़ के फर्जीबड़े का मामला सामने आया. फिलहाल अब के झारखंड के जिला हेड क्वार्टर से अधिक फर्जी निकासी की गई थी. दरअसल केंद्र सरकार की योजना के मुताबिक आदिवासियों के लिए राशि आती थी. पशुधन ,चारे ,चिकित्सा के लिए राशि मिलती थी. उस राशि की बंदरबांट की जाने लगी. पश्चिमी सिंहभूम के चाईबासा में पहली बार मामला पकड़ में आया.
आईएएस अधिकारी अमित खरे की जाँच से हुआ था खुलासा
आईएएस अधिकारी अमित खरे 1996 में उस समय बिहार और अब झारखंड में पड़ने वाले पश्चिमी सिंहभूम जिले के डिप्टी कमिश्नर थे. उस वक्त उनकी ही जांच से घोटाले का खुलासा हुआ. ऐसी-ऐसी कंपनियों को भुगतान किया गया, जो अस्तित्व में थी ही नहीं. इस मामले में जब जाँच आगे बढ़ी तो 1997 में उसे समय के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के खिलाफ वारंट निर्गत हुआ. इसके बाद लालू प्रसाद विचलित हुए,लेकिन सत्ता हाथ से नहीं जाए, इसके लिए उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को 27 जुलाई 1997 को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया और खुद सरेंडर कर जेल चले गए. जानकार बताते हैं कि घोटाले के खुलासे के पहले पशुपालन कार्यालयों में नोट बिखरे पड़े होते थे.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो