धनबाद(DHANBAD) | धनबाद का टुंडी, यहां से झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक हैं मथुरा प्रसाद महतो. लेकिन पिछले एक महीने से हाथियों का झुंड टुंडी में आतंक मचा रखा है. लोगों की जान ले रहा है लेकिन न सरकार चेत रही है और न ही वन विभाग कुछ कर पा रहा है. अब तो लोगों ने मुख्यमंत्री से गुहार की है, कि जरा टुंडी पर भी ध्यान दीजिए -हुजूर! नहीं तो हम लोगों की फसल तो चली ही गई, अब जान पर भी आफत है. लोग पूछ रहे हैं कि मुख्यमंत्री जी- एलिफेंट कॉरिडोर का क्या हुआ ?क्यों यह फाइल एक दशक से धूल फांक रही है? जंगली क्षेत्र में रहने वालों की क्या कोई सुरक्षा नहीं करेगा? ऐसे तमाम सवाल हैं, जो टुंडी में जमे हाथियों के झुंड ने खड़े किए है. पाकुड़ से धनबाद होते हुए बोकारो, रामगढ़, रांची, चाईबासा तक हाथियों का गलियारा है. इसी कॉरिडोर में हाथियों का झुंड चलता है. हाथियों से सुरक्षा के लिए पाकुड़ से लेकर चाईबासा तक अलग-अलग एलिफेंट कॉरिडोर का निर्माण होना है.
कॉरिडोर की योजना फांक रही धूल
इसमें टुंडी, पूर्वी टुंडी, तोपचांची व राजगंज से होकर कॉरिडोर बनाना है, लेकिन यह सिर्फ सुनाई पड़ता है, जमीन पर दिखता नहीं है. बात यहीं खत्म नहीं होती, टुंडी में हाथियों से सुरक्षा के लिए धनबाद वन प्रमंडल ने पश्चिमी टुंडी में तीन जगह पर सूचक यंत्र लगाए थे. हाथियों के गुजरने पर यह यंत्र सायरन की तरह बजता है. मशीन काम नहीं कर रही है और हाथियों का झुंड लगातार उत्पात मचा रहा है. टुंडी के कोलाहीर में शनिवार की सुबह एक बुजुर्ग ग्रामीण को हाथियों ने पटक कर मार डाला. इससे पहले 11 नवंबर को भी टुंडी में ही बंगारो जंगल के पास एक ग्रामीण को हाथियों ने मार डाला था. पिछले एक दशक की बात की जाए तो टुंडी, पूर्वी टुंडी समेत तोपचांची में दर्जन भर लोगों की जान हाथियों ने ले ली है.
तराई क्षेत्र में बसे 50 गावों को खतरा
टुंडी, पूर्वी टुंडी, तोपचांची व राजगंज में जंगल के आसपास और पहाड़ियों की तराई क्षेत्र में बसे 50 गांव को जंगली हाथियों से सुरक्षा के लिए एलिफेंट कॉरिडोर अगर बन जाता, तो ग्रामीणों को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती, फसल नष्ट नहीं होते. धर्मस्थल हाथियों के झुंड नहीं तोड़ते. 10 साल पहले लगभग 10 करोड़ रुपए की लागत से एलिफेंट कॉरिडोर बनाने का एस्टीमेट बना था. सरकार स्तर पर इस योजना पर फैसला अभी तक नहीं हुआ. यह योजना नामंजूर हुई और न हीं ख़ारिज. टुंडी का पहाड़ व जंगल हाथियों के विचरण का सुरक्षित स्थान माना जाता है. भोजन की तलाश में जंगल व तराई पर बसे गांव में हाथियों का झुंड उतर जाता है. खेतों और कच्चे घरों को तोड़कर फसल, अनाज खा जाता है. अभी टुंडी में 30 से 35 हाथियों का झुंड जमा है.
झुंड में बच्चे भी है,इसलिए आक्रामक है हाथी
झुंड में बच्चे भी है, बच्चों के कारण हाथी दूर तक नहीं जा रहे है. बच्चों की सुरक्षा को लेकर आक्रोशित भी हो जाते है. यही वजह है कि कोई सामने आता है तो सीधे हमला बोल देते है. वन विभाग के ट्रेंड मशालची भी इस झुंड के आगे विवश दिखते है. पिछले 10-15 सालों में हाथियों का ग्रामीण क्षेत्र में प्रवेश करने का रेट बढ़ा है. पहले हाथी ग्रामीण क्षेत्रों में कम आते थे. जंगल क्षेत्र घटने से भोजन की तलाश में हाथी खेत, खलियान और गांव पहुंच जा रहे हैं और लगातार नुकसान पहुंचा रहे है. सवाल उठता है कि टुंडी में हाथियों से सुरक्षा को लेकर ना सरकार चिंतित है और नहीं यहां के जनप्रतिनिधि और नहीं वन विभाग. ग्रामीणों की पुकार सुनने वाला भी कोई नहीं है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो