धनबाद(DHANBAD) : बारिश का सीजन है. वर्षा का पानी जमीन के भीतर जाते ही अग्नि प्रभावित इलाकों की जमीन से धुआं निकलने लगता है. जगह-जगह धंसान की घटनाएं हो रही है. यहां तक कि जिन लोगों को शिविर में रखा गया है, वह जगह भी जमींदोज हो रही है. बड़े-बड़े अधिकारी लगातार पुनर्वास का आदेश और निर्देश दे रहे है. लेकिन कोयलांचल की एक अलग ही कहानी है. यह बात सच है कि रात में बाहर का कोई व्यक्ति कोयलांचल में अगर पहुंच जाए, तो आग की लपटों को देखकर वह भयभीत हो जाएगा. कम से कम रात को उस इलाके में तो नहीं रहेगा. फिर भी वहां लोग रह रहे है.
3 साल से केंद्र सरकार के पास धूल फांक रही है फाइल
2021 में तैयार संशोधित झरिया मास्टर प्लान 3 साल से केंद्र सरकार के पास धूल फांक रही है. 12 अगस्त 2021 को झरिया मास्टर प्लान की अवधि समाप्त हो गई है. जुलाई 2021 में संशोधित मास्टर प्लान को मंजूरी के लिए भेजा गया. लेकिन केंद्र सरकार न इसे मंजूरी दे रही है और न रिजेक्ट कर रही है. संशोधित मास्टर प्लान की मंजूरी नहीं मिलने से अग्नि प्रभावित इलाकों में पुनर्वास का काम प्रभावित हो रहा है. संशोधित मास्टर प्लान में अग्नि प्रभावित खतरनाक क्षेत्र में रहने वाले 1.04 लाख परिवारों का पुनर्वास करना है. पहले फेज में 32,000 रैयत परिवारों को दूसरी जगह पर बसाना है तो दूसरे फेज में 72,000 गैर-रैयत का पुनर्वास किया जाना है.
कोयला मंत्री भी आकर देख चुके है हाल
अभी हाल ही में कोयला मंत्री धनबाद कोयलांचल आए थे. उन्होंने अपनी नंगी आंखों से अग्नि प्रभावित इलाकों का हाल देखा था. अग्नि प्रभावित क्षेत्र में रह रहे लोगों से बातचीत की थी. भरोसा दिया था कि जल्द ही संशोधित मास्टर प्लान को मंजूरी दे दी जाएगी. लेकिन मंजूरी अभी तक नहीं मिली है. इधर, भूमिगत आग खतरनाक हो गई है. लोगों की जाने ले रही है. 104 साल से इंतजार करते-करते झरिया की सुलगती भूमिगत आग अब "धधकने" लगी है. 1919 में झरिया के भौरा में भूमिगत आग का पता चला था. यह भूमिगत आग अब "कातिल" हो गई है. वैसे पिछले 25 सालों से वह संकेत दे रही है कि हालात बिगड़ने वाले हैं. लेकिन जमीन पर ठोस काम करने के बजाए हवाबाजी होती रही. नतीजा सामने है. हाल देखिये-झरिया के घनुडीह का रहने वाला परमेश्वर चौहान आग से फटी जमीन के भीतर गिर गया था. कड़ी मेहनत के बाद 210 डिग्री तापमान के बीच से टीम ने अवशेष को बाहर निकाला. झरिया की यह आग 1995 से ही संकेत दे रही है कि अब उसकी अनदेखी खतरनाक होगी. 1995 में झरिया चौथाई कुल्ही में पानी भरने जाने के दौरान युवती जमींदोज हो गई थी.
24 मई 2017 को पिता-पुत्र जमीन में समा गए थे
24 मई 2017 को इंदिरा चौक के पास बबलू खान और उसका बेटा रहीम जमीन में समा गए थे. इस घटना ने भी रांची से लेकर दिल्ली तक शोर मचाया, लेकिन परिणाम निकला शून्य बटा सन्नाटा. 2006 में शिमला बहाल में खाना खा रही महिला जमीन में समा गई थी. 2020 में इंडस्ट्रीज कोलियरी में शौच के लिए जा रही महिला जमींदोज हो गई थी. फिर 28 जुलाई 2023 को घनुड़ीह का रहने वाला परमेश्वर चौहान गोफ में चला गया. पहले तो बीसीसीएल प्रबंधन घटना से इंकार करता रहा, लेकिन जब मांस जलने की दुर्गंध बाहर आने लगी तो झरिया सीओ की पहल पर NDRF की टीम को बुलाया गया. टीम ने कड़ी मेहनत कर 210 डिग्री तापमान के बीच से परमेश्वर चौहान के शव का अवशेष निकाला. घटना होने के बाद राजनीति भी शुरू हो जाती है. लोग अपने अपने ढंग से खुद का टीआरपी बढ़ाने के लिए आंदोलन से लेकर सब कुछ करते हैं. लेकिन अग्नि प्रभावित क्षेत्र से लोगों का कैसे पुनर्वास किया जाए, आग बुझाने के लिए क्या जरूरी उपाय होने चाहिए, इसको शुरू कराने के लिए कोई दबाव नहीं बनाता. यही वजह है कि झरिया की आग 104 साल के बाद अब सुलग नहीं भभक रही है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो