दुमका(DUMKA): राजनीति में न तो कोई स्थाई दोस्त होता है और न ही स्थाई दुश्मन. यही वजह है कि नेता को दल बदलते देर नहीं लगती. हाल के वर्षों में झारखंड की राजनीति को देखे तो कई ऐसे नेता हैं जो एक झटके में दल बदलकर दूसरे नाव पर सवार हो गए.
झारखंड की राजनीति में सत्ता बीजेपी और जेएमएम की इर्द गिर्द घूमती है
झारखंड की राजनीति में सत्ता झामुमो और भाजपा के इर्द गिर्द रहती है. इसलिए दल बदल भी सबसे ज्यादा इन्हीं दोनों दलों में देखने को मिलती है. खासकर चुनाव के समय नेताओं के आने - जाने का सिलसिला काफी तेज हो जाता है. हाल के वर्षों में देखें तो झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले नेताओं की एक लंबी लिस्ट आपको मिल जाएगा.
संताल परगना से झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले नेताओं की है लंबी लिस्ट
खासकर संताल परगना प्रमंडल की बात करें तो इसे झामुमो का गढ़ माना जाता है. इसके बाबजूद पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया. लेकिन भाजपा में राजनीतिक सफलता नहीं मिलने पर देर सबेर घर वापसी कर ली. समय समय पर संताल परगना प्रमंडल से प्रो स्टीफन मरांडी, स्व. साइमन मरांडी, हेमलाल मुर्मू, सीता सोरेन, दिनेश विलियम मरांडी, लोबिन हेम्ब्रम ने झामुमो को बाय बाय बोला.
घर वापसी करने पर मिली राजनीतिक सफलता
समय के साथ प्रो स्टीफन मरांडी, सायमन मरांडी और हेमलाल मुर्मू ने घर वापसी की और झामुमो के टिकट पर विधायक चुने गए. इसके अलावे पूर्व सीएम चम्पई सोरेन भी झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थाम चुके हैं. वैसे भाजपा के टिकट पर चम्पई सोरेन विधायक बनने में सफल रहे, लेकिन आज के समय मे संगठन में उनकी भूमिका नजर नाहीं आती.
समय समय पर सीता और चम्पई के घर वापसी की उड़ती है अफवाह
इस सबके बीच समय समय पर एक अफवाह उड़ती है. कभी सीता सोरेन की घर वापसी की खबर फिजा में तैरती है तो कभी चम्पई सोरेन की. समय बीतने के साथ साथ इस अफवाह पर विराम लग जाता है. इस अफवाह की क्या सच्चाई है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर है कि धुआं देख कर आग लगने का अंदाजा लगाया जाता है.
वर्तमान समय में इन नेताओं की घर वापसी नहीं है आसान
राजनीति के जानकार बताते हैं कि सीता हो या चम्पई, फिलहाल झामुमो में घर वापसी इतना आसान नहीं रहा. इसके पीछे कई कारण है. पहले पार्टी में दिसोम गुरु शिबू सोरेन की सक्रियता थी. आज के समय में शारीरिक अस्वस्थता के कारण गुरु जी सक्रिय राजनीति से दूर हो गए है. पार्टी की कमान हेमंत सोरेन के हाथ में है. हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद कल्पना सोरेन और बसंत सोरेन ने संकट के समय पार्टी और संगठन की बागडोर अपने हाथों में रख कर पार्टी को मजबूती प्रदान की. इससे पार्टी और संगठन में कल्पना और बसंत का कद ऊंचा हुआ. आज के समय मे संगठनात्मक निर्णय लेने में दोनों की सहमति आवश्यक प्रतीत होता है. ऐसी स्थिति में सीता सोरेन हो या चम्पई सोरेन, लोबिन हेम्ब्रम हो या दिनेश विलियम मरांडी घर वापसी की राहें आसान नहीं दिखती.
वर्तमान समय में इन नेताओं की घर वापसी की राहें आसान नहीं है. विधानसभा चुनाव में झामुमो को जबरदस्त सफलता मिली और मजबूती के साथ सत्ता में वापसी हुई. राजनीति में जोड़ तोड़ का खेल चुनाव के वक्त ज्यादा दिखता है. जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि घर वापसी का मन बना चुके नेताओं को अभी इंतजार करना पड़ेगा.
रिपोर्ट: पंचम झा