देवघर(DEOGHAR): बिहार के बांका और जमुई जिला से सटा हुआ है. यही कारण है कि अवैध शराब के कारोबारी आसानी से झारखंड से शराब की तस्करी कर बिहार ले जाते हैं. बिहार में शराबबंदी है. इसी का फायदा उठा कर व्यापक पैमाने पर यहां से शराब की तस्करी हो रही है. विभाग को सूचना मिलने पर अंतराल अंतराल पर कार्रवाई की जाती है. लेकिन इसे पूर्णतः खत्म चाह कर भी उत्पाद विभाग नही कर सकता. जिला में स्वीकृत पद के अनुसार न के बराबर पदस्थापित कर्मियों के कारण तस्करी रोकना तो दूर यहां फल फूल रहे अवैध शराब के कारोबार पर भी लगाम नही लगाया जा सकता.
जिला में स्वीकृत पद और पदस्थापित कर्मी
बिहार से सटा होने के कारण अवैध शराब कारोबारी का सेफ जोन माना जा रहा है देवघर. यही कारण है कि यहां नकली शराब का व्यवसाय फलते फूलते रहता है. जानकारी मिलने पर उत्पाद विभाग अवैध शराब फैक्टरी का बीच बीच में उदभेदन करती रहती है. लेकिन इस गोरखधंधे को समाप्त नहीं कर सकती. कर्मियों की घोर अभाव का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिला में स्वीकृत 40 पद और पदस्थापित मात्र 7 है. जिला में 1 उत्पाद अधीक्षक का पद है जो यहाँ कार्यरत है. इसके अलावा 1 इंस्पेक्टर का पद स्वीकृत है लेकिन किसी की पोस्टिंग नही की गई है. 5 अवर निरीक्षक का पद है और कार्यरत 2,सहायक अवर निरीक्षक 4 पद स्वीकृत लेकिन पदस्थापित 1,क्लर्क की बात करें तो 3 की जगह 1 की ही पोस्टिंग है वहीं चालक का 1 ही पद स्वीकृत है जो यहाँ पर कार्यरत है. सबसे ताज़्जुब तो उत्पाद सिपाही की पदस्थापित पर सवाल उठ सकता है. जिला में जिस सिपाही के भरोसे अवैध शराब के खिलाफ अभियान चलाया जाता है उसी के पदस्थापना विभाग क्यों नही कर रहा यह समझ से पड़े हैं. 25 पद उत्पाद सिपाही का यहाँ स्वीकृत है और पदस्थापित मात्र 1 ही है. कहाँ जा सकता है कि 1 सिपाही, 1 सहायक अवर निरीक्षक और 2 अवर निरीक्षक के भरोसे अवैध शराब कारोबार के खिलाफ अभियान चलाना नामुमकिन साबित हो रहा है. यही कारण है अवैध शराब के कारोबार करने वाले कि गिरफ्तारी से ज्यादा फ़रार होने वाले कि संख्या ज्यादा है. पिछले 3 वर्ष में अवैध शराब कारोबार करने वालों के खिलाफ अभियान में वित्तीय वर्ष 21-22 में कुल 313 अभियोग दर्ज हुआ है इसमें 11 की गिरफ्तारी है जबकि 79 फरार और 99 अज्ञात है. वही वित्तीय वर्ष 22-23 में 322 मामला दर्ज किया गया है इसमें 50 की गिरफ्तारी हुई है जबकि 136 लोग फरार हो गए थे. चालू वित्तीय वर्ष की बात करें तो अप्रैल तक 18 मामलों में एक की भी गिरफ्तारी नहीं हुई है लेकिन 5 लोग अवश्य फ़रार हो गए. इस आंकड़ा को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि विभाग में रिक्त पद होने से फरार कारोबारी की संख्या ज्यादा है.
दुकान और वार्षिक लक्ष्य
जब से बिहार में शराबबंदी हुई है तब से देवघर में शराब की बिक्री में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिल रहा है. विभाग के अनुसार प्रति वर्ष लक्ष्य बढ़ रहा है. वित्तीय वर्ष 20-21में कुल 105 दुकानों को बंदोबस्त किया गया था जिनमे 35 देशी,39 विदेशी और 31 कंपोजिट शराब की दुकाने है. जबकि 21-22 के वित्तीय वर्ष में 35 देशी,43 विदेशी और 25 कंपोजिट शराब दुकानों की बंदोबस्ती की गई थी. वही वित्तीय वर्ष 2022-23 में 90 में 28 देशी,36 विदेशी और 26 दुकानों की बंदोबस्ती की गई. अब लक्ष्य की बात करें तो वर्ष 20-21में 117 करोड़ के विरुद्ध 76 प्रतिशत से अधिक की प्राप्ति हुई थी. इसको देखते हुए विभाग ने 21-22 के लिए 126 करोड़ लक्ष्य निर्धारित कर दिया. इस वित्तीय वर्ष में विभाग ने लगभग साढ़े 63 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त किया था. वित्तीय वर्ष 22-23 में 128 करोड़ के विरुद्ध रिकॉर्ड 97 प्रतिशत से अधिक लक्ष्य हासिल किया. इससे साफ अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देवघर में शराब की बिक्री बढ़ी है.
कैसे होगा अवैध या नकली कारोबार समाप्त
किसी भी राज्य सरकार के लिए राजस्व संग्रहण में उत्पाद विभाग की भूमिका अहम होती है. लेकिन अवैध या नकली शराब फैक्ट्री के फलने फूलने के कारण इससे राजस्व की हानि भी होती है. एक तरफ विभाग लक्ष्य प्राप्ति के लिए दिन रात मेहनत करती है तो दूसरी तरफ अवैध कारोबारी की चांदी रहती है. इसका कारण कर्मियों का अभाव. सरकार की उदासीनता के कारण स्वीकृत पद और कार्यरत कर्मी की संख्या न के बराबर है. जिसका उदाहरण देवघर जिला है. कर्मियों की कमी के कारण ही अवैध और नकली शराब का कारोबार दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है साथ ही तस्करों का मनोबल भी. देवघर से बिहार में शराब ले जाने के लिए तस्करों द्वारा नई नई तकनीक अपना कर धरल्ले से करोबार किया जा रहा है. नकली शराब के सेवन से मौत भी हो सकती है. ऐसे में जरूरत है सरकार जल्द से जल्द रिक्त पदों पर भर्ती कर इसपर नकेल कसे.
रिपोर्ट: रितुराज सिन्हा