धनबाद(DHANBAD) : BCCL में आउटसोर्सिंग कंपनियों के काम करने से उत्पादन का आंकड़ा तो जरूर बढ़ा है और यह 32 मिलियन टन तक पहुंच गया है. लेकिन, उत्पादन में लगी आउटसोर्सिंग कंपनियों के खेल भी कम निराले नहीं हैं. बीसीसीएल में अभी लगभग 28 आउटसोर्सिंग कंपनियां काम कर रही हैं. बीसीसीएल द्वारा डिबार और ब्लैक लिस्टेड कंपनियां भी ढंग और तरीका बदल कर काम में जुटी हुई है. इस तरह की कई शिकायतों पर कंपनी जांच भी कर रही है. इतना ही नहीं, एमएसएमई के तहत माइक्रो उद्योग के रूप में रजिस्टर कंपनियां भी बीसीसीएल में या तो काम कर रही है या काम लेने की जुगत में है. नियम के अनुसार इन कंपनियों का वर्किंग कैपिटल साल में 5 करोड से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन टेंडर में ही दावा किया जाता है कि उनका वर्किंग कैपिटल 10 से 15 करोड़ के बीच है.
सभी शिकायतों की नहीं होती जांच
ऐसी बात नहीं है कि कंपनी मुख्यालय को इन सब की शिकायतें नहीं मिलती, कुछ मामलों की जांच होती है और कई मामले इसी तरह चलते रहते हैं. नतीजा होता है कि गड़बड़ी कर टेंडर हासिल करने वाली कंपनियों की चांदी कटती रहती है. बता दें कि वीडिंग में फर्जीवाड़ा करने, खराब प्रदर्शन करने, गलत जानकारी देने पर आउटसोर्सिंग कंपनियों को डिबार और ब्लैक लिस्ट किया जाता है. लेकिन, ब्लैक लिस्ट कंपनी के मालिक या साझेदार नाम बदलकर नई कंपनी खड़ी कर लेते हैं. फिर काम भी हासिल कर लेते हैं. इसके अलावा भी आउटसोर्सिंग कंपनियां बीसीसीएल से तरह-तरह की राहत(Hindrance) लेती है. नियम है कि निर्धारित अवधि में टारगेट पूरा नहीं करने पर पेनाल्टी देना होगा. लेकिन इससे बचने के लिए कभी जमीन का बहाना, तो कभी लॉ एंड ऑर्डर की परेशानी, तो कभी बारिश के बहाने कंपनियां राहत लेती है.
नहीं होती ईमानदारी पूर्वक जांच
राहत देने के पहले भी बहुत ईमानदारी पूर्वक जांच पड़ताल नहीं की जाती. नतीजा है कि आउटसोर्सिंग कंपनियां अपने ढंग से कायदे और कानून को मरोड़ती रहती हैं और बीसीसीएल को नुकसान पहुंचाती है. यह बात अलग है कि टॉप मैनेजमेंट तक नीचे के लोग सभी शिकायतें पहुंचने नहीं देते. जाहिर है इसके पीछे कोई न कोई ताकत काम करती होगी. लेकिन यह भी सच है कि टॉप मैनेजमेंट तक शिकायत पहुंचती है तो कार्रवाई भी होती है. बहरहाल, सूत्र बताते हैं कि आउटसोर्सिंग कंपनियों की अगर ढंग से जांच करा दी जाये तो कई बड़े खेलो का खुलासा हो सकेगा.
रिपोर्ट: शांभवी सिंह, धनबाद